मिस्र में मोहम्मद मोर्सी को अपदस्थ किये जाने से मुझे प्रसन्नता भी हुई है और इसने मेरी चिंता भी बढा दी है।
प्रसन्नता की व्याख्या करना तो सरल है। अब तक इतिहास में सबसे बडे राजनीतिक प्रदर्शन के चलते मिस्र में अहंकारी इस्लामवादियों को सत्ता से हटा दिया गया जिन्हें अपनी सत्ता को मजबूत करने से अतिरिक्त अन्य किसी भी बात की चिंता नहीं थी। मध्ययुगीन इस्लामी कानून को लागू करने का अभियान चलाने वाला इस्लामवाद आज विश्व में एकमात्र सक्रिय स्वप्निल आंदोलन है उसे अब असाधारण रूप से अस्वीकृति का सामना करना पडा है। मिस्र के लोगों ने एक प्रेरणादायी भावना का परिचय दिया है।
यदि हुस्नी मुबारक को सत्ता से हटाने के लिये 2011 में 18 दिन लगे थे तो इस सप्ताह मोर्सी कुल चार दिन में ही हटा दिये गये। तुलनात्मक रूप से मरने वालों की संख्या भी 85 से घटकर 40 ही रही। पश्चिमी सरकारें ( विशेष रूप से ओबामा प्रशासन ) जो सोच रही थीं कि मुस्लिम ब्रदरहुड शासन का सहयोग कर वे इतिहास के साथ हैं उन्हें शर्मिंदा होना पडा।
मेरी चिंता कहीं अधिक जटिल है। ऐतिहासिक रिकार्ड यही दर्शाता है कि क्रांतिकारी स्वप्निलवाद तब तक जारी रहता है कि जब तक इससे आपदा न आये। कागज पर फासीवाद और कम्युनिज्म सुनने में तो आकर्षक लगते हैं केवल हिटलर और स्टालिन की वास्तविकताओं ने ही इन आंदोलनों को क्षति पहुँचायी।
इस्लामवाद के मामले में भी यही प्रक्रिया आरम्भ हो चुकी है; निश्चित रूप से इसके प्रति अरुचि का दौर आरम्भ हो चुका है और वह भी दोनों पूर्ववर्ती मामलों की तुलना में कम विनाश के साथ ( इस्लामवाद ने अभी लाखों लोगों को मौत के घाट नहीं उतारा है) कहीं अधिक तेजी से आरम्भ हो चुका है ( वर्षों में न कि दशकों में) । पिछ्ले सप्ताहों में तीन इस्लामवादी शासन को अस्वीकार किया गया है , गेजी पार्क की घटना ने तुर्की में प्रदर्शनों को प्रेरित किया , 14 जून को ईरान के चुनाव में कम कट्टरपंथी इस्लामवादी विजयी हुए और अब नील नदी के साथ सार्वजनिक चौराहों पर मुस्लिम ब्रदरहुड के विरुद्ध भयानक अस्वीकृति दिखाई दे रही है।
परंतु मेरा भय है कि जिस प्रकार तत्काल सेना ने मुस्लिम ब्रदरहुड की सरकार को हटा दिया है इससे इस्लामवादियों को बच जाने का अवसर मिल गया।
मिस्र में भ्रम की स्थिति है। मुस्लिम ब्रदरहुड समर्थक और विरोधी तत्वों के मध्य सम्बंध पहले ही काफी हिंसक रूप ले चुका है और इसके अधिक बुरे स्वरूप में जाने की आशंका है। काप्ट और शिया को केवल उनकी पहचान के नाते मारा जा रहा है। शिनाय प्रायद्वीप अराजक स्थिति में है। अक्षम और लोभी सैन्य नेतृत्व जिसने कि दुष्टतापूर्वक 1952 से 2012 तक पर्दे के पीछे से शासन किया है उसने पुनः नियंत्रण स्थापित कर लिया है।
