1974 में भी जापानी साम्राज्य की सेना के सेकेण्ड लेफ्टिनेंट हिरू ओनोडा फिलीपींस के जंगलों में छुपकर अपने सम्राट के लिए युद्ध लड़ रहे थे| उन्होंने 29 वर्ष पूर्व जापान द्वारा आत्मसमर्पण किये जाने की बात को अस्वीकार कर रखा था | उन लम्बे वर्षों में उन्होंने पूरे पागलपन के साथ प्रति वर्ष फिलीपींस के एक व्यक्ति कीह्त्या की और तीन को घायल किया| अंत में उनके पूर्व कमांडर ने सुनियोजित प्रयास से ओनोडा को समझाया कि सम्राट ने 1945 में पराजय स्वीकार कर ली थी और इसी कारण उन्हें भी अब अपने हथियार डाल देने चाहिए|
पश्चिमी तट और गाजा के फिलीस्तीनी ओनोडा का ही बड़ा स्वरुप लगते हैं| उन्होंने 24 वर्षों पहले औपचारिक रूप से इजरायल के हाथों अपनी पराजय स्वीकार कर ली थी , जब व्हाइट हाउस के लान में खड़े होकर यासर अराफात ने " इजरायल राज्य के शान्ति और सुरक्षा के साथ अस्तित्व में रहने के अधिकार को स्वीकार कर लिया था" | समस्या यह थी कि आत्मसमर्पण के इस कार्य के प्रति अराफात स्वयं गंभीर नहीं थे और अधिकतर फिलीस्तीनवासियों ने इसे खारिज कर दिया था |
इस कारण युद्ध जारी रहा क्योंकि फिलीस्तीनवासियों ने उस अधेड़ और दुष्ट जापानी सैनिक को आत्मसात कर लिया और एक असफल उद्देश्य के लिए युद्ध कर रहे हैं तथा आत्मसमर्पण करने के आह्वान को लगातार अनसुना कर रहे हैं और पागलपन में आकर लोगों को मार रहे हैं| जिस प्रकार ओनोडा लगातार इसी बात पर विश्वास करता रहा कि उसका साम्राज्य दैवीय है उसी प्रकार फिलीस्तीनवासी भी एक स्वप्नलोक में निवास करते हैं कि जीसस फिलीस्तीन निवासी थे और जेरूसलम सदैव से पूरी तरह इस्लामी था और इजरायल एक नया क्रूसेडर देश हैजिसका पतन बस होने ही वाला है | ( इसी भावना में ईरान के तानशाह अली खोमेनी ने 9 सितम्बर 2040 की तिथि की भविष्यवाणी कर दी जब इजरायल नष्ट हो जाएगा और उनके सहयोगी ने उस तिथि की गिनती के लिए एक बड़ी विनाश की तिथि वाली घड़ी भी बना डाली )| कुछ लोगों ने कल्पना कर ली है कि इजरायल नष्ट हो चुका है और लगभग सभी अरब के मानचित्र में इजरायल का स्थान फिलीस्तीन ने ले रखा है|
आखिर कैसे फिलीस्तीन के लोग वास्तविकता की उपेक्षा कर भ्रान्ति को जारी रख रहे हैं? इसके तीन प्रमुख कारण है: इस्लामी सिद्धांत , अंतरराष्ट्रीय सहयोग, और इजरायल की सुरक्षा सेवा की रक्षात्मक सजगता | ( कभी इजरायल का वामपंथ इसका बड़ा कारण हुआ करता था पर अब शायद ही इसकी कोई गणना है|)
पहला, इस्लाम इस बात की आशा करता है कि जो भूमि एक बार मुस्लिम नियंत्रण में थी ( दार अल इस्लाम) वह दान की है ( वक्फ़) और इसका फिर से मुस्लिम नियंत्रण में आना अवश्यम्भावी है| बर्नार्ड लेविस के अनुसार ऐतिहासिक रूप से यूरोप के राज्य क्षेत्र को खोने पर मुसलमानों की प्रतिक्रिया इस अपेक्षा के साथ रही कि, " ये सभी इस्लामी भूमि थी जिसे गलत तरीके से इस्लाम से ले लिया गया और यह दैवीय रूप से फिर से उन्हें ही मिलेगी" | सही होने का यह अनुमान और ऐसा अवश्यम्भावी रूप से होने की आशा साथ जोड़े रहने की शक्ति देती है और जो कि साइप्रस में तुर्की और लेबनान में सीरिया के आक्रमण में देखा जा सकता है|
