इस विकृत प्रवृति ( इजरायल ) के संबंध में ईरान का रुख सदैव से स्पष्ट रहा है ..हम बार –बार इस बात को दुहराते रहे हैं कि राज्य के रुप में इस कैंसर रुपी ट्यूमर को इस क्षेत्र से हटा दिया जाना चाहिए . ये शब्द पिछले सप्ताह ईरान के राष्ट्रपति महमुद अहमदीनेजाद द्वारा व्यक्त किए गए शब्द नहीं हैं वरन् ये विचार दिसंबर 2000 में ईरान के सर्वोच्च नेता अली खोमैनी ने व्यक्त किए थे .दूसरे शब्दों में इजरायल को नष्ट करने का अहमदीनेजाद का आह्वान कोई नया नहीं है वरन् यह एक शासन की स्थापित लफ्फाजी और महत्वाकांक्षा कि पारिपाटी को व्यक्त करता है . इजरायल की मौत का यह नारा एक चौथाई शताब्दी से बार-बार दुहराया जाता रहा है .
26 अक्टूबर को यहूदियों के नरसंहार का आह्वान करते हुए अहमदीनेजाद ने ईरान के संस्थापक अयातुल्ला खुमैनी को उद्दृत किया .दशकों पहले खुमैनी ने कहा था कि जेरुसलम पर कब्जा करने वाले शासन को इतिहास के पन्ने से नेस्तनाबूद कर दिया जाना चाहिए . अहमदीनेजाद ने इस बुरे लक्ष्य को अत्यंत बुद्धिमत्तापूर्ण बताकर उसकी सराहना की .
दिसंबर 2001 में ईरान के पूर्व राष्ट्रपति और अब भी ईरान की राजनीति में ताकत रखने वाले अली अकबर हाशमी रफसंजानी ने इजरायल के साथ परमाणु हथियार की अदला –बदली की कुछ भूमिका तैयार की थी “ य़दि कोई ऐसा दिन आता है जब इस्लामी विश्व के पास भी वही हथियार हों जो इजरायल के पास हैं तो उपनिवेशवाद की रणनीति में अवरोध आएगा क्योंकि परमाणु हथियार के उपयोग से इजारायल में कुछ भी नहीं बचेगा जबकि इस्लामिक दुनिया को मामूली नुकसान ही झेलना होगा .” इसी भावना के साथ पिछले माह तेहरान में सबाह 3 बैलिस्टिक मिसाइल का प्रदर्शन इजरायल को नक्शे से मिटा देना चाहिए जैसे नारों के बीच हुआ . खुमैनी और ऱफसंजानी की धमकियां जहां उबाऊ हैं वहीं अहमदीनेजाद ने आक्रोश को बढ़ावा दिया है .
संयुक्त राष्ट्रसंघ महासचिव कोफी अन्नान ने इस पर निराशा जताई तो संयुक्त राष्ट्रसंघ सुरक्षा परिषद् ने एक स्वर से इसकी निंदा की तथा यूरोपियन संघ ने भी कड़े शब्दों में इसकी निंदा की .कनाडा के प्रधानमंत्री मार्टिन ने इसे सीमा रेखा लांघने वाला बताया . ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ब्लेयर की नजर में यह खौफनाक है.फ्रांस के विदेशमंत्री फिलिप दोस्ते ब्लेजे ने घोषणा की कि फ्रांस के लिए इजरायल का अस्तित्व टकराव का विषय नहीं है .ली मोन्डे ने इस भाषण को सतर्क होने वाला बताया Die welt ने इसे उच्चरित आतंकवाद बताया तथा लंदन सन् के समाचार शीर्षक में अहमदीनेजाद को विश्व का सबसे बुरा व्यक्ति कहा गया . इस बयान की निंदा करने वाले राज्यों में तुर्की , रुस और चीन भी शामिल हैं. ईरान के अग्रणी विरोधी गुट नेशनल काउंसिल ऑफ रेसिस्टेन्स ईरान के मरयाम रजावी ने यूरोपीय संघ से मांग की कि तेहारान को आतंकवाद और कट्टरपंथी हाइड्रा से मुक्ति दिलानी चाहिए.
