इस रविवार को लाखों की संख्या में तुर्की लोग अपने मत के द्वारा तुर्की की संसद द्वारा जनवरी में किये संशोधनों को या तो स्वीकार करेंगे या निरस्त करेंगे | जर्मनी की समाचार एजेंसी ड्यूच वेले ने एक सम्पादकीय पेज पर लिखे लेख में इस बात की व्याख्या की है जो " निर्णायक" संशोधनों से " एक ही व्यक्ति को सभी शक्तियां प्राप्त होती हैं और वह भी बिना किसी जवाबदेही के" और इससे तुर्की में जो भी लोकतंत्र बचा ही वह पूरी तरह समाप्त हो जाता है| आम तौर पर सभी पर्यवेक्षक इस बात पर सहमत हैं कि यदि जनमत संग्रह सफल रहा तो तुर्की एक अधिनायकवादी राज्य में परिवर्तित हो जाएगा |
परन्तु मैं (कुछ अन्य लोगों के साथ ) इससे असहमत हूँ| तुर्की के राष्ट्रपति रिसेप तईप एरडोगन ने वर्षों पहले सभी शक्तियां हासिल कर ली हैं जो संविधान के परिवर्तन से उन्हें प्राप्त हो सकती हैं| वे पहले से ही उन सबके स्वामी हैं जिसे वे चाहते हैं , फिर चाहे वह लोकतांत्रिक ढंग से हो या फिर चुनावों में हेरा फेरी करते हुए| यदि यह जनमत संग्रह सफल होता है तो इससे यह असलियत और अधिक वास्तविक हो जायेगी |
श्रीमान एरडोगन की शक्तियों को यदि देखा जाए | पूरी तरह स्वामिभक्त प्रधानमंत्री बिनाली यिल्दिरिम निरंतर संविधान संशोधनों की वकालत कर रहे हैं जिससे कि स्वयं उनके अधिकार ही समाप्त हो जायेंगे , जो कि ऐतिहासिक रूप से देश में सबसे शक्तिशाली कार्यालय रहा है| सर्वशक्तिमान राष्ट्रपति की एक आलोचना से एक बच्चे को भी जेल में डाला जा सकता है| पिछले जुलाई में जो तख्तापलट(प्रायोजित) हुआ उससे दूर दूर तक सम्बन्ध दिखे भी तो उसे पद से हाथ धोना पडेगा | राज्य की ओर से नियमति आधार पर पत्रकारों को आतंकवाद की झूठे आरोपों में जेल भेज दिया जाता है और सही मायने में स्वतंत्र राजनेता चुप करा दिए जाते हैं|
यदि श्रीमान एरडोगन को संवैधानिक परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है जो कि एक महत्वहीन कानूनी स्वीकार्यता है तो फिर क्यों वे इसके पीछे पड़े हैं? शायद वे अपने गैर कानूनी कार्यों के चलतेअदालत से बचना चाहते हैं | शायद मन मुताबिक़ उत्तराधिकारी की शक्ति से अपना कार्यक्रम चला सकें | शायद स्वयं को अच्छा दिखा सकें |
श्रीमान एरडोगन की जो भी विवशता हो पर इससे विश्व में तुर्की की हैसियत को काफी क्षति हो रही है| जब उनके सहयोगियों को जर्मनी में निवास कर रहे तुर्की लोगों को संविधान संशोधन के लिए रैली नहीं करने दी गयी तो उन्होंने जर्मनी पर आरोप लगाया कि वे " नाजियों के तरीके अपना रहे हैं" | जब तुर्की के मंत्री को रोटेरडम में बोलने से रोका गया तो उन्होंने नीदरलैंड को बनाना रिपब्लिक बताया | संबंधों की इस कटुता के चलते जर्मनी के साथ सैन्य संबंधों पर असर पडा है|
