इजरायल और तुर्की सरकार के मध्य अनेक वर्षों के तनाव के बाद कूटनीतिक रिश्तों को नए सिरे से आरम्भ करने के समाचार से मैं एक सनकी मुस्कान को रोक नहीं सका और इजरायल की बेवकूफी के हद तक सीधेपन के बारे में सोचने लगा|
१९९० के दशक में दोनों देशों के रिश्ते अत्यंत निकट के थे , जब सामान वैश्विक सोच ने मजबूत सैन्य सम्बन्ध , बढ़ते व्यापार और संस्कृति व जनसामान्य के परस्पर आदान प्रदान का मार्ग प्रशस्त किया था| 1997 में लिखते हुए मैंने इस द्वीपक्षीय सम्बन्ध के स्वभाव को कुछ इस प्रकार रखा था, " मध्य पूर्व के मानचित्र को बदलने की क्षमता , अमेरिका के गठबंधन को इस क्षेत्र में नयी शक्ल देने और इजरायल की क्षेत्रीय एकान्तता को कम करने वाला"
अगले पांच वर्षों तक यह सम्बन्ध फला फूला जब तक कि ( अदालेट वे कल्किन्मा पार्तिसी या एकेपी ) ने २००२ में तुर्की में आम चुनाव नहीं जीते और तुर्की को इस्लामवादी दिशा में नहीं चला दिया | इसके अनेक परिणामों में से एक प्रमुख था कि अंकारा को जेरूसलम से दूर ले जाना और इसके बजाय गाजा में हमास से सम्बन्धों में गर्मजोशी लाना|
रिसेप तईप एरडोगन के नेतृत्व में तुर्की की सरकार ने एक के बाद एक कदम उठाये जिससे इजरायलियों को नीचा दिखाया जा सके और दोनों राज्यों के मध्य संबंधों को खराब किया जा सके, और इसे सबसे अधिक बल तब मिला जब २०१० में गाजा में मावी मरमारा जहाज को परोक्ष रूप से प्रायोजित किया गया| इसके जवाब में इजरायल ने वह सब किया जिससे कि कामकाज फिर से सुचारू रूप से संचालित किया जा सके यहाँ तक कि मावी मरमारा में सवार तुर्क लोगों को हुई क्षति के लिए हर्जाना देना और माफी मांगना | परन्तु अभी तक उन्हें तिरस्कार ही मिला है|
इसके बाद २४ नवम्बर को एरडोगन ने मात्र १७ सेकेण्ड के लिए तुर्की की वायुसीमा में प्रवेश करने वाले रूस के विमान को गिराकर एक घातक भूल कर डाली| इस कारवाई की तुलना यदि 2014 में तुर्की द्वारा ग्रीस के वायु क्षेत्र के उल्लंघन से की जाए जो २, २४४ बार किया गया |
बिना किसी भड़काने की कार्रवाई के की गयी इस आक्रामक कारवाई ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के गुस्से को सातवें आसमान पर पहुंचा दिया | उसके बाद जो कुछ हुआ उससे तो स्कूल के मैदान में एक कमजोर पहलवान द्वारा अपने से मजबूत को मूर्खातापूर्वक नाराज करने का द्रश्य ही देखने को मिला | एरडोगन की पुतिन से तुलना संभव नहीं है जिन्होंने दिखाया है कि वे कुशलतापूर्वक जोखिम ले सकते हैं और अपनी बात को सही सिद्ध करने के लिए भारी आर्थिक कीमत भी चुकाने को तैयार हैं|
एरडोगन को जल्द ही पता चल गया कि उन्होंने वही भूल कर दी जिससे कि शताब्दियों में तुर्क अपने युद्ध में पराजित होते आये हैं ( 1568-70. 1676-81, 1687, 1689, 1695-96, 1710-12, 1735-39, 1768-74,1787-91, 1806-12, 1828-29, 1853-56, 1877-78, 1914-18) | इसके बाद उन्होंने वही किया जो कमजोर पहलवान करता है , जल्दी से अपने पहले के मित्रों की ओर भागना , जिसमें कि नाटो बड़े स्तर पर और छोटे स्तर पर इजरायल ( और इजिप्ट) और उन दोनों के साथ अपने मतभेद भुलाकर नए ढंग से रिश्ते सामान्य करने का प्रयास|
.वाल स्ट्रीट जर्नल में छपी रिपोर्ट के अनुसार स्विटज़रलैंड में इजरायल और तुर्की के मध्य बातचीत के जो संकेत आये हैं उसके अनुसार तुर्की मावी मरमारा विवाद को समाप्त करना चाहता है , तुर्की की धरती पर हमास की गतिविधियों को समाप्त करना चाहता हैं ( और सबसे महत्वपूर्ण ) इजरायल से तुर्की तक प्राकृतिक गैस को ले जाने वाली गैसपाइपलाइन |
अंतिम बात अंकारा के द्रष्टिकोण से तो सही है क्योंकि इजरायल की गैस के चलते रूस पर गैस को लेकर इसकी निर्भरता कम हो जायेगी पर इस कदम से इजरायल को शायद ही कोई लाभ हो| एक बार जब रूस का खतरा हट जाएगा तुर्की के इस्लामवादी ( जो कि लम्बे समय तक वहाँ रहने वाले हैं) अपने पुराने तरीके पर लौट आयेंगे और जिसमें कि इजरायल विरोधी आयाम भी शामिल है| ( अभी ही जबकि बातचीत आरम्भ हुई है एरडोगन ने हमास के नेता खालेद मसाल से इस्ताम्बूल में भेंट की है)| क्योंकि गैस पाइपलाइन दीर्घगामी भविष्य के लिए इजरायल को तुर्की पर निर्भर कर देगी और इस आधार पर यह अविवेकपूर्ण कदम दिख रहा है|
इजरायल के बारे में अत्यंत सख्त होने की धारणा के बाद भी जेरूसलम अधिकतर आशावादी ही रहता है ( 1993 में ओस्लो समझौता या फिर 2005 गाजा से वापसी) , इससे वाशिंगटन को अधिक समस्या होती है| इस प्रकार वैसे तो इजरायल तुर्की पाइपलाइन अधिक आकर्षक दिखती है पर अमेरिका के लोगों को इसके विरुद्ध सलाह देनी चाहिए और इसके विरुद्ध कदम उठाने चाहिए|