श्रीमान पाइप्स आपने लिखा है कि 2015 में लाखों आप्रवासियों के लिए सीमाएं खोलने का एंजेला मर्केल का निर्णय , " यूरोप के इतिहास में एक निर्णायक कदम साबित होगा"| आप एक इतिहासकार हैं इस अभिव्यक्ति से आपका क्या आशय है?
मैं ऐसा मानता हूँ कि भविष्य में जब यूरोप की सभ्यता के विकास पर अध्ययन किया जाएगा तो अगस्त 2015 को एक महत्वपूर्ण अवसर के रूप में देखा जाएगा | जर्मनी में असीमित आप्रवास की अनुमति के निर्णय का यूरोप के इतिहास पर व्यापक प्रभाव होगा और इसके चलते यह मुद्दा पहले से कहीं अधिक भयंकर हो गया है और इसके चलते यूरोप के निवासियों के मध्य विभाजन हो गया है एक वे जो आप्रवास के पक्ष में हैं और दूसरे जो इस बड़ी मात्रा में आप्रवास के विरुद्ध हैं| यह विभाजन मूल निवासियों और नव यूरोपवासियों के मध्य हो गया है|
यूरोप के लोगों के समक्ष मूलभूत प्रश्न क्या हैं?
पर्याप्त मात्रा में संतानों का अभाव , प्रश्न यह है कि क्या यूरोप के लोग चुपचाप स्वीकार करेंगे कि कोई भी उनके यहाँ आ जाए चाहे किसी कौशल के बिना हो और पूरी तरह शत्रुवत संस्कृति से हो, या फिर वे नियंत्रित आप्रवास की योजना को विकसित करेंगे , दुनिया भर से ऐसे लोगों को चुनकर जो अपने साथ कौशल लायें और उनके साथ समायोजित हो सकें? जर्मनी ने अपनी सीमाएं खोलकर पहले विकल्प को चुना है|
यूरोप के लोगों और मुस्लिम आप्रवासियों का सम्बन्ध तनावपूर्ण क्यों है?
संबंधों में तनाव का कारण यह है कि इस्लाम साम्राज्यवादी आस्था है और बहुत से मुस्लिम आप्रवासी यूरोप की वर्तमान सभ्यता को इस्लाम में बदलना चाहते हैं| यह मुद्दा और भी उलझ जाता है जब यूरोप के लोग और मुसलमान बहुत से प्रमुख मुद्दों में एक दूसरे के विपरीत हैं| यूरोप के लोगों की जन्म दर बहुत कम है और मुस्लिम आप्रवासियों की जन्म दर अधिक है| यूरोप के लोगों की धार्मिक पहचान काफी कमजोर है जबकि मुस्लिम आप्रवासियों की काफी सशक्त है| यूरोप के लोग अपनी ऐतिहासिक भूलों के लिए अपराधबोध से ग्रस्त रहते हैं तो वहीं दूसरी ओर आप्रवासियों के मन में अपनी सभ्यता की श्रेष्ठता का आत्मविश्वास प्रबल है|
जर्मनी के बहुत से लोग तर्क देते हैं कि एक संपन्न देश होने के चलते उनका नैतिक दायित्व है कि जरूरतमंद लोगों के लिए उन्हें अपने दरवाजे खोलने चाहिए|
मैं मानवीय भावना की सराहना करता हूँ परन्तु यह वास्तविकता से परे है| क्या जर्मनी 2 अरब लोगों को अपने यहाँ ले सकता है यदि नहीं तो फिर नैतिकता के आधार पर एक छोटे से प्रतिशत को कैसे ले सकता है|
तो फिर इसका उत्तर क्या है?
व्यावहारिक आधार पर यदि कहूं तो मैं विश्व को सांस्कृतिक और भौगोलिक क्षेत्र में देखता हूँ | पश्चिम के जो लोग जरूरतमंद हैं वे पश्चिम में रहें , मध्य पूर्व के लोग मध्य पूर्व में रहें और ऐसा ही पूरे भूमंडल पर हो| क्या यह अचरज की बात नहीं है सीरिया और इराक जैसे देशों के आप्रवासी जर्मनी और स्वीडन की ओर जाते हैं? उन्हें तो सउदी अरब और कुवैत जाना चाहिए जहां का वातावरण , भाषा , धर्म और बहुत कुछ उनके अपने जैसा है और दूसरा ये देश भी सीरिया के निकट हैं|
संस्कृति और रीति रिवाज बदलते रहते हैं| यदि मुसलमानों को अवसर दिया जाए तो शायद वे भी यूरोप की संस्कृति के साथ समरस हो जाएँ?
