मैं कभी यह ठीक से नहीं समझ सका कि कौन से विचार किसी को नवपरंपरावादी बना देते हैं और क्या मैं उस श्रेणी में आता हूं या नहीं.वैसे दूसरों ने काफी पहले से मुझे इस श्रेणी में रख रखा है . पत्रकार मेरा वर्णन करते हुए मेरे लिए नवपरंपरावादी शब्द का प्रयोग करते हैं, संपादक नवपरंपरावादी लेखों में मेरे लेख का इस्तेमाल करते हैं , समीक्षक नवपरंपरावादी चिंतन की गहराई समझने के लिए मेरे विचारों को आधार बनाते हैं तथा कार्यक्रमों के आयोजक मुझे नवपरंपरावादी विचारों के प्रतिनिधि के रुप में आमंत्रित करते हैं.
मेरे अनेक पुराने मित्र और निकट सहयोगी नवपरंपरावादी नाम से पुकारे जाते हैं और मैं भी इस उपाधि सहर्ष स्वीकार करता हूं . निश्चय ही इसके साथ कुछ सम्मान भी जुड़ा है यह देखते हुए कि अमेरिका में पचास से अधिक नवपरंपरावादी नहीं हैं फिर भी कहा जाता है कि अमेरिका की विदेशनीति का संचालन वही करते हैं. यह उल्लेख मैं इसलिए कर रहा हूं क्योंकि पिछले दो महीनों में मध्य एशिया में नवपरंपरावादी नीतियों के कुछ सुखद परिणाम रहे हैं जैसा कि मैक्स बूट ने अपने स्तंभ नियोकॉन्स में गेट द लॉस्ट लाफ में कुछ उल्लेख किए हैं.
- 9 जनवरी को अरब फिलीस्तीनी मतदान के लिए एकत्र हुए और महमूद अब्बास को निर्वाचित किया जिन्होंने अपनी मंशा स्पष्ट करते हुए कहा कि वे इजरायल के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष समाप्त करना चाहते हैं.
- 30 जनवरी को 80 लाख इराकी मतदाताओं ने बम और गोलियों का बहादुरी से सामना करते हुए मतदाना किया .
- 10 फरवरी को सउदी अरब ने पहली बार नगर पालिका के चुनाव कराए .पहली बार राज परिवार के आत्यंतिक अधिकार में सेंध लगती दिखी.
- 26 फरवरी को मिस्र के राष्ट्रपति होसनी मुबारक ने अचानक घोषणा की कि आगामी राष्ट्रपति चुनावों में उनके अतिरिक्त अन्य प्रत्याशी भी शामिल होंगे.
- 28 फरवरी को बेरुत में हजारों लोगों ने प्रदर्शन कर सीरिया समर्थक प्रधानमंत्री ओमर करामी की सरकार को त्यागपत्र देने के लिए विवश कर दिया.
- यदि लेबनानी अपनी स्वतंत्रता में विजयी हो जाते हैं तो दमिश्क के बाथ शासन का और बशर असाद का दौर समाप्त हो जाएगा .
इन घटनाओं से कुछ नवपरंपरावादी काफी उत्साहित हो गए हैं . नेशनल रिव्यू के रिच लोवरी ने इसे अद्भुत बताया . वाशिंगटन पोस्ट के चार्ल्स क्रॉथामर ने लिखा कि हम मध्य एशिया में उच्च कोटि के क्रांतिकारी गौरवशाली प्रभात की ओर अग्रसर हैं. मैं भी इन घटनाक्रमों कता स्वागत करता हूं लेकिन सशंकित भाव से . मध्य एशिया इतिहास के संबंध में प्रशिक्षित होने के नाते उन चीजों से परिचित हूं जो विषय को अरुचिपूर्ण बना सकती हैं.
