अश्लीलता जैसे कठिन विषय को परिभाषित करते हुए अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की प्रमुख प्रतिक्रिया थी .”मैं इसे तब जानता हूं जब इसे देखता हूं “ वैसे तो आतंकवाद को परिभाषित करना कोई कठिन नहीं है लेकिन स्कूली बच्चों की बेसलान में हुई क्रूर हत्या और उनके शवों पर रोते लोगों को देखकर उँची इमारतों में बैठ कर डेस्क पर काम करने वालों के लिए “जब मैं देखता हूँ तब मैं जानता हूँ “ की परिभाषा सटीक बैठती है .
आम तौर पर प्रेस आतंकवाद शब्द के प्रयोग से बचकर कुछ दूसरे ही नरम शब्दों का प्रयोग करता है . 3 सितंबर को रुस के बेसलान शहर में हुए हमले का ही उदाहरण लें जिसमें 400 से अधिक लोग मारे गए थे और उसमें भी बच्चों की संख्या अधिक थी . पत्रकारों ने काफी गहरी छान – बीन के बाद आतंकवादियों के लिए 20 अपेक्षाकृत नरम शब्द खोज निकाले .
- National Public Radio – हमलावर
- The Economist – आक्रमणकारी
- The Guardian – बम वर्षक
- The Associated Press- बंदी बनाने वाले
- Agence France Presse-कमांडो
- The Times –अपराधी
- United Press International- अतिवादी
- The Washington Post -लड़ाके
- The Australian -गुट
- New York Post –गुरिल्ला
- Reuters – बंदूकधारी
- Loss Angeles Times – अपहरणकर्ता
- New York Times – उग्रवादी
- The Observer – अपहरणकर्ता
- The Chicago Tribune – उग्रवादी
- The New York Times –कानून भंजक
- The BBC – चरम पंथी
- Sydney Morning Herald –विद्रोही
- Christian science monitor – अलगाववादी
- और सबसे अंत में द पाकिस्तान टाईम्स – कार्यकर्ता
आतंकवादी शब्द का प्रयोग न करने का मूल कारण अरब इजरायल संघर्ष से जुड़ा है .जो प्रेस में फिलीस्तीनियों के प्रति सहानुभूति और उनसे भयभीत होने का मिला जुला परिणाम है . सहानुभूति के बारे में तो व्यापक रुप से पता है लेकिन भय की बात कम लोगों को ही पता है . रायटर्स के निदाल अल मुगरावी ने गाज़ा में अपने सहयोगी पत्रकारों से कहा कि “www.newssafety.com” वेबसाईट पर किसी भी प्रकार की समस्या से बचने के लिए आतंकवाद या आतंकवादी शब्द के प्रयोग से बचें. साथ ही उन्हें यह बताया गया कि फिलीस्तीनियों को लोग संघर्ष का नायक मानते हैं .
आतंकवादियों को उनके इस नाम से पुकारने की अस्वीकृति अनुचित और अपराधभाव से ग्रस्त होने के स्तर तक पहुँच चुकी है .उदाहरण के लिए 1 अप्रैल 2004 को नेशनल पब्लिक रेडियो के प्रात:कालीन कार्यक्रम में कहा गया कि इजरायल की सेना ने 12 लोगों को पकड़ा है जिनके बारे में कहा गया है कि वे आतंकवादी हैं जिनकी तलाश थी . लेकिन कमेटी औफ एक्यूरेसी इन मिडिल इस्ट रिपोर्टिंग अमेरिका ने इसे अनुचित ठहराया और नेशनल पब्लिक रेडियो ने 24 अप्रैल को इसमें संशोधन करते हुए कहा कि इजरायली सेना के अधिकारियों ने बताया कि पकड़े गए 12 लोग उग्रवादी थे जिनकी तलाश की जा रही थी जबकि इजरायली सेना ने आतंकवादी शब्द का प्रयोग किया था. लेकिन जब लॉस एजेंल्स टाईम्स ने लिखा कि इजरायल ने पश्चिमी क्षेत्र में छापा मारा जो सेना के अधिकारियों के अनुसार फिलीस्तीनी उग्रवादियों को पकड़ने के लिए किया गया .इस समाचार पर आपत्ति किए जाने पर अखबार ने इसे बदलने से इंकार कर दिया.
3 मई 2004 को मेट्रो नामक डच अखबार ने एक चित्र छापा जिसमें दो दस्ताने वाले एक व्यक्ति का हाथ था जो मृतक आतंकवादी के हाथ का निशान ले रहा था . इस चित्र का शीर्षक था “ एक इजरायली पुलिस अधिकारी मृतक फिलीस्तीनी के हाथ का निशान लेता हुआ जो उन पीड़ित व्यक्तियों में था जिसकी कल गाज़ा की भीड़ में मृत्यु हो गई. “यहां उल्लेखनीय है पीड़ित शब्द . आतंकवादियों के लिए नरम शब्दों के प्रयोग का चलन अब अरब इजरायल संघर्ष के दायरे से बाहर भी होने लगा है .सउदी अरब में जब आतंकवाद ने जोर पकड़ा तो लंदन के द टाइम्स और एसोसियेटेड प्रेस ने सउदी आतंकवादियों के संदर्भ में भी उग्रवादी शब्द का प्रयोग आरंभ कर दिया . रायटर्स ने इसी शब्द का प्रयोग कश्मीर और अल्जीरिया के संदर्भ में भी किया है तो अब उग्रवादी शब्द प्रेस के लिए आतंकवादी का विकल्प बन गया है.
पत्रकारों द्वारा स्वयं पर लगाई गई शब्दों की यह सीमा कभी – कभी उन्हें बंधन में बांध देती है . बीबीसी जो कि आम तौर पर आतंकवादी शब्द के प्रयोग से परहेज करता है उसे अपने कैमरामैन की मौत का समाचार देते समय इस शब्द का प्रयोग करना पड़ा. बीबीसी की वेबसाईट में खोजने पर आतंकवादी शब्द मिलता है लेकिन उस शब्द के स्रोत को जोड़ने वाला पृष्ठ गायब है .
राजनीतिक दृष्टि से दुरुस्त समाचार संगठन ऐसी चालाकी का प्रयोग कर अपनी प्रामाणिकता पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं . आतंकवाद के स्वयं सिद्ध तथ्यों को आधे अधूरे तरीके से पेश करने पर कौन विश्वास करेगा जब वह खुद सच्चाई को देख रहा है , सुन रहा है और पढ़ रहा है. इससे भी बुरा यह है कि आतंकवाद के विकल्प में नरम शब्दों की रचना से सभ्य समाज के सामने आने वाले हिंसक खतरे के सही स्वरुप को समझने में कठिनाई होती है . कितनी बुरी बात है कि बेसलान की क्रूरता का वर्णन करने वाले पांच लेखों में से केवल एक लेख ने इसके मूल में स्थित इस्लामी विचार का जिक्र किया था. शब्दजाल से जनता आतंकवाद की बुराई के बारे में स्पष्ट नहीं हो पाती .