कुछ सर्वेक्षक पश्चिमी तट के रामअल्लाह में बीते 3 – 4 सितंबर को हुई को घटी घटना को सुनियोजित दंगे की संज्ञा देते हैं जिसमें डायर जरीर गांव के 15 मुसलमान युवकों ने तेबेह नाम के 1500 की जनसंख्या वाले पड़ोसी ईसाई गांव को पूरी तरह तहस – नहस कर दिया.
इस हमले का कारण यह था कि डायर जरीर गांव की 23 वर्षीय हियाम अज़ाज नाम की मुस्लिम महिला पड़ोसी तेबेह गांव के ईसाई युवक मेंहदी खोरिए से प्रेम करने लगी थी . मेंहदी की तेबेह गांव में दर्जी की दुकान है . पिछले 2 वर्षों से इन दोनों के बीच गुप्त तरीके से प्रेम चल रहा था जिसके परिणामस्वरुप हियाम अज़ाज मार्च 2005 को गर्भवती हो गई . जब उसके परिजनों को इस स्थिति का पता लगा तो उन्होंने उसकी हत्या कर दी . इस औनर किलिंग ( मुस्लिम परंपरा जिसमें खानदान की इज्जत बचाने के लिए औरत को मार दिया जाता है ) इस घटना से हियाम के परिजन संतुष्ट नहीं हुए और 1 सितंबर को खोरिए के परिवार से बदला लेने की ठानी . क्योंकि इस्लाम किसी भी गैर – मुस्लिम पुरुष के साथ मुस्लिम महिला के यौन संबंधों पर प्रतिबंध लगाता है . हियाम के परिजनों ने यह बदला दो दिन बाद 3 सितंबर को तेबेह गांव पर हमला करके लिया . अज़ाज परिवार के लोग इस गांव में लोगों के घर में घुस गए और घर की सारी चीजें चुरा लीं . उन्होंने घरों पर बोतल बम फेंके और उनपर कैरोसिन डालकर उन्हें आग लगा दी . इस घटना में 16 घरों को नुकसान हुआ साथ ही कुछ स्टोर , फार्म और गैस स्टेशन भी इनकी चपेट में आ गए . हमलावरों ने अनेक कारों में तोड़-फोड़ की , लूट- पाट मचाई और मदर मेरी की एक मूर्ति को भी नष्ट कर दिया.
जेरुसलम पोस्ट के अनुसार यह तेबेह निवासियों के साथ युद्ध जैसा दृश्य था . फिलीस्तीनी अथॉरिटी के सुरक्षाकर्मियों ने आने में घंटों लगाए . 15 हमलावरों को कुछ देर पुलिस हिरासत में रखकर छोड़ दिया गया , दूसरी ओर फिलीस्तीनी अरब पुलिस ने खोरिए को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया और उसके परिजनों के अनुसार उसे जमकर पीटा .
Adnksonos International समाचार सेवा ने उल्लेख किया कि यह तथ्य फिलीस्तीनी ईसाइयों के लिए ध्यान देने योग्य है कि मुस्लिम आक्रामकों को रिहा कर दिया गया तथा ईसाई दर्जी को अब भी गिरफ्तार कर रखा गया है , यह संकेत है कि किस प्रकार फिलीस्तीनी अथॉरटी किस प्रकार फिलीस्तीनी ईसाइयों के कष्ट से बेपरवाह है . इससे भी बुरा यह है कि लगता है कि वे उनके विरुद्ध पक्षपात कर रहे हैं.
मेंहदी खोरिए के चचेरे भाई सुलेमान खोरिए ने अपने जले हुए घर की ओर इशारा करते हुए कहा कि “ उन्होंने ऐसा इसलिए किया है क्योंकि हम कमज़ोर हैं और ईसाई हैं.” खोरिए ने बताया कि हमलावर अल्लाहो – अकबर का नारा लगा रहे थे और ईसाई विरोधी नारों के बीच कह रहे थे कि काफिरों को जला दो , क्रुसेडर्स को जला दो . हियाम अज़ाज के चचेरे भाई ने बिना किसी प्रायश्चित के कहा कि हमने उनके घरों को जलाया है क्योंकि उन्होंने हमारे परिवार का अपमान किया है न कि इसलिए कि वे ईसाई हैं.
इस हमले का विस्तृत पहलू भी है .पवित्र भूमि के कैथोलिक संरक्षक पीरबातीस्ता पीज़ाबाला के अनुसार 2000 से 2004 के बीच में बेथेलहम क्षेत्र में ईसाइयों के साथ अन्याय की 93 घटनायें सामने आईं हैं इनमें सबसे बुरी घटना 2002 की है जब मुसलमानों ने 17 और 19 वर्ष की दो बहनों को वेश्या बताकर उनकी हत्या कर दी थी जबकि पोस्टमार्टम में पता चला कि ये दोनों बहनें कुंवारी थीं और उनके गुप्तांग जला दिए गए थे . पीज़ावाला के अनुसार “मैं प्रतिदिन दोहराता हूं कि इस क्षेत्र में इस्लामिक चरमपंथी हमें प्रताड़ित कर रहे हैं .” यदि हमास और इस्लामिक जेहाद ऐसा नहीं करते तो फिलीस्तीनी अथॉरिटी के लोग एक स्थानीय भू माफिया के साथ मिलकर ईसाइयों को डरा धमका कर उन्हें अपना घर और संपत्ति छोड़ने को विवश करते हैं .
प्रताड़ना का यह अभियान सफल रहा है . इजरायल में ईसाईयों की संख्या बढ़ी है लेकिन फिलीस्तीनी क्षेत्र में इसमें अचानक गिरावट आई है . पिछले दो हजार साल में ईसाई शहर रहे बेथेलहम और नजरेथ आज मुख्य रुप से मुस्लिम बहुल हो चुके हैं . 1922 में जेरुसलेम में ईसाईयों की जनसंख्या मुसलमानों से अधिक थी लेकिन आज इस शहर में केवल 2 प्रतिशत ईसाई रह गए हैं.
Middle east Quarterly में डौफेन सिम्होनी पूछते हैं कि क्या ईसाइयत के जन्म स्थान पर ईसाई जीवन खाली चर्च की इमारतों और बड़े – बड़े प्रार्थना कक्षों तक सीमित रह जाएगा जिसमें प्रार्थना करने के लिए कोई जन- समूह नहीं होगा . ऐसे भूतिया भविष्य को रोकने का कोई उपाय तो नहीं दिखता .
एक तरीका यह हो सकता है कि मुख्य धारा के प्रोटेस्टेंट चर्च फिलीस्तीनी मुस्लिमों द्वारा फिलीस्तीनी ईसाईयों को निकालने और प्रताड़ित करने का विरोध करे . दुर्भाग्यवश एपिस्कोपालियन , एवेंन्जेलिकल लूथरन , मैथोडिस्ट , प्रेसबेटेरियन् चर्चों और यूनाईटेड चर्च ऑफ क्राईस्ट द्वारा इस समस्या की उपेक्षा हो रही है. इन चर्चों का ध्यान इस समस्या के बजाए इजरायल के नैतिक पराभव और यहां से अपना निवेश हटाने पर अधिक रहता है . इजरायल के प्रति उनका इतना लगाव है कि वे अपने जन्मस्थान में ही अंतिम सांसे गिन रही ईसाइयत के प्रति ध्यान नहीं दे पा रहे हैं. आश्चर्य है.. आखिर वे कैसे जागेंगे ?.