तुर्की में ७ जून को होने जा रहे राष्ट्रीय संसदीय आम चुनाव को लगभग सभी आकलन में एक शताब्दी पुराने गणतंत्र के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण चुनाव बताया जा रहा है । द न्यूयार्क टाइम्स ने इसे " अतिमहत्वपूर्ण " बताया है , लन्दन के दैनिक डेली टेलीग्राफ ने " धुरी" तो हफिंगटन पोस्ट ने " इसे गणतंत्र के इतिहास का सबसे बड़ा चुनाव" कहा है । द फायनेंसियल टाइम्स ने घोषणा की है कि " तुर्की का भविष्य" दांव पर है ।
परन्तु मैं इन सभी आकलन से असहमत हूँ । मुझे यह तुर्की के सबसे कम महत्व का चुनाव प्रतीत हो रहा है । इसके कारण निम्नलिखित हैं ।
इस बार हर बार की तरह इस बात पर ध्यान नहीं है कि " सरकार कौन बनाएगा?" विश्लेषक इस बात पर सहमत हैं कि जस्टिस एंड डेवलेपमेंट पार्टी ( अदालत वे कालकिनमा पार्टीसी या एकेपी ) वर्ष २००२ से सत्ता में है और पुनः यही विजयी होगी । परन्तु क्या इसे कोई कनिष्ठ सहयोगी भी साथ रखना होगा? क्या इसे इतनी सीटें मिल जाएंगी कि यह संविधान में संशोधन कर सके और राष्ट्रपति रिसेप तईप एरडोगन की इस योजना को पूर्ण कर सके कि वे अपनी भूमिका को एक प्रतीकात्मक से परिवर्तित कर कार्यपालक की बना सकें ?
एरडोगन चाहते हैं कि उन्हें इतने विस्तृत अधिकार मिलें जो कि सउदी राजपरिवार के बराबर के हों । विडम्बना यह है कि ये अधिकार प्रधानमंत्री से छीने जाएंगे जिस पद पर एरडोगन स्वयं सात वर्षों तक पिछले अगस्त तक रहे जब उन्होंने स्वेच्छा से इस पद को छोड़ दिया और अपने स्थान पर अपने द्वारा चुने शालीन अकादमिक व्यक्ति को अपना उत्तराधिकारी बना दिया और स्वयं अधिक ऊंची पर कम अधिकार वाले राष्ट्रपति पद पर चले गए ।
यदि संख्यात्मक रूप से देखें तो तुर्क लोगों के समक्ष सबसे रोचक प्रश्न है कि क्या एकेपी को सामान्य बहुमत मिलेगा ( ५५० सीटों में २७६) ताकि अकेले शासन कर सके , ३\५ का बहुमत मिलेगा ( ३३० सीटें ) जनमत संग्रह के साथ संविधान में परिवर्तन कर सके या फिर दो तिहाई बहुमत मिलेगा ( ३६७ सीटें ) ताकि अकेले ही संविधान में संशोधन कर सकें ।
मुख्य नाटक तो एक नयी पार्टी को लेकर है और वह है वामपंथी कुर्द लोगों पर केंद्रित पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ( हाकलारिन डेमोक्रेटिक पार्टीसी या एचडीपी) : क्या इसे सभी मतों का १० प्रतिशत मिलेगा की अपने पहले चुनाव अभियान में संसद में प्रवेश कर सके? यदि ऐसा संभव हुआ तो इसके चलते एकेपी को सामान्य बहुमत नहीं मिलेगा , और यदि ऐसा नहीं हुआ तो एकेपी को यह संख्याबल प्राप्त हो जाएगा और शायद जादुई ३३० का संख्याबल भी ।
परन्तु अन्य लोगों को अधिक नाटक कहाँ दिखा रहा है , जहाँ कि पहले जैसी स्थिति ही है और इसके दो कारण हैं । पहला, एकेपी पहले भी मतपेटी में हेराफेरी सहित अनेक दांवपेंच पहले भी कर चुकी है और अनेक ऐसे संकेत मिल रहे हैं जिससे प्रतीत होता है कि पुनः ऐसा हो सकता है और विशेष रूप से कुर्द इलाकों में ।
