सेक्यूलरिज्म से जो मैं समझता हूं वो यह कि धर्म को सामाजिक जीवन से अलग रखा जाना चाहिए और उसे निजी जीवन तक सीमित रहना चाहिए . इस धारणा का विकास धर्म में आस्था न रखने वाले लोगों के परिश्रम का परिणाम नहीं है वरन् आधुनिक युग से पूर्व धर्म के नाम पर हुए संघर्ष में लड़ने वालों की हताशा और थकान का परिणाम है कि वे कुछ असहमति के लिए सहमत हो गए . दूसरे शब्दों में इस भावना की वृद्धि अतिशय आस्थागत् आज्ञायों के कारण हुई न कि आस्था के अभाव के कारण .
आज सेक्यूलरिज्म की दो भूमिकायें हैं . ऐसे समय में जबकि वैश्विक जिहाद एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय खतरा उत्पन्न कर रहा है इसने (सेक्यूलरिज्म) धर्म युद्ध के रास्ते को अवरुद्ध कर दिया है . दूसरे देशों में जाकर बसने की प्रवृत्ति से एकीकरण की अनोखी पद्धति को भी बल मिलेगा. लेकिन मुझे इस बात की चिंता है कि सेक्यूलरिज्म के वैकल्पिक मार्ग और उनसे उत्पन्न कटु परिणामों का अनुभव करने के बाद ही इसके लाभ पूर्ण रुप से दिखने शुरु होंगे.