पाठकों के कुछ पत्र और डैनियल पाइप्स के उत्तर निम्नलिखित हैं।
सम्पादक के नाम:
डैनियल पाइप्स का मानना है कि विश्व भर में 10 से पंद्रह करोड करोड लोग क्रांतिकारी इस्लाम को अंगीकार कर चुके हैं और शेष अन्य 50 करोड " अपने अमेरिका विरोधी विचारों के कारण इसके सहयोगी है" जो कि इस पूरे विषय में अमेरिका के बजाय ओसामा बिन लादेन और तालिबान के साथ सहानुभूति रखते हैं। ["Who Is the Enemy?" Commentary, January, 2002, available at http://www.danielpipes.org/103/who-is-the-enemy].
परंतु अपने लेख के शीर्षक से उठाये गये प्रश्न का उत्तर देने के बाद श्रीमान पाइप्स इसके अन्य कारणों के बारे में कुछ नहीं कहते: हमने इस शत्रुता को आमन्त्रित करने किये क्या किया? साथ ही वे सबसे महत्त्वपूर्ण बात को भी छोड देते हैं कि हम नरमपंथी मुसलमानों के साथ उनके अमेरिकी विरोध के संघर्ष में क्या साथ दे सकते हैं जो कि हमने मुसलमानों और तृतीय विश्व के लोगों के साथ गलत किया है । लम्बे समय तक हमने उनकी परवाह किये बिना उन्हें अपने लाभ के लिये प्रयोग किया। आखिर यह तो अमेरिका ही था जिसने कि सोवियत संघ के विरुद्ध संघर्ष में उनके लडाकों को हथियार प्रदान किये जो कि तालिबान बन गये।
मैक्स रिवेर्स
सन्टस्बरी , मैसचुयेट्स
सम्पादक के नाम :
डैनियल पाइप्स का तर्क है कि अमेरिका इस समय जिस संघर्ष में लिप्त है उसके लिये सैमुअल हट्टिंगटन के "सभ्यता का संघर्ष" शब्द प्रयोग नहीं करना चाहिये और यह इस्लाम और पश्चिम के मध्य संघर्ष नहीं है। श्रीमान पाइप्स एक अधिक आशावादी दृष्टिकोण अपनाते हैं और इस संघर्ष को क्रांतिकारी और नरमपंथी इस्लाम के मध्य का आपसी संघर्ष मानते हैं। जैसा कि वे संकेत करते हैं कि इस्लामवादी पश्चिम के विरुद्ध अपनी शत्रुता से कम क्रूर अपने सहधर्मी विरोधियों के प्रति नहीं हैं। उनके अनुसार इस्लामवाद सोवियत कम्युनिज्म की भाँति एक और विचारधारा है। पर्याप्त समय, निष्ठा और संसाधनों के बल पर इसे भी रोका जा सकता है जब तक कि यह स्वतः समाप्त न हो जाये।
परंतु इस्लामी विश्व में आंतरिक विरोध की बात स्वीकार कर लेने से भी हट्टिंगटन की धारणा खंडित नहीं होती। यदि इस्लामी कट्टरपंथी जिस जुनून से अन्य मुसलमानों की विविधता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ मार पीट कर रहे हैं वही यह सिद्ध करने के लिये पर्याप्त है कि उनकी सभ्यता और हमारी सभ्यता में संघर्ष है।
वैसे इस्लामवाद जिन देशों में है वहाँ कम्युनिज्म की भाँति बाहर से नहीं थोपा गया है वरन अपने घर में विकसित हुआ है और जमीन से जुडा उभार है। जैसा कि श्रीमान पाइप्स का कहना है कि नरमपंथी मुसलमान शायद " कमजोर, विभाजित , भयभीत और सामान्य रूप से अप्रभावी हैं" और ऐसा आम तौर पर इसलिये है कि क्रांतिकारी इस्लाम मुस्लिम समाज के अधिकतर ऊर्जावान वर्ग के राष्ट्रीय और मजहबी भाव को अभिव्यक्त करता है।
सम्भवतः क्रांतिकारी इस्लाम पिछली आधी शताब्दी में पश्चिम और मुस्लिम विश्व के अधिक सम्पर्क का परिणाम रहा है। परंतु जो मूल्य और विचार इसके हैं वे शताब्दियों पुराने हैं और विचारधारा से भी गहरे हैं। शीत युद्ध की तरह किसी सभ्यता को घेर पाना यह अति सामान्य तुलना है ।
ग्रेग लुमलेस्की , न्यूयार्क सिटी
सम्पादक के नाम :
डैनियल पाइप्स का दावा कि इस्लाम अपने आप में शत्रु नहीं है आतर्किक और अविश्वसनीय है। यह इस तथ्य की अवहेलना करता है कि अमेरिका पर आक्रमण करने का मुस्लिम समाज में कोई विरोध नहीं है। उनके अनुसार वास्तविक संघर्ष इस्लामवादियों और " नरमपंथियों" के मध्य है। हम इसके बीच पड गये हैं।
श्रीमान पाइप्स इस धारणा से असहमति व्यक्त करते हैं कि इस्लाम शत्रु है और इसके लिये उनका तर्क है कि " इस्लामवादी भी मुसलमानों से शत्रुता रखते हैं" । परंतु इसका कोई तुक नहीं बनता। क्या नाजियों द्वारा कुछ साथी जर्मन का उत्पीडन या फिर सोवियत द्वारा कुछ साथी रूसियों का उत्पीडन करने से उनका शासन कहीं कम शत्रु रह जाता है।
