18 वीं शताब्दी तक मूलरुप में एक प्रकार का ही यहूदीवाद था जिसे परंपरागत का नाम दिया जाता सकता है . इसका अर्थ था धर्म के 613 कानूनों के साथ जीते हुए अपनी आस्था को अपने जीवन में उतारना . उसके बाद चिन्तक (1632-77) बरुच स्पीनोजा के कारण 18 वीं शताब्दी के अंत में प्रबोधन युग का आरंभ हुआ. इसके द्वारा यहूदियों ने अपने धर्म की अनेक वैक्ल्पिक व्याख्यायें कीं जिससे उनके व्यक्तिगत् जीवन में आस्था की भूमिका कम हो गई तथा यहूदी संगठनों के रुप में उनका जुड़ाव भी कुछ भाग में कम हो गया .
इन विकल्पों और घटनाक्रमों के विकास विशेषरुप से नरसंहार से परंपारागत यहूदी बहुत छोटी मात्रा में अल्पसंख्यक बनकर सिमट गए . उत्तर द्वितीय विश्वयुद्ध काल में यहूदी जनसंख्या संपूर्ण विश्व में अपने निचले स्तर पर आ गयी और यह गिरकर केवल 5 प्रतिशत ही रह गई .
उसके बाद 60 वर्षों में परंपरागत तत्वों का पुनर्योदय हुआ. परिणामस्वरुप एक बार फिर ऐसे तत्वों का उदय हुआ जिसमें गैर – परंपरागत लोगों द्वारा गैर – यहूदी से विवाह कम संतानें उत्पन्न करने की प्रवृति रही . अभी कुछ दिनों पूर्व National Jewish Population Survey द्वारा अमेरिका के आंकड़ों के प्रकाशन भी इसी प्रवृति की ओर संकेत करते हैं.अमेरिका के गिरिजाघरों में जाने वाले परंपरागत लोगों का अनुपात 1971 में 11 प्रतिशत से बढ़कर 1990 में 16 प्रतिशत हो गया और 2000-01 में यह अनुपात 21 प्रतिशत बढ़ गया . (ध्यान देने योग्य बात यह है कि इस दौरान अमेरिका में यहूदी जनसंख्या में गिरावट आई) क्या यह प्रवृति जारी रहनी चाहिए . यह समझा जा सकता है कि यह अनुपात दो शताब्दी पूर्व की स्थिति में पहुंच जाएगा जहां परंपारगत लोग यहूदी जवसंख्या का अधिकांश प्रतिशत होंगे .यदि ऐसा होता है तो गैर – परंपरागत रुझान इतिहास की भांति एक रोचक घटनापूर्ण घटनाक्रम होगा जो यह मानते हुए कि लंबे समय तक यहूदी पहचान को सुरक्षित रखने के लिए कानून पर निर्भर रहना होगा अन्य विकल्पों की तलाश बी करेगी .
यह जनसांख्यिकीय विचार यूरियल हीलमैन द्वारा जेरुसलम पोस्ट में “US Haredi leader Urges Activism.” नामक लेख को पढ़ने के बाद मस्तिष्क में आए जो उन्होंने अमेरिका के अगुदात इजरायल के कार्यकारी उपाध्यक्ष रबी सैम्यूल ब्लूम के नवंबर 2004 में दिए गए एक भाषण के आधार पर लिखा था . अगूड़ा एक परंपरागत संगठन है जो प्रामाणिक यहूदियत की शास्वतता तथा तोराह के प्रति स्वामिभक्त यहूदियों के संगठन के प्रति कृतसंकल्प है. इस संगठन की सदस्यता क्लीनसेव लोगों से लेकर काले हैट वाले (हरेदी) तथा सेक्युलर विश्वविद्यालयों में शिक्षित यहूदियों से लेकर इदिस बोलने वाले तालमुद के विद्यार्थियों तक फैली है .
रब्बी ब्लूम ने अगोड़ा श्रोताओं से कहा कि यहूदियों की जनसांख्यिकीय आंकड़ों में अंतर्निहित है कि अमेरिका के परंपरागत यहूदियों को अपने संकीर्ण स्वार्थों में पड़कर यह अपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि उनकी सामप्रदायिक जिम्मेदारियों का निर्वाह गैर – परंपरागत यहूदी करेंगे .इसके विपरीत परंपरागत यहूदी अपने समान धर्मियों से सेमेटिक विरोधी भावना , इजरायल को आर्थिक सहायता भेजने और अमेरिकी सरकार में लॉबिंग की जिम्मेदारी अपने उपर लें . उन्होंने कहा कि जिन चीजों के लिए हम सेक्यूलर यहूदियों पर निर्भर हैं उन्हें वे कैसे कर सकते हैं जबकि उनका समुदाय नीचे आता जा रहा है . हमें अपना एजेन्डा व्यापक बनाते हुए उन कार्यक्रमों को अपने हाथ में लेना होगा जिनके लिए ङम अबतक सेक्यूलर यहूदियों पर निर्भर थे .उन्होंने इसे बढ़ाते हुए कहा कि अमेरिका में परंपरागत यहूदी गंभीर रुप से राष्ट्रीय और सांप्रदायिक दोनों विषयों में लिप्त हैं.परंतु वे इस बात में एकदम ठीक हैं कि परंपारगत यहूदी अपने संकीर्ण एजेन्डे को छोड़कर अमेरिका के अन्य मामलों से स्वयं को अलग रखते हैं.
अगुड़ा के अन्य लोग भी इस बात से सहमत हैं कि परंपरागत लोगों को अपने एजेन्डे का विस्तार करना चाहिए .संगठन के सार्वजनिक और सरकारी मामलों के कार्यकारी उपाध्यक्ष डेवीड जेवीबेल ने माना कि हमारी बढ़ती संख्या और समुदाय की परिपक्वता तथा इस परिपक्वता से से उपजे आत्मविश्वास के बाद इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि हमारे कन्धों पर कुछ उत्तरदायित्व आ गया है .
श्री हीलमैन इस आशय को समझते हैं और इसी कारण अमेरिका के हरेदी यहूदी समुदाय द्वारा अपनी संख्या को बरकरार रखने और उस संख्या समुदाय की बड़ी सफलता के रुप में परिणत न कर पाने का संकेत मानते हैं. यह अमेरिका में और उसके बाहर यहूदियों के राजनीतिक जीवन में प्रवेश का संकेत है जो गैर- परंपरागत यहूदियों की स्थापना कर सकते हैं.