सम्पादक को :
"The Danger Within: Militant Islam in America" नामक लेख में जो कि [Commentary, November 2001, available at http://www.danielpipes.org/77/the-danger-within-militant-islam-in-america] पर उपलब्ध है, डैनियल पाइप्स ने मुझ पर और अन्य लोगों पर आरोप लगाया है कि हम अमेरिका में इस्लामी क्रांति लाने का प्रयास कर रहे हैं और इस प्रकार हम उमर अब्दुल रहमान और शेख रहमान से कुछ बेहतर नहीं हैं , जो कि अपने किसी दोष के चलते नहीं वरन इस्लाम और मुसलमानों के विरुद्ध यहूदियों के पूर्वाग्रह के चलते आजीवन कारावास का दन्ड भुगत रहे हैं।
श्रीमान पाइप्स सोचते हैं कि वे और उनका यहूदी समुदाय अमेरिका के एकमात्र स्वामी हैं और शेष देश तो बस मूर्ख है और उन्हें धरती पर रहने का कोई अधिकार नहीं है। वे यह भूल जाते हैं कि अमेरिका के सभी नागरिकों को बराबर का अधिकार है चाहे वे यहूदी हों , ईसाई हों या फिर मुस्लिम।
अपने आरम्भ से ही श्रीमान पाइप्स इस्लाम को एक " उग्रवादी" मजहब मानकर चलते हैं जो कि जिस भी देश में स्थापित होता है उत्पीडन, तानाशाही और एक तंग मजहबी राज्य की स्थापना करता है। यह विचार उनकी काल्पनिक कृति है और इस्लाम व इसके इतिहास के प्रति उनकी अनभिज्ञता को प्रकट करता है। वे इस्लामी जीवन शैली को लेकर इतना शोर मचाते हैं और वह भी पूँजीवाद, उदार लोकतांत्रिक व्यवस्था के साथ इस्लाम की तुलना किये बिना इन्हें एक दूसरे से श्रेष्ठ सिद्ध करने का प्रयास करते हैं। किसी जानकार विद्वान से इसकी अपेक्षा शायद ही की जाती है।
श्रीमान पाइप्स भूल जाते हैं कि अब्राहम, मोजेज और मोहम्मद सभी इस्लाम के पैगम्बर थे। इस्लाम अमेरिका के यहूदी , ईसाई और मुस्लिम समुदाय की साझी विरासत है और ईश्वर के शासन को पृथ्वी पर स्थापित करना तीनों ही अब्राहमी मजहबों का संयुक्त दायित्व है। इस्लाम एक दीन ( आस्था जीवन शैली है) जो कि यहूदी और ईसाइयों का भी है जिन्हें कि बाद में इसे मानवीय अनुसंधानों के चलते खो दिया। अब मुसलमान यहूदी और ईसाई भाई बहनों को उनका मूल दीन स्मरण कराना चाहता है। यह ऐतिहासिक तथ्य हैं।
इस्लामी जीवन शैली हमारे समय की सबसे बडी माँग है। मानवीय समस्यायें दिनों दिन तेजी से बढ रही हैं। इस विश्व में कहीं भी शांति नहीं है। मनुष्य की मूलभूत आवश्यकतायें दवा, पीने का पानी, शरण , मौलिक शिक्षा , चिकित्सा वंचित लोगों तक नहीं पहुँच पा रही हैं। सम्पन्न लोग अधिक सम्पन्न हो रहे हैं और गरीब दिन ब दिन गरीब होते जा रहे हैं। मानवाधिकार केवल उदार समाज के कुछ विशेषाधिकार लोगों के लिये है और इससे एशिया, अफ्रीका , यूरोप और अमेरिका के बडे वर्ग को वंचित रखा गया है। विश्व में कम्युनिज्म, पूँजीवाद और उदार लोकतंत्र अपने बडे बडे दावों के बाद भी मनुष्य की इन समस्याओं का समाधान करने में असफल रहे हैं। इसके स्थान पर उन्होंने इसे बढाया ही है।
