हालिया सर्वे में यह स्पष्ट होता है कि इजरायल के लोग फिलीस्तीनियों के लिए कठोर नीतियाँ चाहते हैं| जबकि दूसरी ओर समय समय पर की जाने वाली तोड़फोड़ और इजरायलियों की हत्या से परे फिलीस्तीनी क्या चाहते हैं?
शालेम कालेज के दान पोलिसर ने 2000 से लेकर अब तक के 400 ओपिनियन पोल की समीक्षा की और उन्होंने पाया कि उनमें इजरायल को लेकर तीन विचार हैं: ये ऐतिहासिक या धार्मिक रूप से न्यायसंगत नहीं है : इजरायल के प्रति स्वभाव से आक्रामकता होती है , यह भाव कि यह शीघ्र ही विलुप्त हो जाएगा | पर धीरे धीरे व्यवहार में परिवर्तन आ रहा है, हाल के एक सर्वेक्षण के आधार पर यह पाया गया कि फिलीस्तीनी अथारिटी और हमास की अस्वीकृति की प्राथमिकता के प्रति लोगों में अरुचि बढ़ रही है|
वाशिंगटन इंस्टीटयूट के डेविड पोलाक के दिशानिर्देशन में 16 मई से 27 मई के मध्य किये गए सर्वेक्षण को पेलेस्तीनीयन सेन्टर फार पब्लिक ओपिनियन ने लागू किया और इस सर्वेक्षण में पश्चिमी तट, गाजा और पूर्वी जेरूसलम के 1, 540 फिलीस्तीनी लोगों से व्यक्तिगत रूप से विस्तार से प्रश्न किये गए|
पश्चिमी तट के मात्र 12 प्रतिशत निवासियों ने कहा कि उनकी प्राथमिकता " फिलीस्तीनी राज्य की स्थापना है" और गाजा के 25 प्रतिशत निवासी इस प्राथमिकता के साथ सर्वे में सामने आये , जबकि क्रमशः 49 और 50 प्रतिशत लोगों ने " अच्छे पारिवारिक जीवन को" अपनी प्राथमिकता माना |( पूरे लेख में पश्चिमी तट और गाजा का परिणाम शामिल है जेरूसलम को इसमें शामिल नहीं किया गया है)
वर्तमान सर्वेक्षण के उत्तर से " अच्छे पारिवारिक जीवन" की प्राथमिकता उभर कर सामने आती है| केवल 12 और 25 प्रतिशत ने अमेरिकी दूतावास को जेरूसलम में स्थापित करने को प्राथमिकता दी | फिलीस्तीनी अथारिटी द्वारा " शहीदों" को विशेष आर्थिक लाभ दिए जाने के मामले पर क्रमशः 66 और 67 प्रतिशत का कहना था कि अथारिटी को अन्य लोगों की भांति ही कैदियों के परिवारों को भी सामान्य सुविधाएं दी जानी चाहिए"|
सर्वेक्षण में जिन फिलीस्तीनी लोगों का नमूना लिया गया वे सभी इजरायल के प्रति अपने व्यवहार में राजनीतिक से अधिक व्यावहारिक दिखे :
- इजरायल के भीतर रोजगार की सम्भावानों के पक्ष में क्रमशः 63 और 70 प्रतिशत थे |
- इजरायल की कम्पनियों से अधिक रोजगार प्राप्त करने के पक्षधर करीब करीब आधे उत्तर देने वाले थे |
- इजरायल के लोगों के साथ प्रत्यक्ष व्यक्तिगत संपर्क बढाने के पक्ष में क्रमशः 55 और 57 प्रतिशत लोग हैं|
- इस प्रश्न के उत्तर में कि अरब के देश इजरायल और फिलीस्तीन दोनों को " नरमपंथी स्थिति" लेने के लिए रियायत दे रहे हैं तो क्रमशः 58 और 55 प्रतिशत लोगों ने इस प्रस्ताव को पसंद किया |
उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि 1948 की स्थिति को अब बदला नहीं जा सकता और क्रमशः 60 और 46 प्रतिशत लोग इस बयान से सहमत हैं, " अधिकतर इजरायली शायद वहीं रहेंगे जहां वे बसे हैं और अधिकतर फिलीस्तीनी शरणार्थी 1948 की अपनी भूमि पर वापस नहीं जायेंगे" |
