यदि जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने इराक पर आक्रमण का निर्णय न किया होता तो स्थिति में काफी कुछ परिवर्तन होता .कुछ अर्थों में स्थिति और भी बुरी होती .इराकी जनता को अब भी सद्दाम हुसैन के अधिनायक वादी शासन की पीड़ा सहन करनी होती . खराब अर्थव्यवस्था , कार बम और नस्लवादी असंतोष की जिस स्थिति का सामना आज इराकी कर रहे हैं वह उस बुराई से कहीं कम है जो 1979 से 2003 के बीच में गरीबी , अन्याय , क्रूरता और बर्बरता के रुप में इस जनता के भाग्य में था .
क्षेत्रीय सुरक्षा खतरे में थी . सद्दाम हुसैन ने दो देशों पर आक्रमण किए ( 1980 में इरान पर और 1990 में कुवैत पर ) तथा सउदी अरब और इजरायल पर मिसाईल से हमले किए .इस बात की पूरी संभावना थी कि वह ऐसे हमले फिर करता और संभवत: इस बार फारस की खाड़ी से होकर गुजरने वाले तेल के रास्ते को बंद करने का प्रयास करता . इसके अतिरिक्त उसने इजरायल के विरुद्ध आत्मघाती हमलों को प्रोत्साहित किया तथा सीरिया के बशर उल असद के ठग शासन के साथ नजदीकी रिश्ते बनाकर रखे .
अमेरिका की सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो सकता था जब तक इराक का शासन ऐसे मदांध व्यक्ति के हाथ में रहता जो सामूहिक नर संहार के हथियार बनाता था और उन्हें प्रयोग करने की इच्छा रखता था . हुसैन ने इस संबंध में अपनी क्षमता का प्रदर्शन 1988 में किया था जब अपने ही देश के एक गांव में 5000 लोगों को मरवा दिया था . अल – कायदा के साथ उसके संबंधों के कारण इन सामूहिक नरसंहार के हथियारों को वह अमेरिका में तैनात करवा सकता था .
लेकिन यदि युद्ध नहीं होता तो कुछ अर्थों में स्थिति बेहतर भी हो सकती थी . अमेरिका के संबंध में यूरोपियन व्यवहार में कुछ परिवर्तन रहता . बहुत से सर्वेक्षणों और चुनावों से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि इराक युद्ध के कारण यूरोप में अमेरिका के प्रति कटुता का भाव असाधारण रुप से बढ़ा है जो 1945 के बाद पहली बार देखने को मिला है .
इस युद्ध से मुस्लिम असंतोष और बढ़ा है एक सशक्त कट्टरपंथी भाव का विस्तार केवल मुस्लिम बहुल देशों ( तुर्की जॉर्डन और पाकिस्तान ) देशों तक सीमित न रह कर पश्चिम के देशों ( ब्रिटेन ) तक फैल गया है .
अमेरिका की घरेलू राजनीति भी शायद युद्ध के बिना कम विभाजित दिखती . वैसे तो 11 सितंबर 2001 के पश्चात् की एकता इराक युद्ध से बहुत पहले मार्च 2003 में ही टूटने लगी थी. लेकिन ,युद्ध के निर्णय ने इसे और भी बुरी स्थिति में पहुंचा दिया जिसके दर्शन 2004 के राष्ट्रपति चुनावों के दौरान हुए थे .
सामान्य रुप में सुरक्षा की दृष्टि से युद्ध का लाभ रहा लेकिन व्यावहारिक दृष्टि से इसकी कीमत चुकानी पड़ी .सद्दाम हुसैन जेल की कोठरी में मुकदमे की प्रतीक्षा कर रहे हैं ऐसे में विश्व कहीं अधिक सुरक्षित है लेकिन विभाजित भी है . बुश प्रशासन सैन्य दृष्टि से तो जीत गया लेकिन राजनीतिक दृष्टि से पराजित हो गया.
संतुलित रुप में युद्ध के नकारात्मक से अधिक सकारात्मक परिणाम हुए हैं , कटुता और अलोकप्रियता की कीमत पर इराक की जनता और शेष विश्व को इराक प्रशासन के खतरे से मुक्त किया गया है.