सैद्धांतिक रूप से ऐसा है पर व्यावहारिक रूप से ऐसा नहीं है| अनुभव यही बताते हैं मुस्लिम आप्रवासियों की पहली पीढी अधिक समरस थी परन्तु उनके संतानों और संतानों की संतानों के साथ ऐसा नहीं है, समय के साथ यह सांस्कृतिक अलगाव बढ़ा ही है| पूरे यूरोप में कोई भी स्थान खोज पाना कठिन है जहां कि मुस्लिम आप्रवासी समरस हुए हैं और इसी कारण मुझे इस बात में संदेह है कि भविष्य में भी ऐसा हो पायेगा | चिली, चीन और कांगो के लोग यूरोप की संस्कृति के साथ अधिक सहज हो जाते हैं पर मुस्लिम नहीं |
बहुत से मुस्लिम आप्रवासी संकेत करते हैं कि उनके साथ होने वाला भेदभाव जर्मनी के समाज के साथ उनके समरस होने में बाधा उत्पन्न करता है|
यह सच है कि भेदभाव एक समस्या है| मैं नहीं चाहता कि मेरा नाम मुहम्मद हो और मैं हैम्बर्ग में रोजगार की तलाश करूं| परन्तु इससे मेरे इस तर्क को बल मिलता है कि यह बेहतर होगा कि सउदी अरब और कुवैत में मुहम्मद नाम हो| आखिर 55 वर्षों का अनुभव जिनके बारे में बताता है कि वे साथ नहीं रह सकते उन्हें साथ क्यों लाया जा रहा है? जैसा कि थिलो सराजिन ने दिखाया है कि मुस्लिम आप्रवास का प्रयोग असफल रहा है और इसे जारी रखने से तनाव बढेगा |
आप इस बात पर जोर देते हैं कि ख़तरा इस्लाम नहीं बल्कि इस्लामवाद है, आप इस्लामवाद की परिभाषा कैसे करते हैं?
इस्लामवाद इस्लाम को समझने की एक विशेष स्थिति है जिसमें यह मानकर चला जाता है कि यदि मुस्लिम 1,000 साल पुरानी सम्पन्नता और सत्ता को वापस पाना चाहता है तो उन्हें इस्लामी क़ानून को सम्पूर्ण रूप से अपनाना चाहिए | इस्लामवादी आपस में इस बात पर बहस करते हैं कि इसे कैसे किया जाए : तुर्की में आधुनिक रूप लिया हुआ गुलेन आन्दोलन एक छोर की कट्टरता को प्रस्तुत करता है और आई एस आई एस दुसरे छोर की कट्टरता को| कुछ इस्लामवादी हिंसा का सहारा लेते हैं और शेष राजनीतिक व्यवस्था से ऐसा करते हैं| इस रूप में वे कम्युनिष्ट की याद दिलाते हैं जिनमें कि लक्ष्य एक है पर रणनीति को लेकर भिन्नता है|
आपके अनुसार "इस्लामवादी ख़तरा" हमारे समय का सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है जिसका सामना पश्चिम कर रहा है | इस्लामवादी आतंकवाद से तो नुक़सान समझ में आता है पर इस्लामवादी समस्त पश्चिम के लिए कैसे खतरा हैं, और वह भी पश्चिम की आर्थिक और सैन्य रूप से प्रभावी भूमिका देखते हुए|
मेरे मत में कम्युनिज्म और फासीवाद के बाद इस्लामवाद तीसरा सबसे बड़ा अधिनायकवादी खतरा है जो कि भडकाऊ और शक्तिशाली विचारों से परिपूर्ण जिससे हमारी जीवन पद्धति को खतरा है| जैसे हमें कम्युनिज्म और फासीवाद से लड़ना पडा वैसे ही हमें इस्लामवाद से लड़ना ही होगा|