इन मानवनिर्मित व्यवस्थाओं ने पृथ्वी को लोभ , शोषण और अनैतिक रास्तों से भर दिया है जो कि अब्राहमी तरीकों के लिये अस्वीकार्य है। आखिर क्यों डैनियल पाइप्स जैसे विद्वान उत्पीडन के खेल को लम्बा करना चाहते हैं जो कि रिमोट कंट्रोल आधुनिक गुलामी है जो कि अनेक अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों जैसे कि डब्ल्यू टी ओ ( विश्व व्यापार संगठन ), बहुराष्ट्रीय कारपोरेशन और गैर सरकारी संगठनों के सहारे चलती है। अब समय अ गया है कि इस सामाजिक आर्थिक राजनीतिक आधिपत्य के छ्द्म खेल को समाप्त किया जाये जो कि कुछ भाग्यशाली लोगों ने अरबों लोगों पर स्थापित कर रखा है।
वर्तमान संदर्भ में इस्लाम ही एकमात्र विकल्प शेष है क्योंकि अन्य सभी सेक्युलर व्यवस्था ने मानवामात्र को निराश किया है। परंतु यह विकल्प कब और कैसे उपलब्ध होगा? यह लम्बी शांतिपूर्ण प्रक्रिया के बाद अस्तित्व में आयेगा जिसका उल्लेख मैंने विस्तार से अपनी पुस्तक में किया है और श्रीमान पाइप्स इस पुस्तक की गलत व्याख्या कर रहे हैं जो कि इस्लाम और अमेरिका के मुसलमानों की विरुद्ध उनके जिहाद के अनुकूल बैठती है।
श्रीमान पाइप्स ने 11 सितम्बर की दुखद घटना की गलत व्याख्या की है । अमेरिका के लोगों को गुमराह करने के लिये और अमेरिका की यहूदी लाबी और इजरायल के विरुद्ध उनकी अँगुली न उठे इसके लिये वे निर्लज्जतापूर्वक मुसलमानों और इस्लाम को आरोपित कर रहे हैं। उन्होंने बिना किसी साक्ष्य के आरोप लगाने वाली भाषा का प्रयोग किया है।
मैं पाठकों के मन में श्रीमान पाइप्स द्वारा उत्पन्न किये गये भ्रम का निवारण करते हुए विचार देना चाहता हूँ कि किस प्रकार ईश्वर के राज्य की स्थापना शांतिपूर्वक हो सकती है ।
इस्लाम मानव का निर्माण करने वाले और उसे शास्वत बनाने वाले की शक्ति को स्वीकार करने के लिये आमंत्रित करता है ताकि वह कयामत के दिन स्वयं को उसके प्रति उत्तरदायी बना सके और पैगम्बर मोहम्मद के जीवन की परिपाटी को अपना सके , यह स्वतन्त्र इच्छा का विषय है न कि बाध्य करने का विषय । यदि कोई व्यक्ति स्वतंत्र रूप से स्वयं को बदलना चाहता है तो उसे कौन रोक सकता है? अब्राहमी आस्था पर आधारित मानवीय करुणा पर आधारित मानव समाज स्थापित करने में यदि इसमें शताब्दी नहीं तो अनेक दशक अवश्य लग सकते हैं। आखिर श्रीमान पाइप्स जैसे लोग इसके विरोध में क्यों हैं?