फिलीस्तीन अथॉरिटी के सायेब एरेकॉट ने भी अहमदीनेजाद के बयान के विरुद्ध बोलते हुए कहा कि फिलीस्तीन इजरायल के अपने अस्तित्व को बनाए रखने के अधिकार को स्वीकार करता है तथा इस बयान की निंदा करता है . कैरो के दैनिक अल-अहरम ने इस बयान को खारिज़ करते हुए कहा कि यह बयान उन्मादी है तथा अरब के विनाश का मार्ग प्रशस्त करता है .
ईरानी तो आश्चर्यचकित थे और संदेह भरी दृष्टि से देख रहे थे . कुछ तो पूछ रहे थे कि एक लंबे समय से चली आ रही नीति को दुहराने मात्र से इतनी मात्रा में विदेशी प्रतिक्रिया क्यों हुई ? रचनात्मक दृष्टि से मैं इसके चार कारण मानता हूं –
1. अहमदीनेजाद का खतरनाक व्यवहार इजरायल की बढ़ती विश्वसनीयता के विरुद्ध धमकी है .
2. पिछले कुछ दिनों में उन्होंने सबकी अवहेलना कर अपनी धमकियों को दुहराया है और उनका विस्तृत विवरण दिया है .
3. उन्होंने आक्रामक रुख अपनाते हुए मुसलमानों को चेतावनी दी कि जो लोग इजरायल को मान्यता देते हैं वे इस्लामिक उम्मा की आग में जलेंगे.
प्रत्यक्ष रुप से निशाने पर फिलीस्तीन तथा कुछ अरब राज्य विशेष रुप से पड़ोसी पाकिस्तान है. अहमदीनेजाद के बोलने से एक माह पूर्व पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ ने माना कि इजरायल के लिए सही मायने में सुरक्षा की आवश्यकता है . उन्होंने पाकिस्तान जैसै मुस्लिम देशों द्वारा इजरायल के लिए दूतावास खोलने को “शांति का संकेत ” माना . संभवत: अहमदीनेजाद ने इजरायल के मामले पर पाकिस्तान से टक्कर लेने का मन बना लिया है . अंतिम कारण यह है कि इजरायल के लोगों का अनुमान है कि अगले 6 महीनों में इरान परमाणु बम बना लेगा . अहमदीनेजाद ने अस्पष्ट रुप से इस बात को निश्चित कर दिया कि वे इस लक्ष्य को कितने कम समय में प्राप्त करना चाहते हैं जब उन्होंने कहा कि अत्यंत अल्प काल में यहूदी शासन के समाप्ति की प्रक्रिया आरंभ हो जाए जो अत्यंत आसान और सीधी हो .
परमाणु हथियार संपन्न इरान द्वारा इजरायल की मौत की धारणा मात्र एक नारा न रहकर यहूदी राज्य पर परमाणु आक्रमण के रुप में परिवर्तित हो चुका है जो कि संभवत: रफसंजानी के नरसंहार के विचार पर आधारित है .
अहमदीनेजाद की इस साफगोई के कुछ सकारात्मक परिणाम भी हैं . उसने संपूर्ण विश्व को अपने शासन की आक्रामकता सेमेटिक विरोधी भावना का स्तर तथा अपने खतरनाक हथियारों से परिचित करा दिया . जैसा की टोनी ब्लेयर ने अनुभव किया है कि अहमदीनेजाद की चेतावनी से प्रश्न उठता है कि “ इस बारे में आप कब कुछ करने जा रहे हैं .” बाद में ब्लेयर ने तेहरान को चेतावनी दी कि वह विश्व की सुरक्षा के लिए खतरा न बनें अन्यथा कठोर कदम उठाने पड़ेंगे .उनकी इस चेतावनी को कार्यरुप में परिणत करने की आवश्यकता है और वह भी तत्काल प्रभाव से .
हम लोग देख रहे हैं कि क्या हम समय रहते कारवाई करते हैं या नहीं.