नई दिल्ली – हालांकि तकरीबन एक चौथाई शताब्दी पहले भारत अपनी समाजवादी अर्थव्यवस्था और सोवियत समर्थक विदेश नीति के दौर से बाहर आ चुका है परन्तु हाल में नई दिल्ली और अन्य स्थानों पर बुद्धिजीवियों के साथ जो विमर्श और चर्चा मैंने की उससे यही संकेत मिलता है कि इस उर्ध्वगामी ( Ascending) सत्ता शक्ति के दौर में भी विदेश नीति के विशेषज्ञ विश्व में अपनी भूमिका का चिन्तन मौलिक रूप से विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका , चीन और जिसे वे पश्चिम एशिया ( मध्य पूर्व ) कहते हैं के सामानांतर या उसके मुकाबले ही करते हैं |
यद्यपि दो देश सच में अधिकतर ध्यान आकर्षित करते हैं पर मध्य पूर्व निश्चित ही भारत के समक्ष जबरदस्त चुनौती प्रस्तुत करता है और इसके साथ ही अनेक अवसर भी उपलब्ध कराता है | इस उथल पुथल से भरे क्षेत्र के साथ प्रमुख संपर्क की एक समीक्षा निम्नलिखित है:
इस्लामवाद- ऐतिहासिक रूप से इस्लामी प्रभाव काफी निकटता से मध्य पूर्व से अन्य क्षेत्रों की ओर गया है और इनमें दक्षिण एशिया भी शामिल है और यह प्रक्रिया कभी उलट नहीं पायी | वर्तमान स्थिति में यही कुछ इस्लामवादी दर्शन के साथ हो रहा है , एक बहस और संधि कि यदि मुसलमान को मजबूत और संपन्न होना है तो उसे मध्यकालीन माडल पर पूरी तरह लौटना होगा और इस्लामी क़ानून को पूरी तरह अपनाना होगा और इस विचार को सउदी अरब और ईरान से प्राणवायु मिल रही है और विश्व भर के सुन्नी और शिया दोनों ही मुसलमानों को काफी प्रभावित कर रही है|
उनके प्रभाव से अनेक क्षेत्रों में परम्परागत रूप से नरमपंथी मुस्लिम जनसंख्या भी कट्टरपंथ के प्रभाव में आ गयी ( जैसे कि बाल्कन और इंडोनेशिया) और इसके भारत के लिए असाधारण और व्यापक परिणाम हो सकते हैं जिसका विशाल मुस्लिम समुदाय जो कि 17 करोड़ 70 लाख है विश्व में सबसे बड़ा धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय है ( 6.7 करोड़ ईसाई समुदाय के साथ चीन दूसरे स्थान पर है)
ईरानी आक्रामकता : ईरान के प्रति भारत के सकारात्मक रुख के पीछे और तेहरान से अच्छे सम्बन्ध बनाए रखने के नई दिल्ली के लगातार प्रयास के पीछे दो कारण हैं : गहरे ऐतिहासिक सम्बन्ध और शत्रुवत भाव रखने वाले पाकिस्तान का इन दोनों के मध्य स्थित होना |
वैसे तो यह ठीक है पर यदि भारत सरकार अपने हितों और अधिकारों के लिए खड़े होने के अधिकार को सुरक्षित नहीं रखते हुए पूरी तरह एक रास्ते पर चलती रही तो यह तुष्टीकरण की स्थिति में परिवर्तित हो सकता है | ईरान के शासन ने पहले ही भारत में हिंसा को अंजाम दिया है , इसकी आक्रामकता के चलते फारस की खाड़ी से होने वाले ऊर्जा के प्रवाह को खतरा उत्पन्न होता है जिस पर कि भारत काफी कुछ निर्भर है और परमाणु हथियार प्राप्त करने के इसके अभियान से पूरे क्षेत्र में अस्थिरता का माहौल बन गया है| इसके प्रकाश में भारत ने ईरान से खतरा अनुभव कर रहे दो देशों पहले 2008 में क़तर के साथ और फिर 2014 में सउदी अरब के साथ रक्षा समझौता किया जो कि सकारात्मक बात है वहीं दूसरी ओर ईरान के छबार बंदरगाह में गहराता भारत का निवेश भारत की नीति को शक्तिहीन कर सकता है |
