हम किससे लड रहे हैं? 11 सितम्बर के पश्चात दो प्रमुख दोषी उभरे हैं आतंकवाद और इस्लाम । परंतु सत्य कहीं अधिक नाजुक है और इन दोनों के मध्य है , इस्लाम का आतंकवादी संस्करण ।
आतंकवाद. स्थापित लोग – राजनेता, अकादमिक , मजहबी नेता , पत्रकार अनेक मुसलमानों के साथ कहते हैं कि आतंकवाद शत्रु है। यह सब कुछ " बुरे लोगों" द्वारा किया जा रहा है जिनका इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है और वे आतंकवाद के भ्रमित सम्प्रदाय से हैं ।
विदेश मंत्री कोलिन पावेल ने इसे संक्षेप में इस रूप में कहा कि 11 सितम्बर की घटना को " इस संदर्भ में नहीं देखा जाना चाहिये कि उसे अरबवासियों ने या इस्लामी लोगों ने अंजाम दिया है, इसे आतंकवादियों ने अंजाम दिया है" । इस बात का बहाना बनाने से कि शत्रु आतंकवाद है और उसका इस्लाम से कोई सम्बंध नहीं है , इस्लाम से जुडे अनेक नाजुक प्रश्नों के उत्तर से बचा जा सकता है और इससे अंतरराष्ट्रीय गठबंधन निर्मित करने और घरेलू स्तर पर प्रतिक्रिया की सम्भावना को भी कम किया जा सकता है।
परंतु इसका कोई अर्थ नहीं है। तालिबान सरकार, ओसामा बिन लादेन, जान वाकर लिंद, रिचर्ड रीड और जकारियस मौसौवी सभी अत्यंत उत्साही मुस्लिम हैं जो कि अपने मजहब की ओर से इसे अंजाम दे रहे हैं। इसके अतिरिक्त उन्हें मुस्लिम जगत में व्यापक समर्थन मिला है ( याद करिये सितम्बर में बिन लादेन के चित्र को लहराते हुए विशाल प्रदर्शन ? ) । यह सच है कि वे आतंकवादी हैं परंतु किसी विशेष आस्था और विश्वास के साथ।
" आतंकवाद" को दोष देने का अर्थ होगा कि इसके साथ जुडे विश्वास और आस्था को नकारना। यदि हमारे शत्रु घृणा से प्रेरित आतंकवादी हैं जैसा कि राष्ट्रपति बुश का कहना है तो कोई उन्हें मारने के सिवा और क्या कर सकता है? घृणा के पीछे कोई विचारधारा या बौद्धिक ढाँचा नहीं होती और उसका प्रतिरोध किया जा सकता है । पश्चिम के पास स्वयं को अगले आक्रमण से बचाने के लिये बंदूक से अपनी रक्षा के सिवाय कोई मार्ग नहीं है। विजय के लिये कोई रणनीति नहीं है केवल तरीका है कि स्वयं को क्षति से बचाया जा सके।
इस्लाम . पश्चिमी सडकों पर लोग इस्लामी मजहब को ही समस्या के रूप में देखना पसंद करते हैं। इस विचार के अनुसार पिछली एक सहस्राब्दी से मुस्लिम और अरबवासी ईसाइयों के शत्रु हैं और अब भी हैं और आगे भी इसी भूमिका में रहेंगे ।
इस तर्क के प्रवक्ताओं का जो कि राजनीतिक परम्परावादी और मतांतरण कराने वाले हैं उनका कहना है कि इस शत्रुता का कारण कुरान है और इसमें परिवर्तन नहीं हो सकता। यह तर्क भी उचित नहीं है। यदि मुस्लिम अपने स्वभाव से शत्रु हैं तो तुर्की के व्याख्या कैसे की जा सकती है जो कि अपने सेक्युलर स्वभाव के साथ पश्चिम के साथ अच्छे सम्बंध बनाकर रखता है? यदि सभी मुस्लिम कुरान के सिद्धांतों में विश्वास करते हैं तो अल्जीरिया के उन हजारों लोगों का क्या जिन्होंने कि इस्लामी शासन का प्रतिरोध करते हुए अपने प्राण गँवा दिये?
यदि इस्लाम ही समस्या है तो विजय के लिये कोई सम्भावित रणनीति नहीं हो सकती । इसमें अंतर्निहित है कि अरबों लोग या फिर लाखों मुस्लिम जो पश्चिम में निवास करते हैं वे अपरिवर्तनीय शत्रु हैं। उन्हें या तो इस्लाम से मतांतरित कर लिया जाये या फिर उन्हें रोका जाये और दोनों ही वास्तविकता से परे कार्यक्रम हैं।
- इस बात पर जोर देते रहने से कि इस्लाम शत्रु है परिणाम संस्कृति का संघर्ष होगा जिसे कि नहीं जीता जा सकता।
- आतंकवाद या इस्लाम की ओर अँगुली उठाने से न तो समस्या की व्याख्या होती है और न ही परिणाम निकलता है।
इस समस्या को समझने का एक तीसरा तरीका भी है, जो कि दोनों आवश्यकताओं को संतुष्ट करता है।
सैकडों वर्ष पुराना मजहब इस्लाम मुद्दा नहीं है परंतु इसकी अतिवादी शाखा मुद्दा है। उग्रवादी इस्लाम यहीं से निकलता है परंतु यह शत्रुवत, नारी विरोधी , शत्रु की पराजय पर प्रसन्न होने वाला , सहस्राब्दी भावना वाला , आधुनिकता विरोधी , ईसाई विरोधी , सेमेटिक विरोधी , आतंकवादी भाव वाला , जिहादी मानसिकता वाला और इसका आत्मघाती स्वरूप है। सौभाग्य की बात यह है कि यह मुसलमानों का 10 से 15 प्रतिशत ही है , इसका अर्थ है कि बडी संख्या में बहुसंख्यक नरम संस्करण के पक्षधर हैं।
इसके लिये अत्यंत सामान्य और प्रभावी रणनीति है समस्त विश्व में उग्रवादी इस्लाम को कमजोर करो और इसके नरम विकल्प को सशक्त करो। सैन्य , कूटनीतिक , कानूनी , बौद्धिक और मजहबी रूप से इससे युद्ध करो । अफगानिस्तान, सउदी अरब और अमेरिका में और प्रायः सभी जगह इससे युद्ध करो।
इस युद्ध में नरमपंथी मुस्लिम प्रमुख सहयोगी होंगे। यह सही है कि वे अभी कमजोर और डरे हुए हैं परंतु यदि मुस्लिम विश्व को कट्टरवाद के संघर्ष से बाहर निकालना है तो इनका सहयोग अतिआवश्यक होगा। एक बार अमेरिकी सरकार उनकी सहायता करे तो वे शक्तिशाली बनकर उभर सकते हैं। ( अगर तुलना करें तो किस प्रकार कुछ माह पूर्व उत्तरी गठबंधन दयनीय दिखाई दे रहा था परंतु अब वही अफगानिस्तान चला रहा है)
केवल उग्रवादी इस्लाम पर ध्यान देने से ही अमेरिका स्वयं अपनी रक्षा अपने संकल्पित शत्रु से कर सकता है और प्रायः इसे पराजित भी कर सकता है।