1988 में आरंभ हुआ पोलियो मुक्ति का विश्व व्यापी अभियान जब अपनी सफलता की ओर अग्रसर था तभी 2003 में उत्तरी नाइजीरिया की मुस्लिम जनसंख्या इस पूरे अभियान के पीछे एर षड्यंत्र अनुभव करने लगी. षड्यंत्र के इस सिद्दांत ने अकेले ही पोलियो को एक बार फिर महामारी का स्वरुप दे दिया .
षड्यंत्र के इस सिद्दांत का जनक अरसठ वर्षीय फिजिशियन इब्राहिम दत्ती अहमद है जो नाइज़ीरिया के शरीयत कानून की सर्वोच्च परिषद् का अध्यक्ष भी है . इस्लामवादी डा. अहमद ने आरोप लगाया कि अमेरिका ने इस वैक्सीन में ऐसे तत्व मिला दिए हैं जो बच्चों में संतानोत्पत्ति की क्षमता कम कर उन्हें नपुंसक बनाते हैं.साथ ही एक और सिद्दांत प्रतिपादित हुआ कि इसके द्वारा एड्स का संक्रमण फैलाया जा रहा है . बाल्टीमोर सन् के जौन मरफी के अनुसार उनकी दृष्टि में यह हिटलर से भी बुरा अपराध है .पोलियो की इस वैक्सीन का भय इराक युद्ध के कारण उत्पन्न हुआ . विश्व स्वास्थ्य संगठन से जुडे एक डाक्टर ने व्याख्या की कि यदि अमेरिका मध्य एशिया के लोगों से लड़ रहा है तो यदि इस्लामी तर्क
पर जायें तो इसका अर्थ हुआ कि वे मुसलमानों से लड़ रहे हैं.स्थानिय इमामों ने बंध्याकरण (नपुंसकता ) के इस सिद्दांत को खूब हवा दी जो विश्व स्वास्थ्य संगठन , नाईजीरिया सरकार और अनेक नाईजीरियाई डाक्टरों तथा वैज्ञानिकों के आश्वासन के बाद भी न रुक सकी .
नाईजीरिया के जिन तीन राज्यों ने अपने यहाँ पोलियो वैक्सीन देने से मना कर दिया उनमें से एक राज्य कानो के राज्यपाल इब्राहिम शेकाराउ ने अपने निर्णय को न्यायोचित ठहराते हुए कहा कि दो ,तीन , पाँच . छ या फिर दस बच्चों का बलिदान उन सैकड़ों हजारों या लाखों संभावित महिलाओं को संतानोत्पत्ति की क्षमता से वंचित करने की अपेक्षा छोटा बलिदान है .
बाल्टीमोर सन् ने नाइज़ीरिया की एक युवा माँ का उदाहरण प्रस्तुत किया है जिसने अपने बच्चे को पोलियो वैक्सीन देने से मना कर दिया . बच्चे को पोलियो हो जाने पर जब उसकी मां से पूछा गया कि क्या उसे अपने निर्णय पर पछतावा है उसने बेझिझक कहा नहीं और वह आगे भी ऐसा ही करेगी.
गाँव वालों ने पोलियो के विरुद्ध इस अभियान को एक खतरे के रुप में देखा और इस अवसर पर उन्होंने वैक्सीन पिलाने वालों का पीछा किया , उन्हें धमकाया और उनपर हमला किया . कुंठित होकर वैक्सीन पिलाने वाली टीम ने गाँव वालों का सामना करने के बजाए हजारों खुराकों को नष्ट करना उचित समझा .
2004 के मध्य में यह षड्यंत्र भारत पहुँच गया . एक स्वास्थ्य कार्यकर्ता ने एक झुग्गी झोपड़ी में गरीब और अशिक्षित महिलाओं को कहते पाया कि पोलियो के विरुद्ध यह दवा जन्म- दर रोकने का धोखे से अपनाया गया एक तरीका है .
मुसलमानों का यह अनावश्यक भय कि पश्चिम के लोग उन्हें बीमारियों से संक्रमित कर रहे हैं कोई नया नहीं है.1997 में एक पुस्तक के द्वारा मैंने इन आरोपों का सर्वेक्षण किया था . इन आरोपों में पहला आरोप द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन पर लगाया गया कि वह मिस्र को कौलरा और मलेरिया के रोगों से संक्रमित कर रहा है . अल्जीरिया के कबाईलिया प्रांत में प्रशिक्षण प्राप्त एक मिड वाइफ को उसके सुपरवाइजर ने डाँट पिलाइ कि वह सफेद कोट वाले लोगों के साथ मिलकर एक षड्यंत्र के तहत उनकी स्त्रियों के गुप्तांगों में हाथ डालकर उन्हें यौन रोगों से संक्रमित कर रही है .इराक ने आरोप लगाया कि अमेरिका एक विशेष प्रकार के सिगरेट से जानलेवा बीमारी फैलाने का प्रयास कर रहा है . इजरायल पर आरोप लगा कि उसने फिलीस्तिनीयों को खतरनाक फैक्ट्रीयों के कार्यों में लगाकर और फास्फोरस कि खोज में लगाकर उन्हें कैंसर से ग्रस्त कर दिया है .
पोलियो वैक्सीन षड्यंत्र सिद्दांत के कुछ प्रत्यक्ष परिणाम हैं – जिन 16 देशों में पोलियो का उन्मूलन हो चुका था वहाँ इसके पुन: फैलने के समाचार मिल रहे हैं. इनमें से 12 अफ्रीकी देश हैं और चार एशियाई देश हैं.यमन में अप्रैल से अबतक पोलियो के 83 मामले सामने आ चुके हैं . विश्व स्वास्थ्य संगठन इसे बड़ा संक्रामक रोग बता रहा है .
न्यूयार्क टाइम्स के अनुसार पोलियो से संबंधित घटनाओं का क्षेत्र लगभग मुस्लिम देशों या उसके आस- पास जुड़ा है .ऐसा इसलिए है क्योंकि वैज्ञानिकों की कल्पना के अनुसार पोलियो का संक्रमण नाइज़ीरिया से हज के द्वारा अन्य देशों को पहुँच रहा है . इस बात की सच्चाई की जाँच से पता चला है कि इस रोग के शिकार तीनों एशियाई मूल रुप से उत्तरी नाइज़ीरिया के हैं .इसके जवाब में विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्थाओं ने कठोर रुख अपनाते हुए कहा है कि चार करोड़ डालर के पोलियो विरोधी अभियान में तीस लाख डालर का योगदान ही मुस्लिम देशों का है और इन्हें अपना योगदान और बढ़ाना चाहिए.विश्व स्वास्थ्य संगठन के डेविड एल हेमन ने भी कहा कि इस्लामी देशों के लिए यह अच्छा संकेत होगा कि वे देखें कि अन्य इस्लामी देश मदद कर रहे हैं लेकिन उनका योगदान हमारी अपेक्षा से कहीं अधिक धीमा है .
अतिरिक्त धन पोलियो विरोधी अभियान में सहायता तो करेगा लेकिन अधिक महत्वपूर्ण यह है कि मुसलमानों को स्वयं को षड्यंत्र सिद्दांत वाली मानसिकता से बाहर निकालना चाहिए .यह पोलियो प्रकरण इस बात का उदाहरण है कि किस प्रकार षड्यंत्र सिद्दांत का मूल इस्लामी देशों में होता है जो सबको नुकसान पहुँचाता है और मुसलमानों को सबसे पहले.