जार्डन के राजा अब्दुल्लाह ने करीब छः माह पूर्व कहा कि " हम भयानक मुसीबत में हैं" | अभी हाल में एक सप्ताह तक जार्डन की सघन यात्रा करते हुए और लोगों से बातचीत के आधार पर मैंने पाया कि इस मूल्यांकन से कोई भी असहमत नहीं है| जार्डन भले ही उस प्रकार समस्यायों के मुहाने पर न हो या उस कदर घिरा न हो जैसा कि वह दशकों पहले था , पर इसके सामने असाधारण समस्याएं हैं|
ट्रांसजार्डन अमीरात जो कि अब जार्डन का हाशेमाईट राजघराना है उसका निर्माण 1921 में चर्चिल ने ब्रिटिश साम्राज्य के हितों को समायोजित करने के लिए किया था, जो कि करीब एक शताब्दी तक कठिन स्थित के साथ अस्तित्व में है| विशेष रूप से 1967 में खतरनाक अवसर आया जब अरब एकाधिकारवादियों ने राजा हुसैन ( 1952-99) पर दबाव डाला कि इजरायल के विरुद्ध युद्ध करें और पश्चिमी तट हार गए , 1970 में फिलीस्तीनी विद्रोह ने उन्हें लगभग सत्ता से हटा दिया और 1990-91 में भी ऐसी स्थिति आई जब सद्दाम हुसैन समर्थक भावना के चलते उन्हें हतोत्साहित और दुष्ट कार्य में शामिल होना पड़ा |
आज अनेक खतरे विद्यमान है , आई एस आई एस सीरिया और इराक में पहुँच चुका है जो कि बस इसकी सीमा से ही बाहर है और जार्डन के छोटे परन्तु वास्तविक अल्पसंख्यक को आकर्षित करता है| कभी उन दो देशों के साथ जो व्यापार अत्यंत मजबूत था लगभग लुढ़क चुका है और इसके साथ ही इन दोनों के मध्य जार्डन की आकर्षक भूमिका भी | एक ऐसे क्षेत्र में जिसमें कि तेल और गैस का भण्डार है जार्डन उन कुछ देशों में है जिसके पास पेट्रोलियम का कोई संसाधन नहीं है| शहर के निवासी सप्ताह में एक दिन जल प्राप्त करते हैं और देश के निवासी तो इससे भी कम| मध्य पूर्व के कुख्यात उतार चढ़ाव के चलते पर्यटन पर असर पड़ा है | लोकतंत्र की मांग करने वालों के चलते राजा को अपने अधिकार पर जोर देना पड़ रहा है|
अस्तित्व के प्रमुख प्रश्न का निपटारा नहीं हो पाया है| करीब सौ सालों से भारी और बार बार आप्रवास का सामना करने वाले देश के रूप में ( इजरायल जाने वालों से भी अधिक संख्या ) इसमें फिलीस्तीनियों की लहर आयी ( 1948-49, 1967 व 1990-9) , इराकियों ( 2003) और सीरिया के लोगों की ( 2011 से ) | एक अनुमान के अनुसार देश की कुल जनसंख्या का एक बड़ा भाग फिलीस्तीनियों का है और उनके चलते एक गहरा विभाजन भी है| " जार्डनवासियों" और " फिलीस्तीनियों" के बारे में बात करना सामान्य बात है जबकि बाद वाले नागरिक हैं और नागरिकों के पौत्र हैं|
तो जैसा कि इससे पता चलता है कि पूर्वी तट के अन्य कबायली लोगों से अलग और श्रेष्ठ होने की भावना समय के साथ नष्ट नहीं हुई है और विशेष रूप से तब जब कि फिलीस्तीनी लोगों को आर्थिक सफलता प्राप्त हुई है|
देश की ताकत भी काफी शक्तिशाली है| विपत्तियों से घिरे होने के चलते जनसंख्या वास्तविकता का सामना करना चाहती है और समस्याओं को लेकर सतर्क है| राजा के अधिकारों को लेकर कोई विवाद नहीं है | अंतरजातीय विवाहों से फिलीस्तीनी और कबायली ऐतिहासिक विभाजन घट रहा है और इराकी व सीरियाई लोगों के देश में आने से यह और भी घट रहा है| देश की जनसंख्या की शिक्षा का स्तर ऊंचा है | जार्डन को समस्त विश्व में सम्मान प्राप्त है|
इसके बाद इजरायल है| 1994 में इजरायल के साथ जार्डन की संधि को लेकर एक सामान्य प्रश्न है कि " शान्ति का फल कहाँ है"| राजनेता और प्रेस भले ही यह बात न करें पर उत्तर पूरी तरह स्पष्ट है , चाहे इसके द्वारा हायफ़ा को सीरिया की भूमि के मार्ग के विकल्प के रूप में उपयोग करना हो , चाहे सस्ता जल खरीदना हो, चाहे पर्याप्त गैस खरीदना हो , जार्डन को इजरायल के साथ संबंधों का सीधा और पर्याप्त लाभ हो रहा है| इसके बाद भी इजरायल के साथ संबंधों को सामान्य करने के विरुद्ध एक सामाजिक दबाव है जो कि समय के साथ बढ़ा है , जिसने कि सभी को डराया है और जिसके चलते यहूदी राज्य के साथ सम्बन्ध अपनी पूरी क्षमता को प्राप्त नहीं कर सका है|
जार्डन के एक व्यक्ति ने मुझसे पूछा कि आखिर इजरायल क्यों प्रेमिका या रखैल होना स्वीकार करता है| इसका उत्तर स्पष्ट है क्योंकि जार्डन का कल्याण इजरायल की सबसे बड़ी प्राथमिकता है भले ही इसे पर्याप्त सम्मान न मिले या इसके बारे में प्रेस में और सड़कों पर असत्य कहा जाए | हालांकि ऐसा कहने में वे काफी विनम्र हैं पर उन्हें आशा है कि राजा अवश्य ही इस मामले का नियंत्रण हाथ में लेंगे और शांति के लाभों की ओर संकेत करेंगे|
व्यक्तिगत रूप से कहें तो: 2005 से ही मैं इस बात की वकालत कर रहा हूँ तीन राज्य का समाधान जिसमें कि पश्चिमी तट जार्डन को और गाजा इजिप्ट को प्राप्त हो और यही फिलीस्तीनी समस्या का समाधान हो सकता है| इसी के साथ मैंने अपने सभी 15 मध्यस्थों ( जिनके व्यापक द्रष्टिकोण हैं) से पश्चिमी तट को जार्डन की संप्रभुता में जाने को लेकर बात की | मुझे यह कहते हुए खेद है कि सभी ने सिरे से इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया| ऐसा क्यों है? उन सभी का एक ही कहना है कि " क्या हमें यह सरदर्द चाहिए"? यदि इस नकारात्मक निर्णय को स्वीकार कर लें तो इसका अर्थ है कि पश्चिमी तट के मुद्दे पर इजरायल के पास कोई व्यावहारिक समाधान नहीं है और इस क्षेत्र पर अनमने ढंग से फिलीस्तीनी संप्रभुता आगे भी जारी रहेगी |
यात्रा को समाप्त करते हुए मैं यही कह सकता हूँ कि जार्डन अनेक संकटों में फंस चुका है और आगे भी ऐसा होगा परन्तु इस बार एक दूसरे से जुड़े हुए संकट जार्डन के समक्ष और इसके शुभचिंतकों के समक्ष एक असाधारण संकट उत्पन्न करते हैं| क्या राजा अब्दुल्लाह उन " गंभीर संकटों" का सामना कर पायेंगे?