संयुक्तराज्य अमेरिका के मूल्य व्यक्तिगत मानवाधिकार , परिवार, लोकतंत्र , मजहबी सहिष्णुता, सामाजिक और आर्थिक न्याय , मुक्त बाजार कहीं न कहीं इस्लाम के साथ मेल खाता है। अमेरिका के लोग अपनी स्वतंत्र इच्छा से एक दिन स्वयं को रूपांतरित करना पसंद करेंगे और ईश्वर की इच्छा के प्रति वफादार हो जायेंगे। यह अमेरिका के इतिहास में एक परिवर्तन का बिंदु होगा। समस्त विश्व विशेष रूप से वंचित लोग अमेरिका को प्रेम करने लगेंगे और अंकल सैम का सर्वत्र खुली बाँहों से स्वागत होगा।
इस प्रक्रिया से अमेरिका अपनी फींकी होती छवि को सुधार सकता है: एक ऐसे देश की छवि जिसके दोहरे मानदण्ड हैं , एक सम्पन्न के लिये दूसरा निर्धन के लिये , एक देश जो कि मानवाधिकार के लिये खडा होता है परंतु समस्त विश्व में अलोकतांत्रिक शासन का समर्थन अपने राजनीतिक और आर्थिक हित के लिये करता है ; एक देश जो कि सही और न्यायपूर्ण रूप से आतंकवाद की निंदा करता है परंतु अपने निकट सहयोगी के राज्य आतंकवाद के साथ खडा है; एक देश जो कि स्वतंत्रता से प्रेम करता है परंतु जब उत्पीडित लोग अपने बचने के लिये संघर्ष करते हैं तो यह चुप्पी साध जाता है।
यह सूची काफी लम्बी और पीडादायक है । इस स्थिति का सुधार करने के लिये एकमात्र मार्ग पृथ्वी पर ईश्वर का शासन स्थापित करना है। जब अमेरिका पीडित मानवता और आतंकवाद के मामले में स्वयं न्याय करेगा तो यह अपनी मौत मरेगा।
शमीम ए सिद्दीकी
फ्लशिंग, न्यूयार्क
सम्पादक के नाम :
मुझे यह अत्यन्त आश्चर्यजनक लग रहा है इस्लामी आतंकवादियों द्वारा हमारे सामने उपस्थित किये गये प्रत्यक्ष और वास्तविक खतरे को छोडकर डैनियल पाइप्स अपने लेख का अधिकाँश भाग इस अवास्तविक आशा पर केंद्रित कर रहे हैं कि कुछ मुस्लिम नेता हमारी अधिकाँश जनता को इस्लाम में परिवर्तित कर लेंगे और इसे हमारे राज्य का मजहब बनाकर शरिया के माध्यम से कानूनी प्रक्रिया का शासन करेंगे।
सभी मतांतरण सम्बंधी मत ईसाई चर्च से सिंटोवादी और मूनी सभी अपने ढंग की वैश्विकता का स्वप्न देखते हैं। परंतु मुस्लिम अमेरिका की जनसंख्या का मात्र 1 से 2 प्रतिशत भर हैं और अधिकतर अमेरिका के अश्वेत तक सीमित हैं। उनमें से अधिकाँश नेशन आफ इस्लाम से जुडे हैं जो कि इस्लाम के किसी भी वैधानिक स्वरूप का पालन नहीं करता और एक ऐसे सिद्दांत का प्रचार करता है जो कि दूसरे ग्रह से आने वाले खतरे और नस्लवाद जैसा है। मुझे तो संदेह होता है कि मोरमोन ( जीसस के चर्च का नाम ) अमेरिका की अधिक सम्भावना है न कि मुस्लिम अमेरिका की ।
रोन उंज
पालो अल्टो , कैलीफोर्निया
सम्पादक के नाम :
डैनियल पाइप्स के शानदार लेख को सभी निर्वाचित अधिकारियों और कानून प्रवर्तन अधिकारियों को पढना चाहिये। परंतु श्रीमान पाइप्स अमेरिकी सरकार पर नियंत्रण स्थापित करने की योजना में इस्लामी अतिवादियों की हिंसा की योजना को कम करके आँक रहे हैं।
