यदि अलकायदा आतंकवाद छोड़ दे तो क्या अमेरिका राष्ट्रपति के चुनाव में प्रत्याशी के रुप में उनका स्वागत करेगा ? यदि नाजियों ने हिंसा की आलोचना की होती तो क्या हिटलर जर्मनी का सर्वस्वीकृत चांसलर हो जाता ?
ऐसा नहीं होता क्योंकि अल-कायदा और नाजियों की रणनीति उतनी महत्व की नहीं है जितने उनके उद्देश्य
इसी प्रकार हिजबुल्लाह और हमास अपने उद्देश्यों के कारण स्वीकार्य नहीं हो सकते. ये संगठन उस इस्लामवादी आंदोलन के महत्वपूर्ण तत्व हैं जो इरान , सूडान और अफगानिस्तान में तालिबान की तर्ज पर पूरे विश्व में अधिनायकवादी व्यवस्था स्थापित करना चाहते हैं. वे स्वयं को इस्लाम और पश्चिम के मध्य चल रहे वैश्विक संघर्ष का अंग मानते हैं जिसमें विजेता ही विश्व पर राज करता है .
वाशिंगटन लोकतंत्र स्थापित करने की दिशा में निरंतर प्रयासरत्त होते हुए इन संगठनों के उद्देश्यों को नजरअंदाज़ कर हिजबुल्लाह और हमास के छोटे-मोटे परिवर्तनों के आधार पर उनकी राजनीतिक भागीदारी सुनिश्चित करना चाहता है. ऐसे संकेत पिछले सप्ताह तब मिले जब राष्ट्रपति बुश ने घोषणा की कि यद्यपि हिजबुल्लाह लेबनानी आतंकवादी संगठन है लेकिन उन्हें आशा है कि हथियार डालकर और शांति प्रक्रिया को भंग न कर यह अपनी उपाधि बदल देगा.व्हाईट हाउस के प्रवक्ता स्कार्ट मैकलीनॉन ने इसकी व्याख्या करते हुए स्पष्ट किया कि हिजबुल्लाह जैसे संगठनों को चुनना है कि वे आतंकवादी संगठन रहना चाहते हैं या फिर राजनीतिक संगठन .
एक दिन बाद बुश ने स्वयं स्पष्ट किया कि उनका आशय था कि चुनावों को आतंकवाद की उपाधि से मुक्त होने के तरीके के रुप में इन संगठनों के सामने प्रस्तुत करना.
मुझे (बुश) यह विचार पसंद है कि लोग चुनाव लड़ें. जब आप चुनाव लड़ते हैं तो इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है .हो सकता है कि कुछ लोग चुनाव लड़ते हुए कहें कि मुझे वोट दो क्योंकि मैं अमेरिका को उड़ाना चाहता हूं. मैं नहीं जानता कि यह उनका आधार होगा या नहीं लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता.जो लोग चुनाव लड़ते हैं वे सामान्यत: कहते हैं कि मुझे वोट दो क्योंकि मैं आपकी सड़कें ठीक करवाना चाहता हूं और सुनिश्चित करना चाहता हूं कि आपको रोटी मिले .इसके बाद राज्य सचिव राइस ने कहा कि फिलीस्तीनी संगठन हमास भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में प्रवेश करने के बाद इसी ढर्रे पर विकसित हो सकता है .जब लोग निर्वाचित होना शुरु हो जाते हैं और अपने निर्वाचन क्षेत्र की चिंता करने लग जाते हैं तो उन्हें इस बात की चिंता कम रहती है कि इजरायल के बारे में उनकी लफ्फाज़ी सुनी जा रही है या नहीं बल्कि वे इस बात की ज्यादा चिंता करते हैं कि समाज में निचले पायदान पर खड़ा बालक अच्छे स्कूल में जा रहा है या नहीं..उनकी सड़कें ठीक हुईं या नहीं, उनका जीवन बेहतर हुआ या नहीं. इस सोच से धीरे-धीरे परिवर्तन आने लगता है .
इस सिद्धांत में यह बात अंतर्निहित है कि अच्छे स्कूल और अच्छी सड़कें जैसे सांसारिक विषयों पर ज़ोर देकर चुनाव लड़ने से हिजबुल्लाह और हमास जैसे संगठनों का आवेश कम हो जाएगा.
ऐतिहासिक आंकड़े इस आशावादी दृष्टिकोण का समर्थन नहीं करते .जब भी राजनीतिक दृष्टि से कुशल अधिनायकवादी लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता प्राप्त करते हैं तो वे सड़कें भी ठीक करवाते हैं और स्कूल भी लेकिन ऐसा वे अपनी कल्पना के अनुसार देश को ढ़ालने के लिए करते हैं. कुछ ऐतिहासिक मामलों से इस सामान्य प्रवृति को समझा जा सकता है .1933 के बाद एडोल्फ हिटलर और 1970 के बाद चिली में सेल्वाडोर एलेन्डे ऐसे ही उदाहरण हैं वर्तमान में 2001 के बाद बांग्लादेश में खालिदा ज़िया और 2002 के बाद तुर्की में रिसेफ तईब एरडोगन के मामले में यह सत्य है.
इसके बाद इनका लोकतांत्रिक आशय सामने आता है . 1935 में जोसफ़ गोयबल्स ने स्पष्ट किया कि नाज़ियों ने लोकतांत्रिक तरीके का प्रयोग केवल सत्ता प्राप्ति के लिए किया.इस्लामवादियों के मामले में देखें तो 1992 में मध्य एशिया के तत्कालीन राज्य सचिव एडवर्ड जेरेजियान ने व्याख्या की कि यद्यपि वे एक व्यक्ति एक मत के सिद्धांत में विश्वास करते हैं लेकिन एक समय में एक व्यक्ति एक मत के सिद्धांत का समर्थन नहीं करते . खोमैनी के इरान से संकेत मिलता है कि इस्लामवादी सत्ता में बने रहने के लिए अपने अनुसार चुनावों को मोड़ लेते हैं.
वाशिंगटन को कुछ ऐसे सैद्धांतिक कदम उठाने चाहिए जिससे न केवल आतंकवादियों को वरन् अधिनायकवादियों को भी सत्ता में आने के लिए और बने रहने के लिए लोकतांत्रिक पद्धति का उपयोग करने से रोका जा सके . इस्लामवादी संगठनों द्वारा हिंसा की आलोचना करना ही पर्याप्त नहीं है उनके अक्षम्य अधिनायकवादी स्वभाव के कारण उन्हें चुनावों से अलग रखना चाहिए.
1949 में सर्वोच्च न्यायालय के प्रसिद्ध जज रॉबर्ट एच जैक्सन ने शिकागो के एक नव नाज़ी को उत्तेजक भाषण के आरोप में गिरफ्तार करने की सिफारिश इस आधार पर की कि अन्यथा संविधान का बिल ऑफ राइट्स आत्मघाती समझौता सिद्ध होगा . अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में भी आत्मरक्षा का यही सिद्धांत लागू होता है यदि हिजबुल्लाह और हमास अपनी रणनीति में परिवर्तन का आश्वासन् देते हैं तो इस आधार पर अमेरिका , इजरायल तथा अन्य पश्चिमी देशों को इन्हें एक राजनीतिक दल की वैधानिकता नहीं देनी चाहिए.