सीरिया को लेकर 21 अगस्त से आरम्भ हुये और 14 सितम्बर को समाप्त हुए साढे तीन सप्ताह तक चले घटनाक्रम से पहले कूटनीति ने इस प्रकार की भ्रमित और असंगत स्थिति का सामना शायद ही कभी किया हो। इसमें कौन जीता और कौन हारा? इसका निश्चित उत्तर प्राप्त करना तो कठिन है परंतु इतना तो तय है कि बशर अल असद चालक की भूमिका में हैं और यही प्रतीत होता है कि पुतिन और मुल्लाओं को लाभ होगा जबकि ओबामा , एरडोगन और इजरायल को हानि होगी।
हाल के घटनाक्रम को रेखाँकित करते हुए आरम्भ करते हैं:
21 अगस्त: दमिश्क के निकट घौटा में नागरिकों पर रासायनिक हथियार से हमला किया गया , जिसके बारे में अनुमान लगाया गया कि यह सीरिया के असद शासन की ओर से किया गया है ।
28 अगस्त: बराक ओबामा ने रासायनिक हमले के लिये असद शासन को दन्डित करने की अपनी इच्छा प्रकट की और इसके लिये शक्ति का प्रयोग करने का संकेत दिया।
31 अगस्त: ओबामा ने अपने कदम वापस खींचे और शक्ति का प्रयोग करने के लिये कांग्रेस से संस्तुति की बात कही जो कि उन्हें नहीं करना था।
अगले सप्ताह तक अप्रत्याशित घटनाक्रम में सीरिया पर हमले के विरुद्ध लोकप्रिय और कांग्रेस का विरोध इस बिंदु तक पहुँच गया कि यह स्पष्ट हो चला कि ओबामा को कांग्रेस से वह संस्तुति नहीं मिलेगी जो वह चाहते हैं।
9 सितम्बर:विदेश मंत्री जान केरी ने आश्वासन दिया कि " अत्यंत ही छोटा" हमला होगा साथ ही स्वतः स्फूर्त बयान दिया कि सीरिया के रासयनिक हथियारों के अन्तरराष्ट्रीय नियंत्रण की स्थिति में हमले से बचा जा सकता है। रूस ने इस बयान को पकड लिया।
10 सितम्बर: ओबामा ने सीरिया सरकार पर हमले के खतरे को वापस ले लिया और कांग्रेस से अपना निवेदन भी वापस ले लिया।
14 सितम्बर: अमेरिका और रूस की सरकारों ने Framework for Elimination of Syrian Chemical Weapons एक समझौते पर हस्ताक्षर किये ताकि इस बात को सुनिश्चित किया जा सके कि सीरिया के रासायनिक हथियारों के कार्यक्रम को शीघ्र और सुरक्षित रूप से नष्ट किया जायेगा।
आइये इस बात के आकलन से आरम्भ करें की इस पूरे नाटक में दो मुख्य पात्रों के समक्ष क्या विकल्प हैं:
बशर अल असद :जो ढाँचा निर्धारित किया गया है उसके अनुसार इस पूरी प्रक्रिया के संचालन के लिये महत्वपूर्ण निर्णय उनके प्रमुख संरक्षकों ( मोस्को और तेहरान ) और सलाहकारों ( असद परिवार) के प्रभाव से होगा। उनके समक्ष दो विकल्प हैं या तो रूस और अमेरिका के ढाँचे के तहत और रासायनिक हथियार नियंत्रण संगठन के अनुरूप इस निर्णय का पालन करें या न करें जो कि रासायनिक हथियार संधि को विनियमित करती है जिसमें शामिल होने का आश्वासन सीरिया ने दिया है। एक रणनीतिक और अक्षम नेता के रूप में उनके कार्यों के बारे में भविष्यवाणी करना अत्यंत कठिन है परंतु मुझे लगता है कि वे इसका पालन नहीं करेंगे क्योंकि (1) अपने शासन को बचाये रखने के लिये उन्हें इन हथियारों की आवश्यकता है । (2) सीरिया में चल रहे गृह युद्ध के चलते उन्हें इस संधि से बच निकलने का अवसर मिल जायेगा। (3) ओबामा के रिकार्ड को देखकर नहीं लगता कि वे बदले में हमला करेंगे । (4) सद्दाम हुसैन का उदाहरण भी है कि किस प्रकार इराक ने लुका छिपी का खेल खेलकर पूरी प्रक्रिया को धीमा कर 1990 के दशक में जनसंहारक हथियारों के विनाश को रोक दिया था ।