परेशानी का सबब पाकिस्तान : रियाद का धन दो स्तरों पर भारत के विरुद्ध पाकिस्तान के संघर्ष को समर्थन करता है : इस्लामी स्कूलों ( मदरसों) को भारी मात्रा में आर्थिक सहायता देकर जो कि छात्रों में कट्टरपंथ का समावेश करते हैं और वे कुरान को रटते हैं पर उनमें आधुनिक योग्यता का अभाव होता है और यही जिहाद के लिए इस्तेमाल होते हैं और दूसरे रूप में रियाद " इस्लामी" परमाणु बम के लिए खुले दिल से आर्थिक सहायता देता है जो कि पूरी तरह भारत के विरुद्ध केन्द्रित है और 1998 से ही भारत की सुरक्षा को खतरा उत्पन्न कर रहा है |
व्यापार और खाड़ी देशों में भारत के हित : दुनिया के तीसरे सबसे बड़े कच्चे तेल के आयातक देश होने के कारण भारत मध्य पूर्व पर निर्भर है और इसे बेचने के लिए भी इसकी आवश्यकता है | खाड़ी के मात्र छह देशों के साथ भारत का 150 बिलियन अमेरिकी डालर का व्यापार है जो कि भारत के कुल वार्षिक व्यापार का 1\5 है और साथ ही फारस की खाड़ी के रियल एस्टेट में भारतीय सबसे बड़े प्रत्यक्ष निवेश वाले हैं | भारतीय कामगार फारस की खाड़ी में करीब 65 लाख की संख्या में हैं और भारत को देश के बाहर से अपने परिजनों को भेजे जाने वाले धन का सबसे बड़ा स्रोत है ( अनुमानित रूप से यह 35 बिलियन अमेरिकी डालर वार्षिक है) और साथ ही वहाबी प्रभाव का भी सबसे बड़ा स्रोत है |
इजरायल के साथ गठबंधन : यहूदी राज्य के साथ बढ़ता सम्बन्ध ही एकमात्र चमकदार पहलू है | हालांकि भारत की जनसंख्या इजरायल से 150 गुना अधिक है ( 130 करोड़ के मुकाबले 80 लाख ) परन्तु दोनों देशों के मध्य कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं| सबसे अधिक महत्वपूर्ण है कि उनकी जनसंख्या प्राचीन और धर्मांतरण में विश्वास न करने वाले धर्म के प्रति प्रतिबद्ध है | दोनों ही लोकतंत्र और सेकुलरिज्म का पालन करते हैं , अमेरिका के सहयोगी हैं और दोनों के पास परमाणु बम हैं| दोनों के देशों में पर्याप्त मुस्लिम जनसंख्या हैं ( भारत में 14 प्रतिशत और इजरायल में 19 प्रतिशत ) और दोनों की ही वफादारी पर सवाल उठते रहते हैं क्योंकि दोनों ही देशों को मुस्लिम देश ( पकिस्तान और ईरान ) से संभावित रूप से अस्तित्वगत ख़तरा बना रहता है |
इन समानतावों से परे दोनों देश कुछ विशेष लाभ भी एक दूसरे को दे सकते हैं | दोनों देश खुफिया जानकारियाँ बाँट सकते हैं | जेरूसलम के सहारे वाशिंगटन तक पहुँच बनायी जा सकती है और नई दिल्ली के सहारे गुट निरपेक्ष आन्दोलन के जो भी अवशेष हैं उन तक पहुँच बनाई जा सकती है |
जिन क्षेत्रों में इजरायल विश्व का नेता है जैसे कि जल तकनीक , दवा, सुरक्षा और उच्च तकनीक आविष्कार , भारत को उन चीजों की आवश्यकता है जिसे इजरायल प्रदान कर सकता है और इजरायल को भारत के विशाल बाजार की आवश्यकता है | निश्चित रूप से भारत सरकार 3 बिलियन अमेरिकी डालर के इजरायल मिलिटरी हार्डवेयर खरीदने जा रही है जो कि अब तक कि इजरायल की सबसे बड़ी बिक्री है |
पहले से ही महत्वपूर्ण भारत और मध्य पूर्व का सम्बन्ध समय के साथ बढ़ रहा है जिसमें कि खतरा और संभावना दोनों ही है | सबसे बड़ा प्रश्न जो समक्ष है कि कैसे भारत पश्चिम एशिया से वह निकाल सकता है जो कि उसके लाभ में है और साथ ही उससे बच सकता है जो विषैला है | इस सम्बन्ध में व्याप्त अनेक जटिलताओं को देखते हुए यह सरल नहीं होगा|