संपूर्ण पश्चिमी विश्व में मुसलमान आगे बढ़कर नित नई मांगें सामने रख रहे हैं और कुछ मामलों में तो यूरोप और अमेरिका के जीवन को ही चुनौती देते दिख रहे हैं . एक बड़ा सवाल यह है कि इस स्थिति का सामना कैसे किया जाए .
इसका एक सामान्य नियम है , पूरे अधिकार दो परंतु विशेषाधिकार की माँग अस्वीकार कर दो .
इस संदर्भ में कनाडा से संबंधित दो विवादों का उदाहरण हमारे सामने है . इसमें पहला मामला ओन्टारियो में स्वयंसेवी शरीयत अदालत ( इस्लामिक कानून ) स्थापित करने का है. इस विचार को काउंसिल ऑफ अमेरिकन इस्लामिक रेलेश्न्स कनाडा और कनाडियन इस्लामिक काँग्रेस जैसे इस्लामिक संगठनों ने प्रश्रय दिया . होमा अर्जोमांड के नेतृत्व में मुस्लिम महिला गुटों ने इसका विरोध किया क्योंकि उन्हें भय है कि इसके स्वयं सेवी रुप के बाद भी इन इस्लामिक अदालतों का उपयोग महिलाओं को उत्पीड़ित करने के लिए किया जाएगा .
आज के सार्वजनिक जीवन में शरीयत जैसे मध्ययुगीन कानून के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए लेकिन यदि यह सुनिश्चित हो कि महिलाओं का उत्पीड़न नहीं होगा और इस्लाम के न्यायिक निर्णय , कनाडा के अधिकार और स्वतंत्रता के चार्टर के अधीन होंगें तो कनाडा के अन्य लोगों की भांति मुसलमानों को भी पंचाट के जरिए मामलों को निपटाने का अधिकार होना चाहिए . लेकिन दूसरी ओर मुसलमानों द्वारा मौन्ट्रियल के मैकगिल विश्वविद्यालय में प्रार्थना के लिए अलग से कमरे की मांग करना अतिवादी और अस्वीकार्य है . एक सेक्यूलर संस्थान के तौर पर सैद्धांतिक रुप से विश्वविद्यालय किसी भी धार्मिक गुट को परिसर के अंदर स्थायी रुप से पूजा के लिए कोई स्थान उपलब्ध नहीं करा सकता . इस विश्वव्यापी नीति के बाद भी वहाबी लौबी का अंग मुस्लिम स्टूडेंट एसोसियेशन अलग स्थान की मांग पर जोर दे रहा है और मांग के पूरा न होने पर मानवाधिकार के उल्लंघन की शिकायत दर्ज करने की धमकी दे रहा है . लेकिन इस मामले में मैकगिल विश्वविद्यालय को दृढ़ता का परिचय देना चाहिए .
मुसलमानों द्वारा अधिक अधिकार की माँग के मामलों में प्रमुख अंतर यह करना चाहिए कि क्या मुस्लिम अपेक्षायें समाज के दायरे में उपयुक्त बैठती हैं या नहीं जहाँ वे उपयुक्त हैं वहाँ उनको समायोजित किया जाता है जैसे इन मामलों में – ईद उल अधा छुट्टियों के लिए स्कूल और विश्वविद्यालय बंद किए जाते हैं .
न्यू जरसी में पुरुष कर्मचारियों को दाढ़ी रखने की छूट है . टेनेसी में इस्लामिक कब्रगाह बनाई गई है .
जब अन्य अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों को उनके त्यौहार पर छुट्टियाँ दी जाती हैं, उन्हें दाढ़ी रखने की आजादी है और अपने निजी कब्रगाहों में शवों को दफनाने की स्वतंत्रता है तो मुसलमानों को ऐसी छूट देने में कोई ऐतराज नहीं है . लेकिन इसके विपरीत कुछ ऐसे मामले हैं जिनमें इस्लाम और मुसलमानों के लिए विशेषाधिकार की मांग अस्वीकार्य है –
अमेरिका में मुसलमानों के लिए एक अभूतपूर्व सरकारी सलाहकार बोर्ड स्थापित करने की मांग –
ब्रिटेन और अमेरिका में ऐसे क्षेत्रों को स्थापित करने की मांग जहाँ केवल मुसलमान रहें और उनसे जुड़ी गतिविधियां हों .