परंतु सबसे बडी समस्या अर्थव्यवस्था है। पडोसी लीबिया में उथल पुथल के बाद से विदेशी कर्मचारियों के धन की आवक कम हो गयी है। पाइपलाइन में तोड्फोड आदि होने से इजरायल और जार्डन को भेजी जाने वाली प्राकृतिक गैस से होने वाली आय का स्रोत भी समाप्त हो चुका है। पर्यटन तो निश्चित तौर पर ध्वस्त हो चुका है। इस अक्षमताओं का अर्थ है कि हाइड्रो कार्बन उत्पादन वाला यह देश अब पूरी क्षमता से ट्रैक्टर चलाने की स्थिति में भी नहीं है। समाजवादी कालीन फैक्ट्रियाँ अब कम गुणवत्ता के उत्पाद दे रही हैं।
मिस्र अपने खाद्य का 70 प्रतिशत आयात करता है और अब उसके पास इतनी मुद्रा नहीं बची है कि वह गेहूँ, वनस्पति तेल और अन्य सामग्रीके लिये भुगतान कर सके। भुखमरी बढ रही है। जब तक विदेशी लोग मिस्र को अरबों डालर की आर्थिक सहायता को अनिश्चित काल के लिये सब्सिडी पर न दें जो कि भविष्य में सम्भव नहीं दिखता तब तक भुखमरी अवश्यंभावी दिख रही है। पहले ही सात गरीब परिवारों मे से एक ने अपने खाद्य में कटौती कर दी है।
इन सभी खतरों के मध्य इथोपिया की सरकार ने मिस्र की सरकार की कमजोरी का लाभ उठाते हुए कुछ सप्ताह पूर्व नीली नील पर बाँध बनाना आरम्भ कर दिया है जो कि मिस्र को मिलने वाले 55 अरब क्युबिक मीटर जल को घटाकर 40 अरब कर देगा जो कि देश के लोगों के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा जिसे कि नील का वरदान माना जाता है।
जब कि ये आर्थिक आपदा मिस्र पर छाई है तो इसी बीच एक वर्ष के कालखंड में मोर्सी एंड कम्पनी ने इस्लामवादी शासन के दौरान इन्हें बढाने में और सहयोग किया जिसे कि भुला दिया जायेगा और जो इस शासन का उत्तरधिकारी होगा उस पर आरोप आयेगा। दूसरे शब्दों में मिस्र के लोग इस पीडा से गुजर रहे हैं या गुजरेंगे उसकी कोई गणना नहीं है। कौन जानता है कि वे अपनी हताशा में अपने भविष्य की समस्या के समाधान के लिये पुनः इस्लामवादियों की ओर रुख करें। इसी प्रकार मुस्लिम ब्रदरहुड के संक्षिप्त कार्यकाल से अन्य मुस्लिम लोगों को भी लाभ नहीं होगा जो कि मिस्र के अनुभव से उन्हें होना चाहिये था।
एक दूसरे विषय में हडसन इन्स्टीट्यूट के ली स्मिथ का अनुमान है कि मिस्र के नये शासक देश को पुनः एक करने के लिये और शांति के लिये अंतरराष्ट्रीय समुदाय से धन लेने के लिये इजरायल के विरुद्ध एक सीमित काल का युद्ध कर सकते हैं , ताकि मिस्र मध्य पूर्व में पुनः अपनी प्रतिष्ठा प्राप्त कर सके। वैसे ऐसे युद्ध से कोई भी उद्देश्य सिद्ध नहीं होगा , मिस्र की सेना बुरी तरह पराजित होगी , देश और भी गरीब और कमजोर होगा परंतु इस सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता । मिस्र के नेता पहले भी मूर्खतपूर्ण ढंग से इजरायल से भिड चुके हैं।
संक्षेप में मोर्सी के सत्ता से जाने की मेरी प्रसन्नता मेरी चिंता से संतुलित है कि कुशासन से सीख नहीं ली जायेगी।