जेरूसलम विशेष रूप से इस्लामी भावनाओं को प्रेरित करता है| सबसे पहले इस भावना का दोहन 1931 में जेरूसलम के मुफ्ती अमीन अल हुसैनी ने समग्र इस्लामी सम्मेलन आयोजित कर किया और उसके बाद अनेक सम्मेलन यासर अराफात, अयातोला खोमैनी और रिसेप तईप एरडोगन ने आयोजित किये| जुलाई में टेम्पल माउंट में मेटल डिटेक्टर को लेकर जो शोर मचा था वह इस शहर की विरासत को लेकर खुलासा करता है ,जब विविध शक्तियों ने जैसे मुस्लिम ब्रदरहुड के दार्शनिकयुसूफ अल करदावी, जार्डन के राजपरिवार, अरब लीग और आर्गनाइजेशन आफ इस्लामिक कोआपरेशन ने एक स्वर से फिलीस्तीन के पक्ष में आवाज उठाई और कोई प्रश्न नहीं किया गया मानों अब भी यह 1950का काल है जब बिना किसी तर्क के केवल लफ्फाजी पर बात होती है|
दूसरा, सहयोगी सरकारें , वामपंथी , उनके लिए अच्छा करने वाले और अन्य अंतरराष्ट्रीय लोग फिलीस्तीन को घोर इजरायल विरोध और इस भुलावे के साथ कि फिलीस्तीन का अस्तित्व है इस बात के लिए प्रेरित करते हैं कि वे अपनी काल्पनिक विजय को जारी रखें | 1996 से प्रत्येक ओलम्पिक में एथलीट लोगों ने फिलीस्तीन नामक अवास्तविक देश का प्रतिनिधित्व किया है| इजरायल के दूतावास 78 देशों में हैं जबकि फिलीस्तीन अथारिटी के दूतावास 95 देशों में हैं| 2013 के अपवाद को छोड़कर हाल के वर्षों में देश पर आधारित यूनेस्को के प्रमुख प्रस्ताव में इजरायल पर ध्यान रहा है| अतंरराष्ट्रीय स्तर पर यह सहयोग फिलीस्तीन की भ्रान्ति को बढ़ावा देता है|
तीसरा, हाल के सर्वेक्षण के बाद भी जिसमें कि बड़ी संख्या में इजरायलवासी चाहते हैं कि फिलीस्तीन के लोगों को उस दिशा में धकेला जाए कि वे स्वीकार करें कि संघर्ष अब समाप्त हो चुका है और इजरायल विजयी हो चुका है , इजरायल की किसी भी सरकार ने 1993 से लेकर अब तक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है| आखिर यह असंगतता क्यों जारी है? क्योंकि इजरायल की सुरक्षा सेवा जिसका कि देश की नीतियों पर दबदबा है ऐसे किसी भी कार्य से बचना चाहते हैं जो फिलीस्तीनी हिंसा को भड़काए | उनका भाव रहता है कि " इस समय चीजें जितना संभव है उतना ठीक हैं" " इसलिए हमें सख्त होने के लिए किसी नए विचार के बारे में नहीं सोचना चाहिए|"
यही उपेक्षा है जिसके चलते जेरूसलम अपने यहाँ बड़े पैमाने पर अवैध घर बनाए जाने को सहन करता है, हत्यारों को जेल से रिहा करता है, लाभदायक दर पर फिलीस्तीन के लोगों को जल और बिजली प्रदान करता है, और अंतरराष्ट्रीय सहयोग देने वालों को न केवल फिलीस्तीन अथारिटी को सब्सिडी देने की अपील करता है बल्कि इजरायल की कल्पना पर आधारित विशाल कार्य के लिए सहायता भी देने की बात करता है( जैसे गाजा का कृत्रिम प्रायद्वीप)| इसके विपरीत इजरायल की बुद्धिमान सुरक्षा किसी भी ऐसे प्रयास को हतोत्साहित करती है जिसके चलते फिलीस्तीन वालों की आर्थिक सहायता बंद हो, या उन्हें दंड मिले या फिर उन्हें मिलने वाले विशेषाधिकार से उन्हें वंचित किया जा सके ( जैसे कि टेम्पल माउन्ट पर नियंत्रण)|
इस प्रकार फिलीस्तीनी भ्रान्ति इस्लामी सिद्धांत , अंतरराष्ट्रीय सहयोग और इजरायल की कमजोरी के जहरीले मिश्रण का परिणाम है|