गाजा क्षेत्र से अपने ही नागरिकों को हटाने का इजरायली सरकार का निर्णय अब तक किसी भी लोकतंत्र द्वारा की गई सबसे भयंकर भूल है. यह कदम इस कारण और भी बुरा है क्योंकि इस निर्णय से इजरायल सरकार ने स्वयं को स्वतः आबद्ध किया है और इसके पीछे वाशिंगटन का कोई दबाव नहीं है .पहली बार जब दिसंबर 2003 में राष्ट्रपति बुश ने सुना कि इजरायल के प्रधानमंत्री एरियल शेरोन ने गाजा क्षेत्र से अपनी सेना और अपने नागरिकों को हटाने का निर्णय अपनी ओर से कर लिया है तो इस पर वे बहुत उत्साहित नहीं दिखे . महीनों तक प्रयास करने के बाद कहीं जाकर व्हाइट हाउस ने इस पहल को अंगीकार किया .
इस निर्णय के तीन तरफा नुकसान होंगे – एक तो इजरायल में , फिलीस्तीन के साथ संबंधों के संदर्भ में और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर .
शेरोन ने 2003 के आरंभ में गाजा से वापसी का वादा करने वाले अपने प्रतिद्वन्दी को हराकर ही चुनावों में विजय प्राप्त की थी उस समय शेरोन ने कहा था कि “ अपनी पहल से गाजा में वापसी शांति को आमंत्रण नहीं वरन् युद्ध को निमंत्रण देना है ”. लेकिन 2003 के अंत में कुछ अज्ञात कारणों से शेरोन ने अपने वादे से मुकरते हुए , अपने समर्थकों के साथ छल करते हुए और इजरायल की जनता को भारी क्षति पहुँचाते हुए अपने प्रतिद्वन्दी की ही नीति को स्वीकार कर गाजा क्षेत्र को छोड़ने का निर्णय कर लिया .
फिलीस्तीन में शांति प्रयासों को अस्वीकार करने वालों के लिए यह स्पष्ट संदेश है कि आतंकवाद की नीति सफल है . जिस प्रकार पांच वर्ष पूर्व लेबनान छोड़ने के इजरायली निर्णय ने नये सिरे से हिंसा को बढ़ावा दिया था वही अब गाजा के मामले में भी होने जा रहा है . इस निर्णय के लिए कितने ही तकनीकी शब्दों का प्रयोग कर उसे “क्षेत्र को खाली करना “ या कुछ भी कहा जाए लेकिन फिलीस्तीनी इस बात को नजरअंदाज कर एक ही बात मानते हैं कि दबाव में आकर इजरायल भाग खड़ा हुआ है , जो कि सच भी है . अब तो फिलीस्तीनी नेता अपनी मंशा स्पष्ट करने लगे हैं कि वे इजरायली नियंत्रण से पश्चिमी तट और जेरुसलम क्षेत्र को हटाने के लिए भी गाजा की भांति ही आक्रामक तरीके अपनायेंगे . इस अभियान की सफलता के बाद हायफा और तेल अबीव उनके निशाने पर होगा जिसके बाद स्वयं इजरायल ही अदृश्य हो जाएगा .
इस निर्णय के द्वारा शेरोन प्रशासन आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध में अपने सहयोगियों के साथ किए गए वादे को भी पूरा करने में असमर्थ रहा है . जिस समय ब्रिटेन जैसे राज्य आतंकवाद विरोधी अभियान में गंभीरता दिखा रहे हैं ऐसे में इजरायली नेताओं द्वारा सैकड़ों दोषी आतंकवादियों को रिहा करना और दबाव में आकर गाजा से पैर खींच लेना आतंकवाद को प्रश्रय ही देगा .
इजरायल की यह भूल लोकतंत्र के लिए कोई अभूतपूर्व नहीं है. 1930 में फ्रांस द्वारा जर्मनी का तुष्टीकरण या फिर अमेरिका द्वारा वियतनाम को सहूलियतें दिये जाने के उदाहरण हमारे सामने हैं , परंतु इससे पहले किसी ने भी इस प्रकार अपने ही लोगों के अस्तित्व को क्षति नहीं पहुंचाई थी.