26 नवंबर को सुन्नी और कुर्द राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों और व्यक्तियों ने इराक के निर्वाचक आयोग के समक्ष एक याचिका प्रस्तुत कर मांग की कि प्रस्तावित चुनावों में 6 माह की देरी की जाए इसके पीछे उन्होंने दो कारण गिनाए- वर्तमान सुरक्षा स्थिति तथा आवश्यक प्रशासनिक , तकनीकी व व्यवस्थित तैयारी का अभाव .
अमेरिका समर्थित इराकी सरकार ने याचिका को ठुकरा दिया . शियाओं के प्रवक्ता ने जोर दे कर कहा कि 30 जनवरी 2005 की चुनाव की तिथि पर कोई समझौता नहीं होगा .लेकिन इराक में मतदान को टालने के कारण उपस्थित हैं भले ही इसमें कुछ महीने या वर्ष क्यों न लगें.
वैसे तो राष्ट्रपति बुश का “स्वतंत्र और लोकतांत्रिक ” इराक का आह्वान उचित है लेकिन इराक की राजनीतिक व्यवस्था को दो महीने में पटरी पर नहीं लाया जा सकता .याचिका कर्ता के अनुसार सुरक्षा एक कारण है जबकि लोकतंत्रीकरण दूसरा.
सुरक्षा – चुनाव से पूर्व बगदाद की केन्द्रीय सरकार की पहली प्राथमिकता अमेरिका तथा अन्य मित्र सेनाओं के सहयोग के बिना इराक में सुन्नी प्रतिरोध को समाप्त कर संपूर्ण देश पर नियंत्रण स्थापित करना है इस दृष्टि से अमेरिकी सरकार ने अलावी की प्रधानमंत्री के रुप में नियुक्ति कर अच्छा किया है क्योंकि जून 2004 में कार्यभार संभालने के बाद से उन्होंने सुरक्षा के विषय पर पूरी तरह ध्यान केन्द्रित रखा है . जनमत सर्वेक्षणों के परिणाम ही बताते हैं कि अलावी की यह नीति जनता को पसंद आ रही है . ऑक्सफोर्ड रिसर्च इंटरनेशन्ल द्वारा जून में कराए गए सर्वेक्षण में पाया गया कि यद्यपि इराकी दीर्घगामी स्तर पर लोकतंत्र की अपक्षा करते हैं लेकिन तत्काल चाहते हैं कि कोई सशक्त व्यक्ति सुरक्षा से जुड़ी समस्याओं का समाधान करे , देश का नियंत्रण अपने हाथ में ले तथा देश को एक-जुट रखे . इस जनमत सर्वेक्षण के दो परिणाम हैं . इराक पर नियंत्रण स्थापित करने से ही शासन को मान्यता मिलने वाली है और साथ ही राजनीति इस बात को समझ रही है कि अधिनायकवाद को समाप्त कर लोकतंत्र लाने में समय लगेगा.
दुर्भाग्य से मान्यता प्राप्त करने की यह भावना मित्र सेनाओं द्वारा फलूजा तथा अन्य स्थानों पर लड़ते रहने से कम हो रही है . क्योंकि सुन्नी उग्रवाद को दबाने का काम इराकी अधिकारियों पर छोड़ा ही नहीं गया . इससे इराक के सुन्नियों और अमेरिकी सरकार के बीच युद्ध की अस्वस्थ स्थिति उत्पन्न हो गई है . जैसा कि चार्ल्स क्रॉवथामर ने इंगित किया है . “ अमेरिका को यह स्पष्ट होना चाहिए कि वे वहां नई सरकार का समर्थन करने के लिए हैं और साथ ही यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि हम वहां अनंतकाल तक लड़ने के लिए नहीं हैं .यह उनका गृहयुद्ध है.” केन्द्रीय सरकार संपूर्ण इराक पर नियंत्रण स्थापित करने के लक्ष्य से दूर है और उसे ऐसा करने में अभी वर्षों लगेंगे. बगदाद को वर्तमान समय में अस्तित्व में आई समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए न कि इराक में लोकतांत्रिक सरकार स्थापित करने जैसे कठिन विषयों पर . मेरी दृष्टि में स्थिरता पहली आवश्यकता है ..लोकतंत्र उसके बाद .
लोकतंत्रीकरण – मतदान लोकतंत्रीकरण की प्रक्रिया की परिणति है न कि इसका आरंभ . इससे पहले कि इराकी चुनावों का अर्थपूर्ण लाभ उठा सकें उन्हें सद्दाम हुसैन के क्रूरतापूर्ण शासन की आदतों को छोड़कर सिविल समाज की अच्छी आदतों को सीखना होगा. इसके बहुत से रास्ते हैं जैसे स्वयंसेवी संस्थाओं का निर्माण (राजनीतिक दल, लॉबी ,गुट आदि ) , कानून का शासन स्थापित करना , अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता स्थापित करना , अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा , संपत्ति के अधिकार की सुरक्षा सुनिश्चित करना तथा एक सार्थक विपक्ष के सिद्धांत को विकसित करना . इन अच्छी आदतों में से चुनाव निकलकर आएगा .मतदान नगरपालिका स्तर से शुरु हो कर राष्ट्रीय स्तर तक जाए . साथ ही विधायिका से शुरु हो कर कार्यपालिका तक जाए . इस प्रक्रिया में समय लगेगा क्योंकि इराक की विभाजित जनता को परस्पर निकट लाना और उनकी दशकों की अधिनायकवादी आदतों को छुड़ाना सरल नहीं है. मैक्सिको दक्षिण अफ्रीका , रुस , चीन के अनुभव बताते हैं कि क्रूरता से लोकतंत्र तक का रास्ता काफी लंबा और उबड़ खाबड़ है . कोई भी कठिन कार्य जल्दबाजी में नहीं किया जा सकता और वह भी किसी विदेशी द्वारा. केवल इराकी जनता ही इस दिशा में प्रगति कर सकती है और वह भी अपने तरीके से अपनी भूलों से सबक लेते हुए .
11 सितंबर के बाद शिकागो विश्वविद्यालय के जीन बेतके एल्स्थेन ने यही बात बुश से कही थी कि धैर्यहीन लोगों को धैर्य सिखाओ. इराक में अमेरिका की अधीरता के घातक परिणाम हो सकते हैं.