शिकागो – ऐसा प्रतीत होता है कि ईरान सोवियत धुरी की ओर खिसक रहा है। अयातोला रुहोल्लाह खोमैनी ने प्रायः तेज आवाज में शैतान अमेरिका के विरुद्ध बातें की हैं परंतु उन्होंने शायद ही अफगानिस्तान पर सोवियत आक्रमण की निंदा की हो। 53 अमेरिकी बंधकों को बंधक बनाये रखने के उनके समर्थन के चलते पश्चिमी देशों ने ईरान के साथ आर्थिक सम्बंध काट लिये हैं और इससे यह देश अपने व्यापार के लिये सोवियत संघ पर अधिक निर्भर हो गया है।
आखिर खोमैनी अमेरिका को अलग थलग क्यों करते हैं जो कि एक ऐसा देश है जो सोवियत संघ से उनकी रक्षा कर सकता है। पश्चिमी लोग इस बात का उत्तर पाने में असमर्थ हैं और दुखी होकर खोमैनी को अतार्किक घोषित करते हैं। परंतु यह पूरी तरह स्थिति को स्पष्ट नहीं करता । खोमैनी सनकी नहीं है वरन वह ईरानी संस्कृति में इस्लामी परम्परा का निर्वाह कर रहे हैं और उनकी कार्रवाई इस परम्परा के अनुरूप ही है।
पश्चिम के विचार से सोवियत संघ से ईरान को अमेरिका से अधिक खतरा है। सीमा से सटा एक बडा क्षेत्र इससे लगा है और यह नास्तिक विचार को प्रचारित करता है जो कि इस्लाम से असंगत है साथ ही ईरान के जीवन से जुडी अन्य संस्थायें जैसे कि व्यक्तिगत सम्पत्ति और परिवार इकाई को भी आदर्श नहीं मानता ।
परंतु अयातोला के लिये अमेरिका कहीं बडा खतरा है। उनका विश्वास है कि 1953 के पश्चात से अमेरिकी सरकार ने शाह और उनके शासन सहित ईरान की जनता पर नियंतत्रण स्थापित कर रखा था, साथ ही उन्हें लगता है कि वाशिंग़टन उन्हें अपदस्थ कर अपनी पुरानी शक्ति को वापस पाना चाहता है। बंधकों को छुडाने के असफल प्रयास से उनका यह भय और पुष्ट हो गया।
उनका मानना है कि सोवियत संस्कृति से अधिक अमेरिकी संस्कृति का प्रवेश ईरान में हो रहा है और अयातोला खोमैनी की नजर में यह खतरा है जो कि इस्लामी जीवन शैली के लिये खतरा उत्पन्न कर रहा है क्योंकि इसकी जीवन शैली ( एल्कोहल, जींस, पाप संगीत , नाइटक्लब , मूवी , नृत्य , संयुक्त स्नान और पोर्नोग्राफी) इसका अतिशय भोगवाद और विदेशी विचारधारा ( जैसे कि राष्ट्रवाद और उदारवाद) उन्हें एक खतरा दिखाई देता है। वे और उनके समर्थक अत्यंत भावना के साथ ऐसा ईरान चाहते हैं जो कि विदेशी प्रभाव से मुक्त हो। जब तक उन्हें अमेरिका ईरान के लिये सबसे बडा खतरा दिखाई देता है सोवियत संघ पर उनकी निर्भरता से उन्हें कोई नहीं रोक सकता। यद्यपि हम ईरान के लोगों के साथ मजहब के प्रति सम्मान , व्यक्तिगत सम्पत्ति और परिवार इकाई को साझा करते हैं पर अयातोला शासन पश्चिम के विरुद्ध मार्क्सवादियों के साथ भी काफी कुछ समान पाता है।
दोनों ही पश्चिम को विरोधी मानते हैं। खोमैनी और सोवियत दोनों ही पश्चिमी संस्कृति में आकर्षण के पक्ष को लेकर चिंतित हैं और इसे सीमित करना चाहते हैं।