बराक ओबामा :अगस्त 2012 में अपने " लाल पंक्ति या रेड लाइन" की धमकी के बयान को लेकर किनारे हो चुके अमेरिकी राष्ट्रपति को रूस और अमेरिकी समझौते ने उनके लिये दोहरा या कोई भी जुआ नहीं छोडा है और वे पूरी तरह अपने सीरियाई सहयोगी की दया पर निर्भर हैं। यदि असद निर्णय का पालन करते हैं तो ओबामा विदेश नीति के मेधावी बनकर उभरेंगे कि बिना एक भी गोली दागे सीरिया के रासायनिक हथियारों से मुक्ति प्राप्त कर ली। परन्तु यदि असद निर्णय का पालन नहीं करते जिसकी सम्भावना है तो ओबामा को अपनी विश्वसनीयता बचाने के लिये शासन पर हमला करना होगा फिर वो चाहे उनके वामपंथी आधार , कांग्रेस के विचार, संयुक्त राष्ट्र संघ , पोप की इच्छा के विपरीत हो या फिर इससे सीरिया में जिहादियों को बल मिले या फिर चाहे अमेरिका लम्बे समय के लिये अनावश्यक सैन्य अभियान में उलझ जाये। मुझे लगता है कि ओबामा हमला करेंगे परंतु अपनी लोकप्रियता और असद शासन को कोई क्षति पहुँचाये बिना।
संक्षेप में मेरी भविष्यवाणी है कि असद निर्णय का पालन नहीं करेंगे और ओबामा सांकेतिक रूप से हमला करेंगे। यदि इस स्थिति का अनुमान करें तो प्रमुख पात्रों के लिये इसके क्या अर्थ होंगे:
- बशर अल असद : अमेरिकी हमले से बच जाने की बात कहेंगे और इससे वे अधिक शक्तिशाली बनकर उभरेंगे।
- बराक ओबामा: उनकी विदेश नीति की विश्वसनीयता और घटेग़ी और साथ ही अमेरिका की भी, विशेष रूप से ईरान के परमाणु तैयारी पर कम से कम 2017 तक इसका प्रभाव होगा।
- व्लादिमिर पुतिन: चाहे असद निर्णय का पालन करें या नहीं , चाहे ओबामा हमला करें या नहीं रूस के राष्ट्रपति को कोई हानि नहीं होने वाली। बल्कि वे तो नोबेल शांति पुरस्कार के योग्य हो गये हैं। वही सबसे बडे विजेता हैं।
- ईरान: तेहरान को लाभ हुआ है और इसका आत्मविश्वास बढा है कि उसके परमाणु आधारभूत संरचना अमेरिकी हमले से सुरक्षित हैं जबतक कि ओबामा असद शासन की ईंट से ईंट न बजा दें।
- रिसेप तईप एरडोगन: इससे उलट: अंतरराष्ट्रीय युद्ध दल के नेता के रूप में उन्हें हानि हुई है जबतक ओबामा गम्भीरतापूर्वक असद पर हमला न करें।
- इजरायल : यदि असद निर्णय का पालन करें तो ओबामा के साथ इजरायल को भी लाभ होगा ।परंतु यदि असद ऐसा नहीं करते तो उन्हें हानि होगी जिसकी सम्भावना अधिक है।
अंत में दो विरोधाभास: रूस और अमेरिका के समझौते से संकट का हल नहीं हुआ है वरन इसमें अधिक देरी हुई है और यह संकट गहरा हो गया है। ओबामा ने एक वर्ष पूर्व जो "रेड लाइन" का बिनाभाव का बयान दिया था वह एक अस्पष्ट भूल थी और यह उनके राष्ट्रपतित्व के विदेश नीति की भूल को और अधिक बढायेगी।