एलेन विंगरटन
मोरिसटाउन , न्यूजर्सी
सम्पादक के नाम :
डैनियल पाइप्स लिखते हैं: " यदि इस्लामी जगत में प्रायः आधी जनसंख्या अमेरिका से घृणा करती है तो आधी घृणा नहीं भी करती"
परंतु नरमपंथी मुसलमान भी इजरायलवाद के नाम पर नरमपंथी नहीं हैं उनकी इजरायल के प्रति घृणा वैश्विक है। वे उस जनसंहारक भावना से अलग नहीं हैं जिसे कि श्रीमान पाइप्स ने युसुफ अल करादावी के लिये व्यक्त किया है कि अतिवादी शेख ने अल जजीरा टेलीविजन पर घोषणा की कि " अंतिम न्याय के दिन मुसलमान यहूदियों से लडेंगे और उन्हें मार देंगे"
सेमेटिक विरोध और उसकी संतान इजरायल विरोध अत्यंत शक्तिशाली है कि यह सभी सीमायें पार कर जाता है। नस्ली और मजहबी शत्रुता तो अत्यंत ही विनाशक है परंतु सेमेटिक विरोध तो विशेष रूप से खतरनाक है। यदि नरमनपंथी इस्लाम को राजनीतिक शक्ति बनना है तो इसे क्रांतिकारी इजरायलवाद विरोध से अलग करना होगा जिसके सम्बन्ध में यह शांत और नपुंसक है।
जार्ज जोकनोविच
स्टेटेन आईलैंड , न्यूयार्क
DANIEL PIPES writes:
डैनियल पाइप्स ने लिखा:
मैक्स रिवर्स ने पूछा , " हमने उग्रवादी इस्लाम की शत्रुता को आमंत्रित करने के लिये क्या किया? यह गलत प्रश्न है, मैं इसका उत्तर देता हूँ। इस्लामवादी अमेरिका से घृणा इसकी नीतियों के चलते नहीं करते वरन इसलिये करते हैं कि वह अमेरिका है। इस रूप में वे उसी परिपाटी का अनुकरण कर रहे हैं जो कि फासीवादियों और कम्युनिष्टों की थी। क्या श्रीमान यह प्रश्न करेंगे कि अमेरिका ने पर्ल हार्बर को आमन्त्रित करने के लिये क्या किया था या फिर हिटलर और स्टालिन के आक्रोश के लिये क्या किया था? मुझे इसमें संदेह है। सभी अधिनायकवादी विचार जिसमें कि इस्लामवादी भी है वे सभी अमेरिका के लिये एक चुनौती हैं और उसका सामना करना चाहिये।
ग्रेग लूमलेस्की और एलेन विंगरटन दोनों ने मेरी निंदा की है और लूमलेस्की ने इस्लाम मजहब और उग्रवादी इस्लाम विचारधारा के मध्य विभेद को , " अतार्किक और अस्पष्ट" बताया है। एक बार फिर मैं पूर्ववर्ती अधिनायकवादी विचारों पर लौटता हूँ। द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका का युद्ध का उद्देश्य जर्मनी, इटली और जापान में शासन के स्वरूप को बदलना था ताकि फासीवादी नेताओं को बाहर कर ऐसे नेताओं को उस स्थान पर लाया जाये जो अमेरिका के साथ सह अस्तित्व बनाकर चल सकें। एक बार फिर सोवियत नेतृत्व को हटाने का उद्देश्य लिया गया ताकि नया नेतृत्व सह अस्तित्व बनाकर चल सके। आज उग्रवादी इस्लाम के मामले में भी यही उद्देश्य है ताकि आंदोलन को समाप्त किया जा सके और शालीन नेतृत्व को लाया जा सके जैसा कि अफगानिस्तान के मामले में किया गया है। नाजी और कम्युनिष्ट शत्रु थे न कि जर्मनी और सोवियत के लोग ऐसा ही उग्रवादी इस्लाम के साथ भी है जो कि शत्रु है न कि समस्त मुस्लिम जगत।
यह जिज्ञासा का प्रश्न है कि लूमलेस्की और विंगरटोन मूल प्रश्न पर इस्लामवादियों के साथ हैं कि उग्रवादी इस्लाम और इस्लाम समान है और मजहब के अन्य पहलुओं को अतार्किक, मह्त्वहीन या फिर अप्रासंगिक मानते हैं। इसी आधार पर मैं असहमत हूँ और मानता हूँ कि अधिकाँश मुसलमान उग्रवादी इस्लाम को अस्वीकार करते हैं।
जार्ज जोकनोविच ने सही बात कही है कि प्रायः सभी मुसलमान सेमटिक विरोध और इजरायलवाद विरोध के समर्थक हैं और सही संदर्भ में नरमपंथ के लिये इसे रोकना होगा यदि पूरी तरह समाप्त न किया जा सके तो भी। मैं सहमत हूँ कि अधिकाँश अवसर पर यहूदियों के साथ व्यवहार ही यह तय करता है कि कितना नरमपंथी या शालीन व्यवहार है। इस मामले में नरमपंथी मुसलमानों को अपने सहधर्मी इस्लामवदियों की भाँति ही लम्बा सफर तय करना है।