बराक ओबामा ने पिछले साढ़े छह वर्ष में बार बार संकेत दिया है कि विदेश नीति में उनकी पहली प्राथमिकता न तो चीन है, न ही रूस , न मेक्सिको है वरन ईरान है। वे ईरान को पश्चिम के साथ उसकी बर्फ जम चुकी स्थिति से बाहर लाना चाहते हैं , इस्लामी गणराज्य ईरान को अन्य देशों की तरह तथाकथित अंतरराष्ट्रीय समुदाय के एक सामान्य सदस्य के रूप में विकसित करना चाहते हैं और इसकी दशकों पुरानी आक्रामकता और दुशमनी को समाप्त करना चाहते हैं ।
अपने आप में यह एक योग्य उद्देश्य है और यह सदैव ही अच्छा होता है कि शत्रुओं की संख्या को कम किया जाए ( इससे दिमाग में निक्सन की चीन यात्रा याद आ जाती है।
ईरान परमाणु समझौते का व्यवहार अत्यंत दुखद है और ओबामा प्रशासन इसमें अनियमित , आत्मसमर्पण पूर्ण , तथ्यों को बढ़ाचढ़ाकर प्रस्तुत करने वाला और कुछ अर्थों में छल से भरा रहा है । इसने बड़ी जोरदारी से कुछ शर्तों की मांग की और फिर तुरंत बाद इन शर्तों पर आत्मसमर्पण कर दिया । विदेश मंत्री या सेक्रेटरी स्टेट जान केरी ने स्पष्ट शब्दों में घोषणा की कि हमें " इस बात की पुख्ता जानकारी है" कि ईरान ने अभी तक अपने परमाणु कार्यक्रम में क्या किया है और इसलिए इस बात की कोई आवश्यकता नहीं है कि इनकी निरीक्षण के लिए किसी प्रकार की बेसलाइन निर्धारित की जाए ।
आखिर कोई बालिग़ और इतने उच्च स्तर का अधिकारी कैसे इस प्रकार का बयान दे सकता है?
प्रशासन ने अमेरिका के लोगों को अपनी ओर से दी गयी छूटों को लेकर भी अमेरिका के लोगों को गुमराह किया : नवम्बर २०१३ के संयुक्त कार्य योजना के उपरांत इसने तथ्यों को लेकर फैक्ट सीट जारी की जिसे तेहरान ने असत्य बताया । अब अनुमान लगाएं कि कौन सही है? ईरान के लोग , संक्षेप में संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार ने स्वयं को गंभीर रूप से अविश्सनीय सिद्ध कर दिया है।
आज जिस समझौते पर हस्ताक्षर हुए हैं उससे प्रतिबंध का काल समाप्त होता है और ईरान को इस बात की अनुमति मिल जाती है कि वे अपनी अधिकतर परमाणु गतिविधि को छुपा सकते हैं और यदि ईरान कोई छल करता है तो उस पर कोई कार्रवाई नहीं हो सकती और यह समझौता एक दशक के बाद समाप्त होता है । परमाणु हथियार के लिए ईरान के मार्ग को सरल और विधिसम्मत कर दिया गया है : तेहरान को इस समझौते पर हस्ताक्षर के बदले १५० बिलियन अमेरकी डॅालर मिलेंगे जो कि मध्य पूर्व और उससे आगे भी इसकी आक्रामकता की क्षमता को बढ़ाने में सहयोग करेगा ।
यदि अन्य शेष P5+1 देशों की बात न भी करें तो अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका के पास इस्लामी गणराज्य ईरान के मुकाबले इतनी विशाल आर्थिक और सैन्य शक्ति है कि यह एकतरफा छूट अंत में एक धोखा लगता है ।
प्रशासन ने पिछले छह वर्षों में स्वीकार की गयी विदेश नीति की भूलों में से कोई भी संयुक्त राज्य के लिए विनाशकारी नहीं रही है: यहां तक कि चीन के द्वारा द्वीप का निर्माण , रूस का क्रीमिया ले जाना या फिर लीबिया, यमन , सीरिया और इराक के गृहयुद्ध में फिसल जाना भी विनाशक नहीं था , परन्तु ईरान की डील एक विनाश की स्थिति का निर्माण है ।
अब पूरा ध्यान अमेरिकी कांग्रेस पर आ गया है कि वह आज के समझौते की पुनर्समीक्षा करे , जिसके लिए तर्क के आधार पर कहा जा सकता है कि न केवल अमेरिका के इतिहास का या आधुनिक काल का बल्कि सार्वकालिक दृष्टि से यह सबसे बुरा समझौता है । कांग्रेस को इस समझौते को अस्वीकार कर देना चाहिए । रिपब्लिक सीनेटर और प्रतिनिधियों ने इस विषय पर अपना सख्त रुख दिखाया है , क्या अब डेमोक्रेट भी इस अवसर पर सामने आएंगे और इतने वोट दिलाएंगे कि वीटो को अस्वीकार किया जा सके ? उन्हें दबाव को अनुभव करना चाहिए ।