इयान मरखान और इब्राहिम ओजदमीर की नई पुस्तक (Globalization, Ethics and Islam : The Case of Beduizzaman Said Nursi) की पुस्तक आधुनिक तुर्की के प्रमुख इस्लामिक हस्ताक्षर बदीउज्जमान सईद नरसी (1877 – 1960 ) पर आधारित है . इस पुस्तक का शीर्षक काफी उबाऊ है, लेकिन नरसी के संबंध में कम जानकारी होने के कारण मैंने इस पुस्तक को उठाया और इसमें गहराई से गया . इस पुस्तक में कुछ ही दूर जाने पर पता चला कि इसकी प्रस्तावना बहुत कुछ मेरे संबंध में है . इस पुस्तक की मंशा पाईप्स की विश्व दृष्टि की समीक्षा करने की है . इसी पृष्ठ भूमि में मैंने संपादक के तर्कों की समीक्षा कर उसका उत्तर देने का प्रयास किया है .
मारखाम और आजदमीर शुरुआत में ही इस बात पर जोर देते हैं कि यदि आप इस्लाम के बारे में जानना चाहते हैं तो ऐसे मुसलमान को देखिए जो आपके सामने इस्लाम की व्याख्या करने का इच्छुक हो फिर अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वे कहते हैं कि इस पद्धति का अकसर पालन न हीं होता सिवाय आकादमिक क्षेत्र के .इस संबंध में सर्वाधिक उत्कृष्ट उदाहरण डैनियल पाईप्स की पुस्तक (Militant Islam reaches America) है जो धडल्ले से बिक रही है क्योंकि यह कड़वाहट से भरपूर तथ्यों को तोड़ने मरोड़ने वाली , भ्रामक और गलत है .
इसके बाद दोनों ही संपादक अपने विशेषणों की पैरवी करते हुए पुस्तक के एक वाक्यांश को उद्धृत करते हैं जिसमें उनके अनुसार मैंने अमेरिका को धर्मान्तरित करने की इस्लामिक आकांक्षा के दीर्घकालीन कार्यक्रम का उल्लेख किया है. लेकिन इस संदर्भ में मुझे गलत सिद्ध करने के बजाए वे कहते हैं कि दुनिया को अपनी विचारधारा के अनुकुल बनाना सर्वत्र प्रचलित मानवीय आकांक्षा है और इसपर इतना उत्तेजित होने की क्या बात है .लेखक कुछ विशेष बातों पर और जोर देते हैं कि मैंने कुरान में ईसाइयों और यहूदियों को सम्मान देने की बात पर बहुत कम ध्यान दिया है और सुनियोजित ढ़ंग से आधुनिकता के संबंध में इस्लामिक विचार को प्रस्तुत किया है .
पुस्तक में विरोधाभास के दर्शन तब होते हैं जब मारखम , ओजदमीर ग्लोबलाईजेशन , इथीक्स एंड इस्लाम भाग को मेरी विश्व दृष्टि की समीक्षा के संदर्भ में प्रस्तुत करते हैं और फिर पुस्तक के कुछ भाग से अपनी स्वीकृति भी जताते हैं .तुर्की इस्लाम के पश्चिम के साथ रिश्तों के लिए एक मॉडल है और कट्टरपंथी इस्लाम के भीतर कुछ समस्या है . इन दोनों विषयों से लेखक सहमत हैं.यदि मेरी पुस्तक कड़वाहट से भरपूर , तथ्यों को तोड़ने मरोड़ने वाली भ्रामक और गलत है तो फिर उससे सहमति कैसी .विशेषताओं का कम वर्णन और कुछ विशेष संदर्भों की अधिक चर्चा तो बात बढ़ाने जैसा है .मेरी इस धारणा पर कि मुसलमानों को और अधिक सेक्यूलर होने की आश्यकता है उनका दुखी होना उनकी अस्थिरता को दर्शाता है . वे चेतावनी देते हैं कि यदि हम पाईप्स की विश्व दृष्टि से प्रभावित हुए तो हमें इस्लाम और पश्चिम के मध्य लंबी और हताश करने वाली लड़ाई के लिए तैयार रहना चाहिए . सेक्यूलर मुस्लिम राज्य भी पश्चिम के साथ जेहाद में कूद पड़ेंगे उन्हें पहचानने की कोशिश करो.
बहुत से वाक्यांशों में संपादक या तो भ्रमित हैं या उन्हें उपेक्षित करते दिखते हैं. उदाहरण के लिए बहुत उचित तरीके से इस बात का उल्लेख करते हैं कि मेरी दृष्टि में इस्लाम की समस्याओं का समाधान सेक्यूलरिज्म में है परंतु वही मुझ पर पूरी तरह से गलत और एकदम अलग दृष्टिकोण थोप देते हैं कि पाईप्स के लिए अच्छा मुसलमान वही है जो सेक्यूलर मुसलमान है .
यहां वे मूलभूत गलती कर रहे हैं जब वे सेक्यूलर राज्य और सेक्यूलर व्यक्ति को एक साथ देखते हैं . सेक्यूलर राज्य में भी धार्मिक नागरिक रह सकते हैं . अमेरिका के पूरे इतिहास में ऐसा देखा गया है .
मारखाम और ओजदमीर मेरे पूरे कार्य से भी अपरिचित हैं जो इतिहास और इस्लाम की वर्तमान राजनीति पर केन्द्रित हैं न कि इस्लाम धर्म पर. यदि इस्लाम का इतिहास और राजनीति जाननी है तो उसकी व्याख्या करने वाले मुसलमान से मिलो इस बात का कोई तुक नहीं है . विद्वानों को अपने विषय के बारे में बोलना चाहिए न कि दूसरों के दृष्टिकोण को दुरुस्त करना चाहिए .मरखाम और ओजदमीर के बहुत से स्थान मिल जायेंगे जहां वे मुझसे वाद-विवाद कर सकते हैं, लेकिन किसी तुर्क के बारे में लिखी पुस्तक के संपादकीय में ऐसा विवाद करना जिसके बारे में मैंने एक शब्द भी नहीं लिखा कहां तक उचित है .
नरसी के सबसे बड़े जीवित शिष्य फेतुल्ला जिलेन तुर्की के ऐसे संगठन के नेता हैं जिसके अनुयायियों की संख्या लाखों में है उनकी वेबसाईट पर मुस्तफा अक्याल ने लिखा है “ अन्य विद्वानों ने भी परंपरागत इस्लाम और जिहादवाद के मध्य भेद किया है
.डैनियल पाईप्स इस विषय के विशेषज्ञ हैं वे कहते हैं
कि परंपरागत इस्लाम मानव समाज को सीख देता है कि ईश्वर की इच्छा के अनुरुप जीवन कैसे जिया जाय .जबकि कट्टरपंथी इस्लाम नए विश्व की रचना करना चाहता है . ”
किसी को भी यह विडंबनापूर्ण लगेगा कि मारखाम और ओजदमीर ने नरसी को मेरे विरुद्ध खड़ा करने की कोशिश की .