1998 में अफ्रीका में अमेरिकी दूतावास पर आक्रमण कर 224 लोगों की हत्या और 4,600 लोगों को घायल करने वाले इस्लामी आतंकवादी वादिह हाज के कँपा देने वाले शब्दों पर ध्यान दीजिये । 18 अक्टूबर को न्यूयार्क के संघीय न्यायालय में आजीवन कारावास की सजा पाने पर हाज जो कि अमेरिका का नैसर्गिक नागरिक था और ओसामा बिन लादेन का पूर्व व्यक्तिगत सचिव था उसने जो कुछ कहा उसे वाशिंगटन पोस्ट ने इस प्रकार प्रकाशित किया " इस धरती पर वह और उसके साथी कट्टरपंथी मुसलमान इस बात के लिये स्वतंत्र हैं कि वे और अधिक सुयोग्य शासन की स्थापना करें , एक मजहबी राज्य जो कि अल्लाह के कानून द्वारा संचालित हो जैसा कि अफगानिस्तान में तालिबान का शासन है" ।
यहाँ तक कि 11 सितम्बर के पश्चात भी अमेरिका की इस्लामवादी मस्जिदों के आर्थिक स्रोत और गैर मजहबी गतिविधियों को लेकर गोपनीयता बरती जा रही है जो कि प्रति सप्ताह हजारों डालर एकत्र करते हैं। अमेरिकी सरकार को सत्ता से हटाने के घोषित आशय के साथ कोई भी अनुमान लगा सकता है कि कट्टरपंथी इनका उपयोग मजहबी समझ विकसित करने के लिये इसे खर्च नहीं कर रहे हैं।
इससे हमें यही पता चलता है कि हम एक बडे छलपूर्ण प्रचार का शिकार हो रहे हैं जिसके अंतर्गत मुस्लिम नेता सार्वजनिक रूप से अंग्रेजी में शांति और सहिष्णुता की बात करते हैं और आपस में अरबी भाषा में बात करते हैं कि किस प्रकार अधिक से अधिक अमेरिकी लोगों को मारा जाये और सरकार हो हटाया जाये।
लेस्ली डी सिमोन
वूडरो विल्सन इंटरनेशनल सेन्टर फार स्कालर्स
वाशिंगटन डी सी
सम्पादक के नाम :
क्या अमेरिका को हिंसक या अहिंसक रूप से इस्लामी देश बनाने का प्रयास आपस में इतना पृथक है जैसा कि डैनियल पाइप्स सुझाव देते हैं? क्या अमेरिका के इतिहास में इस्लाम के लिये इससे अधिक कुछ हो सका है जो कि 11 सितम्बर के विमान अपहरण ने कर दिया? नागरिक स्वतंत्रता और विश्वविद्यालयों के लोगों के चलते अमेरिकी बडी संख्या में विश्वास करने लगे हैं कि यह इस्लाम स्वयं ही है जो दुखी पक्ष है न कि इस्लामवादियों द्वारा मारे गये हजारों लोग हैं।
इस्लामी फासीवाद की क्रूरता के बाद भी अमेरिका के लोगों का सामूहिक मतांतरण नहीं हो सका है परन्तु इसने निश्चित ही शानदार पहली पारी खेली है।
एडवर्ड एलेक्जेंडर
सियेटल , वाशिंगटन
सम्पादक के नाम :