जब आप कहते हैं कि पश्चिम को इस्लामवाद से लड़ना होगा तो यह आपके अनुसार यह कैसी लड़ाई है सांस्कृतिक , राजनीतिक या सैन्य|
हिंसा से लड़ना तो एक आसान हिस्सा है क्योंकि लोगों को मौत के घाट उतारने वाले जिहादी हमले डरावने हैं और पश्चिम के पास पुलिस विभाग है , खुफिया एजेंसी हैं और सशत्र बल हैं जो इस समस्या का सामना करने में सक्षम हैं | हालांकि यह निचले स्तर की हिंसा संपत्ति की हानिं करती है लोगों को मारती है पर सभ्यताओं को नहीं पलट सकती | पर इसके विपरीत कानूनसम्मत इस्लामवाद व्यवस्था के भीतर काम करते हुए , राजनीति, शिक्षा , आर्थिक सहायता या फिर मीडिया क्षेत्र में कार्य करते हुए विशाल रूप में अपना प्रभाव विस्तार कर सकता है| एक ओर जहां मैं सड़क पर कानूनसम्मत इस्लामवादी से संघर्ष करना पसंद करूंगा न कि हिंसक जिहादी से , अहिंसक नीतियों से ही समाज का चेहरा बदलता है और इस अनुपात में बहुत कम पश्चिमी लोग हैं जो यह समझ पा रहे हैं कि चल क्या रहा है|
इस्लामवाद पर यूरोप की प्रतिक्रिया को आप कैसे देखते हैं?
20 साल की तुलना में काफी जागरूकता आयी है पर अब भी इतनी जागरूकता नहीं आयी है कि नीतियों में परिवर्तन करा सके| आम तौर पर समस्त यूरोप में ऐसे राजनीतिक दल हैं जिनके लिए आप्रवास और इस्लामवाद प्राथमिकता है पर इनमें से कोई भी सत्ता में नहीं है क्योंकि इनके लोग अत्यंत अपरिपक्व हैं और इनमें अधिकतर अतिवादी हैं और अलग थलग हैं | इस कारण ये 51 प्रतिशत पर नहीं जा पाते |
जैसे कि अल्टरनेटिव फॉर ड्यूचलैण्ड इन जर्मनी , एकमात्र राजनीतिक दल है जो कि मुस्लिम आप्रवास का लगातार विरोध कर रहा है?
बिलकुल सही एएफडी इस बात का सबसे शानदार उदाहरण है जो कि अपरिवक्व और अतिवादियों का संग्रह है और अपनी पहचान खोज रहा है कि यह उदारवादी है, नव नाजी है या इन दोनों के मध्य का है| जब तक वे इस प्रश्न पर अटके रहेंगे उनकी निर्वाचन की संभावना सीमित है और ये लोग खतरनाक भी हैं| परन्तु मुझे आशा है कि एएफडी परिपक्व हो जायेंगे और मुझे लगता है और आशा भी है कि वे मुख्यधारा में आ जायेंगे क्योंकि जर्मनी को ऐसे राजनीतिक दल की आवश्यकता है| पर हर बीतते हुए वर्ष के साथ ख़तरा बढ़ रहा है|
क्या आप्रवास विरोधी पार्टियां सत्ता से बाहर रहेंगी ?
नहीं , ऐसा नहीं है मुझे लगता है कि यह स्थिति बदल जायेगी और एक दशक के भीतर इन राजनीतिक दलों को सत्ता में आने का अवसर मिल जाएगा |
एएफडी को चुनाव में 10 प्रतिशत से कम मत मिले जबकि मर्केल की सीडीयू को लगभग40 प्रतिशत मत मिले | क्या यह इस बात का संकेत है कि जर्मनी के लोग मर्केल की आप्रवास नीति से इस कदर भी असंतुष्ट नहीं हैं?