एक जटिल समानता है कि इस्लाम ईसाइयत के स्थान पर इस्लाम को ईश्वर के अंतिम सत्य के रूप में स्थापित करना चाहता है तो कम्युनिज्म पूँजीवाद के स्थान पर स्वयं को अंतिम आर्थिक विकास सिद्ध करना चाहता है। पश्चिम के दोनों ही सम्भावित उत्तराधिकारी इसके धन और शक्ति को लेकर इस पर कुपित हैं। इसकी प्रतिक्रिया में वे पश्चिम के विरुद्ध प्रतिरोध जारी रख रहे हैं। जिस प्रकार इस शताब्दी के आरम्भ में उन्होंने यूरोपियन साम्राज्यवाद के विरुद्ध आक्रमण का नेतृत्व किया , आज सोवियत संघ और पेट्रोलियम निर्यातक देशों के मुस्लिम सदस्य पश्चिमी देशों की आर्थिक और राजनीतिक शक्ति को चुनौती दे रहे हैं। दोनों का क्रांतिकारी स्वभाव है और दोनों ही सत्य पर एकाधिकार का दावा करते हैं और इसलिये अशुद्ध और दुष्ट मार्ग को अगले दिन के लिये क्यों अस्तित्व में रहने दिया जाये? दोनों ही बढ चढकर , पूरी तरह अपने सिद्धांत में पारंगत कर , पूर्वाग्रहजनित कानूनी न्यायालय और दूसरों पर गोली चलाने वाली टुकडी के सहारे अपनी विचारधारा का प्रचार करते हैं। दोनों ही विरोधी स्वर को सहन नहीं करते और विचारों में विश्वास न करने वालों को शंका की दृष्टि से देखते हैं जिससे कि उनमें और बाहरवालों में गहरी अविश्वास की खाई बन जाती है।
सक्रिय इस्लाम और मार्क्सवाद राष्ट्रवाद पर अंतरराष्ट्रीय एकजुटता को महत्व देता है , व्यक्ति के स्थान पर समुदाय और स्वतंत्रता के स्थान पर समानता को स्थान देता है।
दोनों ही सोशल इंजीनीयरिंग में लगे हैं जो कि सबसे महत्वपूर्ण चिंता का विषय है। उदारवाद के कुछ सम्मानजनक लक्ष्य सहित वास्तविक अपेक्षा को प्राप्त करने के बाद भी सक्रिय मुस्लिम और मार्क्सवादी जो कुछ प्राप्त कर सके हैं वह सुनने में भले ही अच्छा लगे पर समाज के स्तर से अभी भी दूर है। उदाहारण के लिये इस्लाम रूपये में रुचि को प्रतिबंधित करता है और कम्युनिज्म लाभ को बुरा मानता है फिर भी दोनों में व्यापारिक जीवन आवश्यक है।
अंत में चूँकि सक्रिय इस्लाम और मार्क्सवाद जीवन के सभी पक्षों को स्पर्श करता है इसलिये उनकी सरकारें अधिनायकवाद की ओर झुकी होती हैं।
हालाँकि खोमैनी अमेरिका और सोवियत संघ दोनों के साथ ही विचारधारा के कुछ तत्व साझा करते हैं परंतु एक निष्ठावान मुस्लिम होने के चलते वे अपने सम्प्रदाय की सर्वोच्चता पर विश्वास करते हैं और दोनों ही विकल्पों की निंदा करते हैं।
हालाँकि अंत में विचारधारा के स्थान पर खोमैनी ईरान के विदेशी सम्बंधों को अपनी आशा और भय को आधार बनाकर स्थापित करते हैं न कि मजहबी लगाव के आधार पर।
वर्तमान स्थिति में खोमैनी सोवियत संघ से अधिक अमेरिका से भयभीत हैं ; उनके अनुसार रूस तो अभी ईरान के निकट ही है पर अमेरिका तो पहले से ईरान में है। हमारी संस्कृति के चलते पिछले अनेक दशकों से ईरान की जीवन शैली नगण्य हो चली है न कि रूसियों के चलते । जब तक ये भय महत्वपूर्ण भूमिका में रहेंगे यह अपेक्षा की जा सकती है कि अयातोला खोमैनी और उनकी अनुयायी सोवियत संघ की ओर खिसकते जायेंगे क्योंकि उनकी नजर में वह विचारधारा हमारी विचाराधारा से बुरी नहीं है।