डैनियल पाइप्स का सही कहना है कि ब्रिटेन इसका सही उदाहरण है। उनका इस्लामवादी उद्देश्य का वर्णन पूरी तरह विद्वान बर्नार्ड लेविस द्वारा वर्णित मूल सिद्धांत के अनुरूप ही है: इस्लाम समस्त विश्व को दारूल इस्लाम ( इस्लाम का घर) जहाँ कि इस्लाम में विश्वास करने वाले निवास करते हैं तथा दारूल हरब ( युद्ध का घर) जहाँ कि इस्लाम में विश्वास न करने वालों का निवास स्थान होता है। दोनों ही " घरों" में शास्वत रूप से युद्ध की स्थिति बनी रहती है और इनमें तात्कालिक अवरोध केवल कुछ रणनीतिक युद्धविराम से ही होता है और यह संघर्ष तब तक नहीं समाप्त होगा जब तक कि समस्त विश्व दारूल इस्लाम में परिवर्तित नहीं हो जाता जहाँ कि अन्य मतों के लोगों को केवल द्वितीय श्रेणी के नागरिक के रूप में सहन किया जायेगा।
ब्रिटेन में अधिकारी बराबर इस बात का विरोध करते हैं कि वे इस्लाम के साथ युद्ध की स्थिति में हैं वरन वे " आतंकवाद" के साथ युद्ध की स्थिति में हैं जो कि प्रत्यक्ष रूप से संक्रमण की स्थिति में है और इसमें उन " कट्टरपंथियों" की अधिकता है जिनका कि मजहब से कोई लेना देना नहीं है। कट्टर इस्लामवादी और अल मोहाजिरोन (संगठन जो कि अपनी अन्य गतिविधियों के साथ तालिबान के साथ लडने के लिये ब्रिटेन के युवाओं को भर्ती करता है) के नेता उमर बकरी मोहम्मद को अत्यंत सदाशयतापूर्वक टेलीविजन पर स्थान दिया जाता है और उन्हें तब भी सहन किया जाता है जबकि उनकी गतिविधियाँ और बयान स्पष्ट रूप से देशद्रोह का मामला होता है। इसी दौरान उपन्यासकार फे वेल्डन जो कि इस्लाम की समालोचना करते हैं उनपर "इस्लामोफोब" का आरोप लगाया जाता है और मुस्लिम गुट ऐसी आलोचना से संरक्षण के लिये प्रदर्शन करते हैं जिसके लिये सरकार की ओर से मजहबी घृणा पर प्रतिबंध का कानून प्रस्तावित है जिसके अंतर्गत इस्लाम की आलोचना को आपराधिक बनाया जा रहा है।
हर्ब ग्रीर
मैनचेस्टर , इंग़लैंड
डैनियल पाइप्स का उत्तर :
शमीम ए सिद्दीकी कमेंट्री के पाठक हैं यह तो एक शानदार समाचार है। परंतु मुझे भय है कि वे वे इसे ध्यान से नहीं पढते। उन्होंने बहुत सी बातें मेरे ऊपर मढ दीं जिन्हें मैंने अपने लेख में कहीं कहा ही नहीं जैसे कि यहूदी समुदाय अकेला अमेरिका का स्वामी है, न ही मैंने कहा कि गैर यहूदी महत्वहीन हैं और यह तो कहने का प्रश्न ही नहीं उठता कि गैर यहूदियों को इस पृथ्वी पर रहने का अधिकार ही नहीं है। इन रंगीन धारणाओं से एक बात स्पष्ट होती है कि उग्रवादी इस्लाम को सत्ता तक पहुँचाने के रणनीतिकार होना उनकी ताकत हो सकती है परंतु अमेरिकी राजनीति के विश्लेषक होना उनकी ताकत नहीं है।
सिद्दीकी ने अपने पूरे आक्रामक तेवर से मेरे बारे में कही गयी अनाप शनाप बातों में (इस्लाम और इसके इतिहास , पूँजीवाद की असफलता के बारे में, विश्व व्यापार संग़ठनों की रिमोट कंट्रोल आधारित आधुनिक गुलामी, अमेरिका की तथाकथित यहूदी, ईसाई और मुस्लिम विरासत और इस्लामी जीवन पद्धति की सर्वोच्च आवश्यकता के बारे में मेरी अज्ञानता के बारे में कहा ) उन्होंने कहीं भी मेरे लेख के मुख्य बिंदु को स्पर्श नहीं किया है कि वे मुस्लिम निर्मित अमेरिका देखना चाहते हैं।इसके विपरीत वे अनेक अवसरों पर इसे पुष्ट करते दिखे हैं जैसे कि जब वे आशा व्यक्त करते हैं कि एक दिन अमेरिका के लोग " स्वयं को बदल देंग़े और ईश्वर की इच्छा के प्रति आज्ञाकारी हो जायेंगे" ।