दूसरा, नौ माह पूर्व जबसे एरडोगन का राष्ट्रपति काल आरम्भ हुआ है तभी से उन्होंने संविधान में परिवर्तन की इच्छा जाहिर की है और मानों ये परिवर्तन हो चुके हैं , उन्होंने कैबिनेट बैठक की अध्यक्षता की , एकेपी प्रत्याशियों का चयन किया , न्यायपालिका की और झुके और प्रधानमंत्री के स्टाफ से प्रतिस्पर्धा के लिए लोग नियुक्त किये। वे सभी विभागों के स्वामीं हैं जिसका वे पर्यवेक्षण करते हैं ।
उन्होंने राष्ट्रपति द्वारा राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने के प्रतिबन्ध की परवाह नहीं की , देश को गैरकानूनी रूप से अपने रास्ते ले जा रहे हैं , सरकारी मीडिया मानों उनकी पूजा करता हो , प्रायः अपने हाथों में कुरान लेकर लोगों से एकेपी के लिए वोट माँगते हैं और फिर अपनी ताकत अपने पूर्ववर्तियों की तरह बढ़ाते हैं ।
उन्होंने दोषों से युक्त लोकतंत्र और नाटो के सहयोगी को एक दुष्ट राज्य में परिवर्तित कर दिया और पश्चिमी सरकारें पूरी भावना से १९९० से ही अंकारा को एक भरोसेमंद साथी मान रहे हैं और इस तानाशाही को बढ़ावा दे रहे हैं ।
इसलिए मेरा समापन यह है कि एकेपी को कितनी सीटें मिलती हैं इसका अधिक महत्व नहीं है । एरडोगन अपने रास्ते बढ़ते रहेंगे और परम्परा या कानूनी मर्यादा को दरकिनार कर चाहे संविधान में संशोधन हो या न हो। हाँ निश्चित रूप से पूरी तरह विधिसम्मत होने पर उनकी मर्यादा बढ़ आएगी पर पहले ही वे तानाशाह बन चुके हैं और तुर्की का मार्ग निश्चित हो चुका है ।
घरेलू मोर्चे पर एक कुशल आपरेटर और अतिशय अहंकारी ग्रथि से ग्रस्त बारूद के ढेर पर बैठे क्षेत्र में एरडोगन की मुसीबतें देश से बाहर हैं । उनके नेतृत्व में अंकारा के लगभग सभी पड़ोसियों से सम्बन्ध बहुत खराब हैं इनमें मॉस्को, तेहरान, बगदाद , दमिश्क , जेरूसलम , काइरो , एथेंस , साइप्रस गणतंत्र और यहां तक कि तुर्की साइप्रस के नए नेता से भी ।
एरडोगन ने विदेश नीति में कुछ भूलें की हैं शायद ( यूक्रेन के मामले में ) रूस के साथ ( गाजा के मामले में ) इजरायल के साथ , शायद सीरिया में युद्ध क्षेत्र में या फिर साइप्रस के गैस क्षेत्र में और ये सभी भूलें एरडोगन के काल को एक दर्दनाक और अप्रतिष्ठित समापन देंगीं ।
और जब यह समय आएगा तो शायद ही कोई ७ जून के चुनाव के परिणाम को सामने लाएगा किसी को भी यह एक परिवर्तन बिंदु के रूप में याद नहीं रहेगा ।
फिर भी यदि महत्वहीन चुनाव मायने रखता है तो मैं अपने पाठकों को निमंत्रण देता हूँ की वे एक अरुचिकर अनुभव के साथ एक वामपंथी राजनीतिक दल एचडीपी का समर्थन करें ताकि उसे १० प्रतिशत मत मिल सके और वह संसद में प्रतिनिधित्व प्राप्त कर सके और हम यह आशा कर सकते हैं कि जिस भी छोटे स्तर पर हम एरडोगन के सत्ता हथियाने के प्रयास को रोक सकें उसे रोकना चाहिये ।