फारेन अफेयर्स पत्रिका ने इजरायल में पूर्व रक्षा मंत्री और प्रधानमंत्री पद के संभावित प्रत्याशी मोशे यालोन का अति महत्वपूर्ण बयान प्रकाशित किया है जिसमें उन्होंने इजरायल फिलीस्तीन विवाद को समाप्त करने के विषय पर अपने विचार दिए हैं | यह बयान " मध्य पूर्व में शान्ति कैसे स्थापित करें : आखिर निचले पायदान पर ऊपर होना ऊपरी पायदान पर नीचे रहने से बेहतर क्यों हैं" के शीर्षक से ( जनवरी , फरवरी 2017) प्रकाशित हुआ है|
यालोन ने अत्यंत प्रभावशाली ढंग से विश्लेषण प्रस्तुत किया है कि दशकों की कूटनीति आखिर क्यों असफल रही है और यह जड़ता स्थापित होती जा रही है| उनके " निचले पायदान पर ऊपर होने" के समाधान में चार तत्व समाहित हैं , इनमें से तीन तो पुराने जैसे हैं जो निराशा उत्पन्न करते हैं पर उनमें से एक है जो उत्साहित करता है, एक ऐसा विचार जिस पर अभी तक प्रयास नहीं हुआ है – तीन तरफ़ा विकल्प जिसका विस्तार से उल्लेख निम्नलिखित है|
इसके आवश्यक तत्वों को खंगाला गया जिसकी बात यालोन के लेख में की गयी है |
1- " फिलीस्तीन के आर्थिक विकास और आधारभूत ढाँचे को गति देना"
2- " फिलीस्तीनी प्रशासन को सुधारना , भ्रष्टाचार के विरुद्ध प्रयास करना और सामान्य तौर पर संस्थाओं का निर्माण"
3- " इजरायल –फिलीस्तीनी सुरक्षा सहयोग"
4- एक क्षेत्रीय प्रयास जिससे कि उन अरब देशों को भी शामिल किया जा सके जो कि इजरायल फिलीस्तीन विवाद के समाधान में सहयोग करना चाहते हैं भले ही उन राज्यों के इजरायल के साथ औपचारिक सम्बन्ध हों या न हों"
पहले तीन समाधानों के लिए तो दशकों से हर बार प्रयास हुआ है पर समाधान के निकट आने में कोई सफलता नहीं मिली है|
1-1993 में शिमोन पेरेज ने The New Middle East के नाम से सम्पन्न फिलीस्तीनी जनसंख्या की एक सुन्दर अन्तद्र्ष्टि प्रस्तुत की जो कि इजरायल के अच्छे पड़ोसी होंगे | समस्या ये है कि उनके पड़ोसी और आशा दोनों ही फिलीस्तीन के तिरस्कारवाद, भडकाने की प्रवृत्ति और मौत को महिमामंडित करने के चलते पूरी तरह ध्वस्त हो गए|2017 में निश्चित रूप से कोई भी अब गंभीरता से यह विश्वास नहीं करता कि सम्पन्नता फिलीस्तीनियों को नरमपंथी बना सकती है|
2- जार्ज डब्ल्यू बुश ने 2002 में प्रशासन के सुधार पर ध्यान केन्द्रित किया पर पन्द्रह वर्षों के बाद चीजें पहले से भी दुखद स्थिति में हैं, अराजकता, भ्रष्टाचार और हिंसक होती आपसी लड़ाई तो वैसी ही है| इससे भी बुरी बात यह है कि ऐतिहासिक आंकड़े दर्शाते हैं कि अच्छे प्रशासन से फिलीस्तीनी एक सुनियोजित प्रणाली से इजरायल पर आक्रमण कर पाते हैं|
3- सुरक्षा सहयोग वह क्षेत्र है कि जिसमें इजरायल और फिलीस्तीन अथारिटी एक साथ काम करते हैं: असल में तो इजरायल डिफेन्स फ़ोर्स फिलीस्तीन अथारिटी की रक्षा करती है और बदले में फिलीस्तीन अथारिटी इजरायल डिफेन्स फ़ोर्स को आक्रमण से बचा कर रखती है| हालंकि यह सहयोग परस्पर उपयोगी है पर इस सहयोग में इस बात की संभावना कम ही दिखती है कि यह बड़े संघर्ष के समाधान में अपनी भूमिका निभा सके|
