मध्य पूर्व और इस्लामिक विषयों पर कानूनी कारवाई की धमकी अमेरिका में भ्रष्टाचार की भांति ही अत्यंत सामान्य समस्या है .
काउंसिल ऑन इस्लामिक रिलेश्नस और ग्लोबल रिलीफ फांउडेशन जैसे इस्लामी संगठन मुकदमेबाजी की प्रक्रिया अपनाकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और खोलेद बिन महफूज जैसे व्यक्तियों को प्रताड़ित करते हैं. व्यक्तिगत रुप से मैंने कभी किसी को मुकदमे की धमकी नहीं दी क्योंकि मैं अदालत के स्थान पर जनता की अदालत को प्राथमिकता देता हूं.
जो मुझसे असहमत हैं उन्होंने प्राय: मुकदमों की संभावना का विषय उठाया है , लेकिन वास्तव में केवल एक व्यक्ति ही मेरे विरुद्ध अदालत गया है .निश्चित रुप से यह ओरेगन विश्वविद्यालय से संबद्ध डगलस कार्ड हैं.
उनकी कारवाई का आधार जून 2002 में मेरे और जोनाथन स्कैन्जर द्वारा “Extremists on campus ” शीर्षक से लिखा गया लेख था.इस लेख में अमेरिका के विश्वविद्यालयों में इजरायल विरोधी गतिविधियों पर बहस करते हुए श्री कार्ड सहित अनेक अध्यापकों का उल्लेख किया गया था .अपनी शिकायत में कार्ड ने निम्नलिखित वाक्यांश को मुकदमे का विषय बनाया. “ओरेगन विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग के अंतर्गत डगलस कार्ड ने Social inequality ” पाठ्यक्रम में इजरायल को आतंकवादी राज्य बताया तथा इजरायल वासियों को बच्चों का हत्यारा बताते हुए छात्रों को इस बात के लिए प्रेरित किया कि अंतिम परीक्षा में वे उनकी (कार्ड ) इस बात से सहमत हों कि इजरायल ने जमीन चुराई है . एक छात्र ने कहा कि कार्ड प्रत्येक अवसर पर इजरायल और यहूदियों को कोसते हैं.”
लेख छपने के कुछ सप्ताह उपरांत कार्ड ने मुझसे संपर्क कर इस लेख के चित्रण पर विरोध जताया. उन्होंने कहा कि इससे उन्हें अत्यंत दुख पहुंचा है . तथा उनके व्यक्तिगत और व्यावसायिक प्रतिष्ठा को क्षति पहुंची है .उन्होंने मुझे चेतावनी दी कि सार्वजनिक रुप से इस पैराग्राफ के लिए क्षमा नहीं मांगने से मेरे कैरियर को उनसे कहीं ज्यादा नुकसान पहुंचेगा...” मैंने थोड़े शब्दों में उत्तर दिया मेरे कैरियर को नुकसान पहुंचाने की आपकी धमकी मैंने देखी . सैद्धांतिक रुप से मैं उन लोगों से कोई संपर्क नहीं रखता जो मुझे भयभीत करना चाहते हैं..कार्ड ने उत्तर में कहा ऐसे वाक्य के प्रयोग के लिए मैं खेद प्रकट करता हूं. इस प्रकार उन्होंने मेरे और स्कैन्जर के साथ समझौते का मार्ग प्रशस्त किया . मैंने और स्कैन्जर ने कहा कि यदि वे कुछ कदम उठायें तो समझौता हो सकता है जैसे अंतिम परीक्षा में इस प्रकार के प्रश्न शामिल करें जो विश्विद्यालय परिसर में व्याप्त खतरनाक वातावरण का वर्णन करें और फिर यहूदी तथा इजरायल समर्थकों के विरुद्ध व्याप्त घृणा के वातावरण की निंदा करें. यदि वह ऐसा करते हैं तो हम सार्वजनिक रुप से घोषित करेंगे कि वे परिसर में कट्टरता नहीं फैला रहे हैं.
इसी आधार पर अनेक चरणों में हमारी और उनकी बातचीत हुई लेकिन उसका कोई निष्कर्ष नहीं निकला . उसके बाद कार्ड काफी महीनों तक चुप रहे और फिर मामले को भूल गए . अचानक सितंबर 2003 में उन्होंने मेरे और स्कैन्जर के विरुद्ध भारी भरकम राशि की मांग करते हुए मुकदमा ठोंक दिया . मार्च 2004 में न केवल कार्ड का मुकदमा खारिज कर दिया गया वरन् उन्हें हमलोगों को हजारों डॉलर मुकदमे की फीस के खर्चे के जुर्माने के रुप में देने पड़े . इसमे कोई आश्चर्य नही हुआ कि जब उन्होंने परीक्षण न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध अपील की .अपील पर अदालत ने सदैव की भांति एक मध्यस्थ नियुक्त कर दिया . हमं और कार्ड लगभग उसी समझौते पर पहुंचे जहां मुकदमा शुरु होने से पहले हमं थे. अंत में श्री कार्ड ने अपनी परीक्षा हमें दिखाई तथा एक संयुक्त वक्तव्य जारी कर सेमेटिक विरोधी भावना , यहूदी विरोधी भावना की निंदा की तथा उन प्रोफेसरों की निंदा की जो कक्षाओं में इजरायल विरोधी और सेमेटिक विरोधी भावनाओं को बढ़ावा देते हैं. उन्होंने इस बात को मान्यता दी कि विश्वविद्यालय परिसर में ऐसी बातों का प्रचार कितना खतरनाक है. उन्होंने विचार व्यक्त किया कि हाल के वर्षों में पूरी दुनिया में सेमेटिक विरोधी भावना के प्रवाह से वे भयाक्रांत हैं तथा कक्षाओं में यहूदी छात्रों पर हमले से उन्हें परेशानी होती है . इन वक्तव्यों के प्रकाश में मैंने और स्कैन्जर ने कहा कि हमें पूरा भरोसा है कि कार्ड कक्षाओं में कट्टरता नहीं फैलाते .
अपने इस अनुभव के आधार पर मैंने दो निष्कर्ष निकाले. पहला , श्री कार्ड ने तमाम असुविधाओं और खर्च को वहन करते हुए कानूनी रास्ता अपनाया यह उनकी भूल थी ,क्योंकि अंत में हम उसी रास्ते पर चले जहां दो वर्ष पूर्व थे .स्वयं को अदालत की ऐसी व्यवस्था के सामने खोल दिया जो माफ नहीं करती .
“ इस मुकदमे से यह भी स्पष्ट है कि बड़ी –बड़ी लॉ फर्म की अधिवक्ता मुकदमे लड़ने को तैयार रहते हैं जो सी.ए आई .आर जैसे संगठनों के लिए सेंसर का काम कर सकता है . मुझे यह बात बताते हुए अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि अमेरिका में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अब भी प्रभावी है