1997 में मलेशिया की मुद्रा की अस्थिरता पर टिप्पणी करते हुए मलेशिया के तत्कालीन प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद ने कहा था कि उनके पास इस बात की निश्चित जानकारी है कि इसके पीछे यहूदियों का हाथ है . उन्होंने कहा कि हम यह नहीं कहना चाहते कि यह यहूदियों का षड्यंत्र है लेकिन मुद्रा को अस्थिर करने का काम यहूदियों ने किया है और संयोगवश वित्तीय सहायता देने वाला जार्ज सोरोस यहूदी है . महाथिर मोहम्मद यहां तक कह गए कि जिस तरह यहूदियों ने फिलीस्तीन को लूट लिया है वैसा ही कुछ ये हमारे देश में कर रहे हैं.
महाथिर मोहम्मद की यह सेमेटिक विरोधी टिप्पणी पिछली पीढ़ी के मुस्लिम विश्व में सबसे कठोर टिप्पणी है जिसकी तुलना 1930 के नाज़ी जर्मनी से की जा सकती है . इस पृष्ठभूमि में पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ द्वारा 17 सितंबर को अमेरिकन यहूदी कांग्रेस में दिए गए उनके ऐतिहासिक भाषण की प्रकृति को समझा जा सकता है . संयोगवश उन्होंने भी कुछ दूसरे संदर्भ में जार्ज सोरोस को यहूदियों की आर्थिक योग्यता का प्रतीक बताया.
मुशर्रफ ने अमेरिका के यहूदियों की प्रशंसा करते हुए टिप्पणी की कि “ बोसनिया में मुसलमानों की नस्ल के संहार के समय यहूदी उनके बचाव में आगे आए उन्होंने आगे कहा कि मुझे बताया गया है कि बोसनिया के इस काम में सबसे बड़ा योगदान यहूदी अमेरिकी व्यवसायी जार्ज सोरोस का रहा है .”
अधिकांश समाचारों ने मुशर्रफ के भाषण को इस संदर्भ में देखा कि पाकिस्तान इजरायल के साथ अपने कूटनीतिक संबंध शुरु करेगा या नहीं ( रॉयटर्स – पाकिस्तानी नेताओं ने अमेरिकी यहूदियों से शांति स्थापित करने में सहायता देने को कहा .) इन सबसे परे मुशर्रफ के भाषण का दीर्घगामी महत्व यह है कि राष्ट्रपति ने यहूदियों के संबंध में आदरपूर्ण , उचित और सकारात्मक टिप्पणियां की हैं उन्होंने अपनी बात इस दृष्टि से आरंभ की कि यहूदी और मुसलमान आस्था और संस्कृति के संबंध में बहुत सी चीजों में समान हैं और कुछ ही चीजों में भिन्न हैं .उन्होंने तीन उदाहरण दिए – एक ईश्वर में विश्वास , अभिवादन का समान तरीका तथा तालमुद और कुरान में एक उभयनिष्ठ वाक्यांश . उन्होंने संकेत किया कि मोज़ेस को पैगंबर के रुप में कुरान में अनेक बार उद्धृत किया गया है .
मुशर्रफ ने बताया कि किस प्रकार हमारे अनुभव और इतिहास परस्पर गुंथे हुए हैं .और भी व्याख्या की कि उनकी दृष्टि में दोनों समुदायों के परस्पर संबंध का समृद्ध और लंबा इतिहास है . उन्होंने स्पेन के मुस्लिम स्वर्णयुग , कोरडोवा , बगदाद , इस्ताम्बुल और बुखारा के चमकदार उदाहरणों का उल्लेख करते हुए स्पेन की प्रताड़ना के संयुक्त अनुभवों का भी उल्लेख किया . उनके अनुसार इस प्रताड़ना की अवधि ने यहूदी और मुसलमान न केवल साथ- साथ रहे और समृद्धि का उपभोग किया वरन् साथ- साथ दुख भी सहे .
इस पृष्ठभूमि के विपरीत मुशर्रफ ने 1945 से लेकर अबतक के कालखंड को टकराव का काल बताया. जैसा कि मैंने भी पाया है कि 1945 ऐसा महत्वपूर्ण वर्ष था जब यहूदियों ने ईसाइयों के देश से इस्लामिक देशों को जाना बंद कर दिया और यह प्रक्रिया ठीक विपरीत हो चली . पिछले 6 दशकों ने तेरह शताब्दियों की परंपरा को खंडित् कर दिया . मुशर्रफ ने इस खाई के लिए किसी पर दोषारोपण तो नहीं किया लेकिन इतना अवश्य कहा कि यह समस्या मानवता के इतिहास की खूनी शताब्दी में उत्पन्न हुई.
उन्होंने बोसनिया के मुसलमानों की रक्षा में अमेरिकी यहूदियों के योगदान की प्रशंसा करते हुए मुसलमानों को विधिक तथा अन्य सहायता उपलब्ध कराने के लिए भी उनकी सराहना की .उन्होंने कहा कि मैं इस बात की विशेष सराहना करना चाहता हूं . उन्होंने यहूदियों को अमेरिका का प्रभावशाली समुदाय बताया . भविष्य की ओर इशारा करते हुए मुस्लिम यहूदी संबंधों को दुरुस्त करने के लिए सहानुभूति और दया की आवश्यकता भी उन्होंने महसूस की .
इस भाषण के महत्व का असली मूल्यांकन तो मुस्लिम दृष्टिकोण से ही हो सकता है . उनका दृष्टिकोण उत्साहवर्धक नहीं है . मुशर्रफ ने सामूहिक नरसंहार को यहूदियों की सबसे कारुणिक घटना बताया लेकिन इस नरसंहार को नज़रअंदाज करने वाले महमूद अब्बास जैसे फिलीस्तीनी इसे ही महत्वपूर्ण वक्तव्य मानते हैं. मुशर्रफ के भाषण में आए यहूदी संबंधी विचारों से मुसलमान तभी प्रभावित हो सकते हैं जबकि यह बड़े प्रयास का हिस्सा हो . प्रश्नोत्तर काल में मैंने मुशर्रफ से पूछा कि क्या वे ऐसे प्रयास करेंगे जिससे यहूदी संबंधी उनका विचार फैले तो उन्होंने यह स्वीकार करते हुए भी कि उनके पास ऐसी कोई योज़ना नहीं है टीवी कैमरे और जनता के बीच संक्षेप रुप में ऐसा वचन दे दिया .
मुशर्रफ के अनुसार यहूदियों के बीच पहुंचने का उनका प्रयास उनके “ उदारवादी प्रबोधन ” इस्लाम का अंग है . यद्यपि अभी तक तो कार्य से अधिक बात ही हुई है फिर भी यह बात ही बड़ी उपलब्धि है दुखद तो यह है कि अभी केवल मुशर्रफ और जार्डन के अबदुल्ला द्वितीय ही उदारवादी इस्लाम के बारे में खुल कर बोल रहे हैं . चलो तो भी कम से कम दो लोग तो बोल रहे हैं.