इस सबके विपरीत चौथा प्रस्ताव कि अरब राज्यों को शामिल किया जाए , वास्तव में अत्यंत महत्वपूर्ण प्रयास है जिस पर कि अभी गंभीरता से काम नहीं हुआ है, यालोन की योजना में वास्तविक आशा निहित है|
ऐसा इसलिए है कि फिलीस्तीन के लोगों की इजरायल से अपेक्षा और अरब देशों सहित तुर्की, ईरान से इजरायल की अपेक्षा में एक उल्लेखनीय लेन देन की भावना निहित है और वह है मान्यता और वैधानिकता | इन दोनों की परस्पर एक तरह की अपेक्षा को ध्यान में रखते हुए वाल स्ट्रीट जर्नल में मैंने प्रस्ताव दिया था कि दोनों ही पक्षों की आकांक्षाओं को एक साथ हल किया जा सकता है " अरब राज्य इजरायल को सहूलियत दें और इजरायल के लोग फिलीस्तीन को सहूलियत दें" | इससे सभी को लाभ होगा | " अरब राज्यों को वह प्राप्त होगा जिसे वे अपना प्रमुख लक्ष्य कहते हैं कि फिलीस्तीन के लोगों के लिए न्याय | इजरायल को शान्ति मिलेगी और फिलीस्तीन को अपना राज्य" |
उदाहरण के लिए यदि सउदी इजरायल के आर्थिक बहिष्कार को समाप्त कर दें तो इजरायल के लोग अंतर्राष्ट्रीय बाजार में फिलीस्तीनी लोगों की भूमिका बढ़ा सकते हैं| यदि इजिप्ट के लोग रिश्ते में गर्माहट लायें तो फिलीस्तीन के लोगों को इजरायल के मजदूर बाजार में अधिक पहुँच मिल सकती है| जब प्रमुख अरब राज्य इजरायल के यहूदी राज्य के साथ शान्ति संधि कर लेंगे तो फिलीस्तीन के लोगों को अपना राज्य मिल जाएगा |
ओबामा प्रशासन ने 2009 में इस दिशा में एक सघन प्रयास किया था पर सउदी से इसे अस्वीकार कर दिया और यह हल्की रोशनी की तरह बंद हो गया | इजिप्ट के राष्ट्रपति सिसी ने इस विचार को 2016 में फिर हवा दी पर एक बार फिर इसका कोई परिणाम नहीं हुआ | संक्षेप में अरब राज्य , इजरायल और फिलीस्तीनियों के तीन तरफा विकल्प पर गंभीरता से और लगातार काम अभी तक नहीं हुआ है|
अब जबकि सिसी और यालोन ने खुलकर आन रिकार्ड तीन तरफा विकल्प का पक्ष लिया है और ओबामा प्रशासन के तेहरान के साथ अजीबोगरीब सहयोग ने अरब राज्यों को हिलाकर रख दिया है , मध्य पूर्व के नेता अब यहूदी राज्य के साथ काम काज के लिए इच्छुक हैं जो कि वे 1990 या 2009 में तैयार नहीं थे | निश्चित रूप से आने वाले ट्रम्प प्रशासन को इस दिशा में प्रयास करना चाहिए|
अरब इजरायल कूटनीति में कोई भी गति पेरेज और जार्ज डब्ल्यू बुश के पुराने पड़ चुके विचार से नहीं आयेगी और सुरक्षा सहयोग से शायद ही कोई राजनीतिक परिणाम मिल सके | अब भी मेरी पहली प्राथमिकता इजरायली विजय के लिए अमेरिका का सहयोग है , पर अभी यदि यह कुछ अधिक है तो कम से कम अरब राज्यों को साथ लाने से रुका पडा , अलग थलग और कुछ हद तक उल्टा दाँव पड़ जाने वाले इजरायल फिलीस्तीन समझौते में एक रास्ता तो दिखता है|