दो उत्तरों से लगता है कि यहूदी लोगों की अपेक्षा इजरायल का राज्य अधिक स्वीकार्य है क्योंकि क्रमशः 75 और 62 प्रतिशत लोग इस बात पर राजी हैं कि इजरायल के साथ युद्ध समाप्त कर दिया जाए और 1949 की सीमा के आधार पर फिलीस्तीन का निर्माण कर दिया जाए , परन्तु क्रमशः 45 और 37 प्रतिशत ही इस बात पर सहमत दिखे कि " यदि कब्जे को समाप्त करने के लिए दो जन के लिए दो राज्य फिलीस्तीनी लोगों के लिए और यहूदी लोगों के लिए निर्मित कर दिया जाए" |
इन दो उत्तरों में जो असंगतता है वह इजरायल को एक यहूदी राज्य के रूप में स्वीकार करने की फिलीस्तीनी अनिच्छा को दर्शाती है| बहुत कम लोगों ने इस बात को स्वीकार किया कि " इस भूमि पर यहूदियों का कुछ अधिकार है" और बहुत बड़ी मात्रा में लोगों ने इस बात पर जोर दिया कि " एक दिन समस्त फिलीस्तीन पर फिलीस्तीनियों का नियंत्रण होगा"| इजरायल के अस्तित्व को नकारने का कर्मकांड तो सामान्य बात है परन्तु अधिक ध्यान देने योग्य बात है कि नकारने के इस कर्मकांड के बाद भी इसके अस्तित्व से पूरी तरह बच जाने की भावना नहीं है|
इस बात को पुष्ट करने के लिए पिछले दो वर्षों में ही व्यवहार में आये नाटकीय परिवर्तन पर ध्यान देना होगा | मई 2015 में इस प्रश्न के उत्तर में कि दो राज्य का अर्थ यदि यह हो " संघर्ष समाप्त हो" या फिर " ऐतिहासिक फिलीस्तीन को पूरी तरह मुक्त कराने तक" यह संघर्ष जारी रहे तो पश्चिमी तट के लोगों ने 35 से 55 प्रतिशत तक इस संघर्ष को जारी रखने के पक्ष में राय व्यक्त की थी जबकि गाजा के लोगों ने 47 से 44 प्रतिशत तक समाधान के पक्ष में राय व्यक्त की थी |
मई 2015 में पश्चिमी तट के लोगों ने उसी तरह अपनी राय व्यक्त की थी जैसी अब की है पर गाजा के लोगों ने बड़े पैमाने पर संघर्ष जारी रखने पर सहमति जताई थी और इसी कारण पोलाक यह मानते हैं कि इन दो वर्षों में , " गाजा के लोगों को अपनी धरती पर 2014 में हुए विनाशकारी युद्ध का पछतावा है और इसी कारण अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण दिशा की ओर अपने विचार मोड़ दिए हैं" | इससे बड़ा प्रमाण यह है कि जब इन लोगों से पूछा गया कि क्या हमास को इजरायल के साथ अपना युद्ध विराम जारी रखना चाहिए तो 55 से 80 प्रतिशत तक लोगों का जवाब हाँ में था और इस जवाब में गाजा में हुए अनेक चरण के युद्धों का प्रभाव दिख रहा है|
जब बात वाशिंगटन की आती है तो " रियायत देने के लिए इजरायल पर दबाव डालने" की बात फिलीस्तीनी प्राथमिकता में नहीं है| पश्चिमी तट के लोगों के मत में फिलीस्तीन अथारिटी को " अधिक लोकतांत्रिक और कम भ्रष्ट होने के लिए" अमेरिका की ओर से दबाव डाला जाना चाहिए, गाजावासियों के लिए पहली प्राथमिकता " बढी हुई आर्थिक सहायता है"|
इन उत्तरों से यह पता लगता है कि कुछ फिलीस्तीनी विशाल इजरायल विरोध की महत्वाकांक्षा से बाहर आ रहे हैं और वे अनंत काल तक प्रतिकार की भावना से बंधे नहीं हैं , वे सुपरमैन नहीं हैं| सभी लोगों की तरह वे भी दुःख, इछाशक्ति के ध्वस्त होने और पराजय का एहसाह कर पाते हैं|
इस निष्कर्ष से इजरायल की विजय की रणनीति की उपयोगिता सिद्ध होती है जिससे कि फिलीस्तीनी लोगों पर दबाव बढाया जाये जब तक कि रामल्लाह और गाजा में उनके तानाशाह व्यावहारिक न हो जाएँ| इसमें इस बात की संभावना है कि फिलीस्तीन इजरायल संघर्ष के समाप्त होने की लम्बी प्रक्रिया आरम्भ हो सके|