इसके बाद भी श्रीमान सिद्दीकी वैमनस्यपूर्वक मेरे द्वारा प्रस्तुत किये गये उनके तर्कों का विरोध करते हैं। क्यों? उनके अनुसार अमेरिका के इस्लामीकरण की प्रक्रिया लम्बी और शांतिपूर्ण होगी। जबकि यही बात मैं कहता हूँ तो बिना किसी साक्ष्य के यह आरोप लगाने वाली भाषा दिखती है। मेरा लेख श्रीमान सिद्दीकी के बिंदु पर ही जोर देता है कि उन्हें दिखता है कि इस्लाम शांतिपूर्वक नियंत्रण स्थापित कर सकता है। तो फिर उन्हें क्रोध क्यों आ रहा है? शायद इसलिये कि उनके ढाँचे में कुछ ही लोगों को यह जानने का अधिकार है और मैंने इसे सामान्य जनता के समक्ष ला दिया जो कि इस्लामी गणतंत्र अमेरिका को लेकर कम उत्साहित होगा।
रोन उज और मैं दूरगामी खतरे को अलग रूप से देखते हैं। मैं मानता हूँ कि अमेरिका के विरुद्ध वर्तमान उग्रवादी इस्लामी हिंसा का प्रवाह भले ही खतरनाक है पर यह अहिंसक तरीके से आप्रवास, नैसर्गिक संतानोत्पत्ति और मतांतरण रूप से किये जाने वाले परिवर्तन की अपेक्षा कहीं कम खतरनाक है। मुझे यह आश्चर्यजनक लगता है कि श्रीमान उंज को इस्लामवादी ईसाई चर्च , मोरमोन , सिंटोवादियों और मूनियों से कहीं अधिक खतरनाक नहीं दिखते। क्या ईसाइयों ने कभी चाहा कि अमेरिका ईसाई देश हो जाये यदि वे ऐसा चाहें तो यह हो जाये परंतु ऐसी महत्वाकाँक्षा अस्तित्व में है ही नहीं। यही बात मोरमोन ,सिंटोवादियों और यूनीफिकेशन चर्च के बारे में भी सही है , इसे प्रमाणित करने के लिये इतना पर्याप्त है कि मुस्लिम राज्य की पहचान के साथ 50 से अधिक राज्य हैं पर एक भी राज्य नहीं है जो मोरमोन , सिंटोवादी या यूनीफिकेशन चर्च द्वारा नियंत्रित हो। अंत में इस देश में अधिकतर मुस्लिम अश्वेत नहीं हैं और अधिकतर अफ्रीकी अमेरिकी मुस्लिम इस्लाम के प्रति लगाव रखते हुए मतांतरित होते हैं न कि नेशन आफ इस्लाम के प्रति लगाव के साथ।
मैं लेस्ली डी सिमोन को उनके सदाशयपूर्ण शब्दों के लिये धन्यवाद देता हूँ । वादिह हाज जैसे लोगों द्वारा उपस्थित खतरे वास्तविक हैं और इन तत्वों के विरुद्ध सख्ती बरती जानी चाहिये। दूसरे शब्दों में कहें तो अमेरिका आज आपराधिक षडयंत्र के विरुद्ध कहीं अधिक तैयार है न कि सांस्कृतिक षडयंत्र के विरुद्ध।
एडवर्ड एलेक्जेन्डर सही कहते हैं कि 11 सितम्बर को लेकर पश्चिम में इस्लाम को लेकर दो विपरीत धारणायें हैं: एक ओर अधिकाँश पश्चिमी उग्रवादी इस्लाम की हिंसा से स्तब्ध हैं तो वहीं कुछ थोडी सी संख्या में लोग इस्लाम के प्रति आकर्षित भी हो रहे हैं। अमेरिका के कुछ इमाम दावा कर रहे हैं मतान्तरण में चार गुना की वृद्धि हुई है।
