मध्य एशिया के अध्ययन के संबंध में छात्रों की शिकायत जांच करने वाली कोलंबिया विश्वविद्यालय की एक रिपोर्ट के बारे में पिछले सप्ताह न्यूयार्क टाइम्स में छपा संपादकीय आश्चर्यजनक ,असंतोषजनक और काफी सीमित है. समाचार पत्र के अनुसार अस्थायी शिकायत समिति ने अपनी रिपोर्ट में फैकल्टी के छात्रों से भयभीत होने की बात तो की परंतु कुछ प्रोफेसरों के फिलीस्तीन समर्थक व इजरायल विरोधी व्यवहार पर छात्रों के विरोध का कोई जिक्र नहीं किया.
कोलंबिया प्रशासन द्वारा फैकल्टी के पक्षपातपूर्ण रवैये के गंभीर प्रश्न को छोड़कर कक्षा में गलत आदतों को रोकने को प्राथमिकता देना स्पष्ट रुप से अपने बचाव के लिए उठाया गया कदम है . कक्षा में गलत आदतें तो कुछ आलोचनात्मक प्रयास से रुक जोयेंगी परंतु फैकल्टी के पक्षपातपूर्ण व्यवहार को रोकने के लिए विश्वविद्यालय के चाल – चलन में कुछ व्यवस्थागत सुधार करने होंगे जैसे विविध दृष्टिकोणों को बहिष्कृत करना तथा संभावित राजनीतिक पक्ष को रोकना.
यह विषय इसलिए उठा क्योंकि सर्वेक्षण ने निरंतर पाया कि अरब - इजरायल विवाद तो वामपंथी -दक्षिणपंथी विवाद का एक छोटा सा हिस्सा मात्र है.
सामान्य रुप से वामपंथियों को इजरायल से घृणा है जबकि दक्षिणपंथी उससे सहानुभूति रखते हैं.इस कोलंबिया रिपोर्ट को मध्य एशिया के विशेषज्ञों सहित फैकल्टी के वामपंथी झुकाव के विषय से निपटना चाहिए .
संयोगवश अभी हाल में प्रकाशित एक अनुसंधान “कॉलेज फैकल्टी में राजनीतिक और व्यावसायिक प्रगति” ने भी इस वामपंथी रुझान को अपने अनुसंधान का विषय बनाया है . उबाऊ शीर्षक को छोड़ दें तो यह परिश्रम पूर्ण और महत्वपूर्ण अध्ययन काफी रोचक है.आंकडों और विश्लेषण की अनेक पद्धतियों का उपयोग करते हुए सरकारी स्मिथ कॉलेज के स्टेनली रोथमान , जार्ज मासन विश्वविद्यालय में संप्रेषण प्रोफेसर एस रॉबर्ट लिचर तथा टोरंटो विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के नील नेवाईट ने दो प्रश्नों के उत्तर दिए.
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अमेरिकन फैकल्टी राजनीतिक विषयों को किस प्रकार देखती है ..जब प्रोफेसरों से उनके राजनीतिक दृष्टिकोण के बारे में पूछा जाता है तो वे सामान्य व्यक्ति से चार गुणा अधिक स्वयं को उदारवादी बताते हैं. अंग्रेजी साहित्य , दर्शन , राजनीति विज्ञान और धार्मिक विषयों के 80 प्रतिशत अध्यापक स्वयं को उदारवादी बताते हैं जबकि पांच प्रतिशत ही स्वयं को परंपरावादी कहते हैं.इस असंतुलन ने 1980 के मध्य से वामपंथी झुकाव बढ़ा दिया है जो निरंतर बढ़ रहा है .
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विभिन्न विभाग इतने उदारवादी क्यों हैं ? परंपरावादी संकीर्ण राजनीतिक पक्षपात की शिकायत करते हैं ।उदारवादी अधिक चिल्लाते हैं और परंपरावदी उनकी बातों का उत्तर नहीं देते . ड्यूक विश्वविद्यालय के दर्शन शास्त्र विभाग के अध्यक्ष रॉबर्ट ब्रैंडन के शब्दों में “ हम ऐसे लोगों की सेवायें लेना चाहते हैं जो फुर्त हों तथा सबसे अच्छे हों जैसा कि जॉन स्टूअर्ट मिल ने कहा था कि बेवकूफ लोग अक्सर परंपरावादी होते हैं तो ऐसे में यदि बहुत से परंपरावादी होंगे तो हम उनकी सेवायें नहीं लेंगे”.रोथमान के अनुसार जब व्यावसायिक प्रतिभा समान होती है तो उदारवादी दृष्टिकोण में संस्थागत् जुड़ाव की विशेषता अधिक होती है. इस कारण उदारवादी कहीं भारी पड़ते हैं. विद्यालय की गुणवत्ता का निर्धारण करते समय प्रोफेसर की पेशेवर उपलब्धि उसके विचारधारागत दृष्टिकोण से पांच गुणा अधिक महत्व की होती है जिसके लिए वे काम करते हैं. रॉबर्ट लिचर के अनुसार इसका अर्थ यह है कि डेमोक्रेट के मुकाबले रिपब्लिकन लोगों को कम नौकरी मिलती है. इस लेख के लेखक ने अपनी बात समाप्त करते हुए कहा कि अकैडमिक क्षेत्र में उदारवादियों की समरुपता के संबंध में परंपरावादियों की शिकायत को अधिक गंभीरता से लिए जाने की आवश्यकता है . उन्होंने यह भी कहा कि उनके निष्कर्ष तो यहां तक बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में कॉलेज परिसर में हुए इस वामपंथी झुकाव ने कुछ विभागों में राजनीतिक रुप से परंपरावादियों को लुप्तप्राय प्रजाति बना दिया है .
डेविड होरोविज़ अपने तीखे विश्लेषण में कहते हैं कि आजकल विश्वविद्यालय वामपंथियों के केन्द्र बन गए हैं .एक परंपरावादी प्रोफेसर , रिपब्लिकन या फिर धर्मांतरण समर्थक ईसाई प्रोफेसर तो एक सींग वाले घोड़े की तरह दुर्लभ प्राणी हो चुके हैं. हार्वर्ड क्रिमसन के एक लेख ने माना कि रोथमान के अध्ययन में अंतर्निहित है कि हार्वर्ड पर क्रेमलिन के चार्ल्स की बात सच ठहरती है .
रोथमान की टीम ने जो काम किया उसकी आवाज़ कॉलेज परिसर तक नहीं पहुंचेगी . आधुनिक भाषा संगठन के कार्यकारी निदेशक रोजमेरी जी फील ने इसपर बरसते हुए अपनी प्रत्याशित टिप्पणी में कहा कि यह दिमाग खराब करने वाली बकवास है .
यह तो माना जा सकता है कि श्री फील की प्रतिक्रिया पूर्वाग्रह से पूर्ण है लेकिन कोलंबिया सहित अनेक विश्विद्यालयों में प्रोफेसरों से कहा जा सकता है कि वे परंपरावादियों को अधिक नौकरी देकर राजनीतिक संतुलन कायम करें. इसके लिए छात्रों, अध्यापकों,छात्रों के अभिभावकों और विधायिका को प्रयास करना होगा कि वामपंथियों के किले बन चुके इन क्षेत्रों को वापस प्राप्त किया जा सके .