मुझे इस बात का आश्चर्य है और इसकी व्याख्या नहीं कर पा रहा हूँ कि मर्केल को सीडीयू में चुनौती क्यों नहीं मिल रही है|
नीदरलैंड के गीर्ट वाइल्दर्स मुस्लिम आप्रवास के मुखर विरोधी राजनेता हैं और उनपर घ्रणा फैलाने वाले भाषण के लिए मुकद्दमा चला और आपके संगठन ने उनके कानूनी खर्च में मदद की क्यों?
हम मिडिल ईस्ट फोरम में इस बात में विश्वास करते हैं कि इस्लाम और इस्लामवाद से जुड़े विषयों पर सार्वजनिक रूप से अपना विचार रखने की स्वतंत्रता सबको होनी चाहिए | भले ही हम उस विचार से सहमत हों या न हों | इस दिशा में हमारा लीगल प्रोजेक्ट ऐसे लोगों को उनके बचाव के लिए कानूनी सहायता देता है जिसमें कि कुछ साल पहले वाइल्दर्स भी शामिल हैं | कौन शत्रु है इसको लेकर मैं उनके विचार से सहमत नहीं हूँ ( उनका कहना है कि इस्लाम , मेरा मानना है इस्लामवाद) पर यह बात दूसरे स्थान पर है ,मैं उनकी सहायता करूंगा जैसे कोई भी पश्चिमी व्यक्ति अदालत में फंसे बिना इस्लाम पर अपनी बात रखने के अपने अधिकार पर जोर दे सके|
क्या डोनाल्ड ट्रम्प का " मुस्लिम प्रतिबन्ध" संयुक्त राज्य अमेरिका से इस्लामवादियों को दूर रखने में उपयोगी कदम है?
ट्रम्प प्रशासन की ओर से छह मुस्लिम बहुल देशों के नागरिकों को प्रतिबंधित करने का निर्णय सही नीयत के साथ लिया गया था पर उसका क्रियान्वयन बहुत दयनीय था| हमें किसी व्यक्ति के पासपोर्ट को नहीं बल्कि उसके विचार को देखना चाहिए | कनाडा के कुछ लोग हमारे शत्रु हैं पर कुछ ईरानी हमारे मित्र हैं| इसलिए विचारों का अधिक महत्व है न कि राष्ट्रीयता का | कुछ देशों के लोगों को प्रतिबंधित करने से हमें सुरक्षा नहीं मिल जाती इसके लिए देश में प्रवेश करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को जानने के लिए गंभीर प्रयास करने की आवश्यकता है|
2012 में हैम्बर्ग ने कुछ मुस्लिम ग्रुप के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किये कि इस्लामी कक्षाओं और छुट्टियों का विनियमन होगा | उस संगठन के लोगों पर इस्लामोफोब और सेमेटिक विरोधी होने का आरोप लगा, इस कारण अब तक अधिकारियों को कोई भी साफ़ सुथरा मुस्लिम संगठन नहीं मिला है| इस पर आपके विचार?
इस्लामवादियों के पास गैर इस्लामवादी मुसलमानों की तुलना में आर्थिक सहायता काफी अधिक और संगठित है , क्योंकि उन्हें मध्य पूर्व के देश जैसे सउदी अरब , ईरान और तुर्की से आर्थिक सहायता मिलती है| इसकी सहायता से उन्हें नियमित रूप से पश्चिम में मुस्लिम जीवन को प्रभावित करने का अवसर मिलता है , इसकी सहायता से वे टेलीविजन पर आते हैं , अन्तर्धार्मिक बहस में भाग लेते हैं , कक्षाओं में पढ़ाते हैं ( और इस मामले में ) सरकार के साथ सहयोग करते हैं|
आप चाहते हैं कि पश्चिमी सरकारों को नरमपंथी मुसलमानों को सशक्त करना चाहिए पर जर्मनी में इस्लामवाद का विरोध करने में केवल कुछ मुस्लिम ही सामने आये , तो कौन नरमपंथी है और वे कहाँ हैं?