मिडिल ईस्ट मीडिया एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार , " 11 सितम्बर 2001 के पश्चात अरबी प्रेस में प्रकाशित अनेक लेखों और रिपोर्ट ने दावा किया है अमेरिका में मुस्लिम मतांतरण में तीव्रता आयी है" । 13 दिसम्बर को जारी ओसामा बिन लादेन के विचारों के टेप में भी उसने स्वीकार किया है कि दो देशों में इस रुझान के संकेत मिले हैं जिनमें से एक अमेरिका है और वह भी संतोषजनक रूप से । "हालैंड में एक केंद्र पर इस आपरेशन के साथ जिन लोगों ने इस्लाम को स्वीकार किया उनकी संख्या जितनी थी उतनी पिछले 11 वर्षों में नहीं रही। मैंने इस्लामी रेडियो पर किसी को सुना जिसका कि अमेरिका में स्कूल है और उसने कहा: ' हम उन लोगों की माँग पूरी नहीं कर पा रहे हैं जो कि इस्लाम को जानने के लिये इस्लामी पुस्तकों की इच्छा रखते हैं"। ब्रिटेन के द संडे टेलीग्राफ के अनुसार 11 सितम्बर के आक्रमण के चलते इस्लाम में मतांतरित होने वालों की संख्या में वृद्धि हुई है।
सत्य है , नीदरलैंड के उपप्रधानमंत्री ने बिन लादेन के दावों को नकारते हुए कहा, " इस्लाम के प्रति रुचि बढी है पर इसका अर्थ यह नहीं है कि हम ( डच ) सभी मुस्लिम होना चाहते हैं। बिन लादेन अपने निष्कर्ष निकाल रहा है और उसके बयान में कोई सच्चाई नहीं है। " मैं इस बयान से सहमत नहीं हूँ और बिन लादेन के नजरिये से सहमत पाता हूँ कि चाहे नकारात्मक ही सही इस्लाम के प्रति रुचि नये लोगों को मतांतरित करेगी।
हर्ब ग्रीर सही ही संकेत करते हैं कि उग्रवादी इस्लाम ब्रिटेन में कहीं अधिक विकसित अवस्था में है। इंगलैंड एक ऐसा देश है जहाँ कि इस्लामवादी प्रवक्ता न केवल उपन्यासकार ( सलमान रश्दी)की हत्या की धमकी देते हैं वरन प्रधानमंत्री ( टोनी ब्लेयर) की भी और जहाँ जान वाकर अकेले नहीं हैं जो तालिबान के लिये लडने गये वरन ऐसे दर्जनों अन्य युवा हैं जो कि अपने ही देशवासियों के विरुद्ध लडने के लिये संगठित रूप से अफगानिस्तान गये। कोई भी देख सकता है कि एक अग्रणी इस्लामी व्यक्ति घोषणा करता है , "हम इस देश को इस्लामी छवि में नये सिरे से चित्रित करेंगे" " हम बाइबिल को कुरान से बदल देंगे" । निश्चित रूप से यदि अमेरिका के लोग जानना चाहते हैं कि उग्रवादी इस्लाम क्या है तो उत्तर पश्चिमी यूरोप की ओर देखें। जहाँ तक श्रीमान ग्रीर का शानदार बिंदु है कि ब्रिटेन और अमेरिका के अधिकारी इस बात का उल्लेख करने में हिचक रहे हैं कि " आतंकवादी" और " अतिवादी" कौन है तो उनके लिये पिछले माह के कमेन्ट्री के आलेख "Who is the Enemy?" की विषयवस्तु ही यही है।