फ्रांस की भांति नगरपालिका के स्वीमिग पूल में महिलाओं के स्नान की अनुमति हटाने की मांग –
ब्रिटेन में किसी मुसलमान के मामले की सुनवाई की ज्यूरी में हिन्दू और यहूदी को शामिल न करने की मांग –
हमट्राच मिच में अजान के लिए शोरगुल से संबंधित कानून में परिवर्तन की मांग –
न्यूयार्क राज्य में कैदियों की तलाशी से जुड़ी प्रक्रिया को बदलने की मांग –
अमेरिका के गैर - मुसलमानों के धर्मांतरण के लिए कर दाताओं के पैसे से चलने वाले स्कूलों और वायुतरंगों के इस्तेमाल की माँग .
न्यूजरसी में सामान्य कर दाताओं के पैसे से चलने वाले स्कूलों की खाली कक्षाओं में प्रार्थना करने की अनुमति की माँग .
आस्ट्रेलिया में इस्लाम को अपशब्द कहने को गैर – कानूनी घोषित करने की मांग .
अदालत समर्थित सिद्धांत के अनुरुप कनाडा के इस्लामवादी द्वारा उसकी इस्लामविरोधी बातों के लिए उसे सज़ा देने की मांग .
इराक में तैनात अमेरिकी सैनिकों को उनके परिजनों द्वारा सुअर का मांस या उससे निर्मित पदार्थों को भेजने से रोकने की मांग .
सउदी अरब में नियुक्त अमेरिकी महिला सैनिकों को सिर से पांव तक ढ़के कपड़े पहनने की मांग .
मुसलमानों को इस्लाम और मुसलमानों की आलोचना करने से रोकने की मांग .
प्रत्येक उदाहरण से यह बात समझ में नहीं आती कि मुसलमान सामाजिक दायरे में समायोजित होना चाहता है या फिर इसे नए सिरे से बनाना चाहता है . व्यवस्था के अंतर्गत रहना तो ठीक है परंतु इसे अपने अनुसार चलाना सर्वथा अनुचित है . अमेरिका के संदर्भ में मुसलमानों को संविधान के ढांचे को स्वीकार करना चाहिए न कि इसकी अवहेलना करनी चाहिए .
मुसलमानों की मांगों का मूल्यांकन करते समय उनके पूर्ववर्ती कृत्यों और सामयिक आचरण को ध्यान में रखना चाहिए न कि विचारों को . सबसे महत्वपूर्ण यह है कि मांग किस संदर्भ में की गई है.
फ्रांस में अलसेस प्रांतीय परिषद् जब स्ट्रेसवर्ग की मस्जिद को सहायता देती है तो यह उचित है क्योंकि वह स्ट्रेसवर्ग के कैथेड्रेल और शहर के चर्च के जीर्णोद्धार में भी सहायता करती है . लेकिन वहीं यह विषय दूसरा हो जाता है जब बोस्टन शहर में इस्लामिक परिसर के लिए बाज़ार दर से कम दाम पर जमीन खरीदी जाती है क्योंकि अन्य धार्मिक वर्गों के लिए ऐसा नहीं किया जाता .
पश्चिमी सरकारों और अन्य संस्थानों को मुसलमानों को संकेत देना चाहिए कि वे भी अन्य धार्मिक वर्गों की तरह ही हैं और नियंत्रण स्थापित करने की उनकी आकांक्षा को असफल बनाना चाहिए . इसके लिए सरकारों के लिए आवश्यक है कि वे सैद्धांतिक रुप से लगातार ऐसी नीतियां बनायें जो संक्षेप में संकेत दे सकें कि मुस्लिम विशेषाधिकार की मांग अस्वीकार्य है और क्यों अस्वीकार्य है.