परोक्ष रूप से योरप की सडकों पर हमलों की धमकी देकर शायद ही श्रीमान एरडोगन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्थिति मजबूत की है, और न ही अपने एक सहयोगी से यह कहलवाकर कि तुर्की को परमाणु शक्ति सम्पन्न होना चाहिए| सबसे खतरनाक है कि इस नेता ने संसद में एक राष्ट्रवादी दल का समर्थन हासिल करने के लिए जुलाई 2015 में कुर्द के विरुद्ध एक गृह युद्ध आरम्भ कर दिया, जिसके कि खतरनाक परिणाम मानवीय स्तर पर आ रहे हैं|
अपने तरीके से चीजों को करने की जिद एकपरिपाटी को दर्शाता है| एरडोगन बड़ी सरलता से तुर्की के लोगों के लिए योरप में वीजा मुक्त यात्रा की स्थिति प्राप्त कर सकते थे परन्तु उन्होंने तुर्की में आपराधिक संहिता में आतंकवाद की परिभाषा में महत्वहीन बदलाव का प्रस्ताव ठुकरा दिया| उन्होंने तुर्की के धार्मिक गुरु फेतुल्लाह गुलेन के प्रत्यर्पण को निजी प्रतिष्ठा का विषय बनाकर वाशिंगटन के साथ संबंधों को खराब कर लिया| उन्होंने गुलेन समर्थक तुर्की लोगों की जासूसी के लिए अपनी खुफिया एजेंसी का प्रयोग कर 35 देशों के साथ सम्बन्ध खराब कर लिए| ट्रम्प के पूर्व सलाहकार माइकल फ्लिन ने तुर्की के एजेंट के रूप में उनके पंजीक्रत होने की बात छुपाकर उनकी प्रतिष्ठा को धूमिल कर दिया|
तानशाह के रूप में स्वयं में आत्ममुग्ध होने की प्रव्रत्ति से तानाशाही का भाव बढ़ जाता है और एरडोगन अनावश्यक भूलें करते जाते हैं| किसी समय अत्यंत सतर्क और सोच समझकर काम करने वाला नेता अब दिखावे में ऐसे काम करता है जिससे केवल शत्रुता बढ़ती है| इससे उनकी लोकप्रियता बढाने वालीअर्थव्यवस्था में गति प्रभावित हुई है| एरडोगन अब अपनी ही नक़ल बनकर रह गए हैं जिसमें कि उनका 1, 100 कमरों का महल और गार्ड आनर शेष रह गए हैं|
आखिर यह सब कब समाप्त होगा? राष्ट्रपति के दो लक्ष्य दिख रहे हैं| पहला, एरडोगन कमाल अतातुर्क के पश्चिम आधारित सुधार को बदलकर आटोमन साम्राज्य के इस्लामी रास्ते पर आना चाहते हैं| दूसरा, वे स्वयं को प्रोन्नत कर महान, प्राचीन इस्लामी खलीफा की स्थिति में स्थापित करना चाहते हैं विशेष रूप से तब जब कि 2014 में इस्लामिक स्टेट ने लम्बे समय से मृतप्राय इस पदवी को पुनर्जीवित कर दिया|
ये दोनों ही महत्वाकांक्षाएं ठीक उसी समय परस्पर मिल सकती हैं जब अतातुर्क द्वारा खिलाफत को समाप्त किये हुए कुल 100 वर्ष बीत जाएँ 10 मार्च 2021 ( इस्लामी कैलेंडर के अनुसार) या फिर 4 मार्च 2024 ( ईसाई कैलेण्डर के अनुसार) | दोनों ही तिथियों में से कोई भी तिथि एरडोगन को अवसर प्रदान करती है कि वे सेक्युलर अतातुर्क के कार्य को बदलकर स्वयं को सभी मुसलमानों का खलीफा घोषित कर दें|
तुर्की के अन्दर कोई भी एरडोगन की असीम महत्वाकांक्षा को प्रभावी तरीके से रोक नहीं सकता | इससे उन्हें अपने रास्ते पर चलने की आजादी है और अपने देश में और बाहर समस्याएं पैदा करने की खुली छूट है| तब तक जब तक कि एक दिन किसी बाहरी संकट से वे पस्त न हो जाएँ जो कि बहुत कुछ संभव है| तब तक तुर्की लोगों को और अन्य लाखों लोगों को एरडोगन के दिखावे के शासन की दिनोंदिन कीमत चुकानी पड़ेगी |