- यह सच है कि महमूद अब्बास इजरायल के साथ सशस्त्र संघर्ष समाप्त करना चाहते हैं लेकिन यहूदी शत्रु के विरुद्ध व्यापक जेहाद की उनकी घोषणा इजरायल को नष्ट करने के लिए कुछ दूसरे प्रकार के उनके युद्ध की मंशा को संकेतित करती है .
- इराकी चुनावों से एक इरान समर्थक इस्लामवादी इब्राहिम अल-जाफरी सत्ता में आ रहा है .
- इसी प्रकार सउदी चुनाव इस्लामवादी प्रत्याशियों के लिए वरदान सिद्ध हो रहे हैं.
- होशनी मुबारक का आश्वासन पूरी तरह बनावटी है लेकिन यदि किसी दिन वास्तव में मिस्र में राष्ट्रपति चुनाव हुए तो वहां भी इस्लामवादियों का वर्चस्व होगा .
- लेबनान से सीरिया का नियंत्रण हटाने से वहां हिजबुल्लाह जैसे आतंकवादी संगठन का प्रभाव बढ़ जायेगा.
- अरुचिकर अशद शासन की समाप्ति से दमिश्क में इस्लामवादी सरकार का प्रादुर्भाव होगा.
एक पद्धति को समझना होगा ..फिलीस्तीन के असाधारण मामले के विपरीत एक प्रमुख खतरा है .अत्याचारी शासन की तत्काल समाप्ति इस्लामवादी विचारकों को प्रेरित करती है और सत्ता प्राप्ति के उनके द्वार खोलती है .दुखद पक्ष यह है कि इस्लामवादियों के पास वह सबकुछ है जिससे चुनाव जीता जाता है.एक उत्तेजक विचारधारा को पोषित करने की क्षमता , पार्टियां बनाने का माद्दा , समर्थक बनाने का समर्पण , चुनाव प्रचार के लिए खर्च करने को पैसा , मतदाताओं को लुभाने की इमानदारी तथा विरोधियों को उत्पीड़ित करने की इच्छाशक्ति .
सत्ता की ओर बढ़ने का इस्लामवादियों का यह अभियान नया नहीं है . 1979 में इस्लामवादियों ने इरान में शाह के पतन का लाभ उठा कर सत्ता प्राप्त की . अलजीरिया में 1992 में वे चुनाव जीतने की राह पर थे . 2002 में तुर्की और बांग्लादेश में उन्होंने लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता प्राप्त की . सद्दाम हुसैन , होशनी मुबारक , बशर अशद और सउदी राजकुमारों को हटाना आसान है लेकिन उस जनता को यह समझाना कठिन है कि इसके मुकाबले इस्लामवादी विचारधारा कितनी खतरनाक है . 1933 में जर्मनी और 1970 में चिली का स्मरण करें तो ध्यान में आता है कि आज मध्य एशिया अकेला अधिनायकवादी आंदोलन की ओर अग्रसर होने वाला अकेला क्षेत्र नहीं है लेकिन जिस मात्रा में यह आकर्षण है वह अभूतपुर्व है . मुझे इस बात की चिंता है कि मेरे नवपरंपरावादी साथी इन परिणामों पर पर्याप्त प्रकाश नहीं डाल रहे हैं.
मध्य एशिया की मुक्ति के लिए राष्ट्रपति बुश की कल्पना की तो प्रशंसा की जानी चाहिए लेकिन अधिनायकवादियों से लोकतंत्रवादियों के हाथ में सत्ता स्थानांतरित करने में बुश प्रशासन को सतर्कता से काम लेना चाहिए .मध्य एशिया का अधिनायकवाद के प्रति आकर्षण उसके गहरे इतिहास और पहचान में छुपा है . पहले उसका सामना करना और प्रबंधन करना आना चाहिए . तेजी से उठाए गए ये कदम इस क्षेत्र को गैर – निर्वाचित अत्याचारियों के शासन से भी अधिक बुरी स्थिति में पहुंचा देंगे.