इस्लामवाद के विरुद्ध बड़ी संख्या में मुस्लिम सहयोग का आह्वान करने में पश्चिम असफल रहा है| (मुस्लिम बहुल देशों का मामला और है)| कुछ तो इसका कारण आर्थिक सहायता का अभाव है , संगठन है, कुछ तो भय है एक मुस्लिम होते हुए इस्लामवाद के विरुद्ध सामने आने के लिए काफी साहस की आवश्यकता है | बर्लिन में नई उदारवादी इब्न रशद गोयते मस्जिद इसका उदाहरण है : इसके संस्थापक सेयरान एटेस को जान से मारने की धमकियां मिलीं |
पश्चिम की सरकारों को क्या करना चाहिए?
गैर इस्लामवादी मुसलमानों का मजबूती से समर्थन करना चाहिए और विशेष रूप से इस्लामवाद विरोधी मुसलमानों का | तुर्की के इस्लामवादी रिसेप तईप एरडोगन का दावा है कि केवल एक प्रकार का इस्लाम है और वह उनका वाला| पर ऐसा नहीं है अनेक प्रकार के इस्लाम हैं और मुसलमानों को इन्हें अस्वीकार करना चाहिए और इस्लामवादी एकाधिकार को बढ़ावा नहीं देना चाहिए| इससे भी आगे एटेस जैसे इस्लामवाद विरोधी बहादुर लोगों को आधिकारिक स्वीकृति देनी चाहिए और अन्य प्रकार की सहायता भी देनी चाहिए|
2015 में जर्मनी के इस्लामीकरण के भय विषय को संबोधित करते हुए चांसलर एंजेला मर्केल ने सुझाव दिया था कि इस्लाम से भयभीत होने के स्थान पर जर्मनी के ईसाई लोगों को अपने धर्म की जड़ों को सीखना चाहिए और अधिक बार चर्च जाना चाहिए | इस पर आपकी प्रतिक्रिया?
मर्केल का तैश में आकर जवाब देना पश्चिमी यूरोप के ( उत्तरी नहीं ) कुलीन लोगों के स्वभाव का ही अंग है जिन्हें मुस्लिम आप्रवास से उत्पन्न होने वाली समस्या का अंदाजा नहीं है | इसके अनेक कारण हैं : अपराध बोध, स्वप्न लोक में जीना , वोट की ओर देखना , राजनीतिक रूप से सही दिखने की ललक और " इस्लामोफोबिक" कहलाये जाने का भय|
अपराध बोध क्यों?
क्योंकि जैसा फ़्रांस के उपन्यासकार और निबंधकार पास्कल ब्रकनर ने 2006 की अपनी पुस्तक ला टायरनी दे ला पेनिटेंस में व्याख्या की थी कि यूरोप के बहुत से लोग अपनी तीन चीजों के लिए साम्राज्यवाद, फासीवाद और नस्लवाद के लिए प्रायश्चित करते हैं भले ही वे स्वयं इन बुराइयों का हिस्सा नहीं रहे हैं| यूरोप के कुछ लोगों के लिए उनकी सफ़ेद चमड़ी ही उनके अपराध बोध का कारण है | इसी कारण वे अपनी ओर से असीमित सहनशक्ति और सदाशयता का आचरण गैर पश्चिमवासियों के प्रति करते हैं| जबकि तथ्य यह है कि गैर पश्चिमी लोग भी पाप करते हैं पर उनके पाप की गिनती न होना न केवल अहंकार है बल्कि नस्लभेद भी है कि केवल सफ़ेद चमड़ीवालों का पाप गिना जाता है|
यूरोप की महान प्रगति को देखते हुए यह अपराध बोध ध्यान देने योग्य है| 1987में मुझे फिनलैंड की अपनी यात्रा याद आती है जब मैं सडक पर सोचते हुए चल रहा था , " इस सम्पन्नता , स्वतंत्रता , कानून के शासन और लोकतंत्र के लिए ही तो मानवता ने हमेशा से प्रयास किया और अब यह सब मिल गया है" | कितने आश्चर्य की बात है कि जिस यूरोप ने यह सब प्राप्त किया आज अपराध बोध से ग्रस्त है , जिसके संतान ही नहीं है और एक प्रतिद्वंदी सभ्यता से स्वयं को बचाना नहीं चाहता | एक इतिहासकार के रूप में मैं कहता हूँ इस प्रकार की कमजोरी अभूतपूर्व है|