21 नवंबर को एरियल शेरोन ने इजरायल की राजनीति को एकदम घुमा दिया जब उन्होंने स्वयं द्वारा स्थापित 32 वर्ष पुरानी लिकुड पार्टी को छोड़ने की घोषणा कर दी . अगले सप्ताह चुनाव का और जोश देखने को मिला जब परिणामों ने धीरे-धीरे एरियल शेरोन
की नई पार्टी “ कदीमा ” (अग्रगामी ) के लिए बड़ी सफलता के संकेत दिए . उदाहरण के लिए आइ एम आर ए द्वारा दिए गए सर्वेक्षण के अनुसार इजरायल की संसद नेसेट की 120 सदस्यों की संख्या में कदीमा को 32-34 सीटें मिलने की संभावना है जबकि लेबर पार्टी और लिकुड को क्रमश: 26 और 13 सोटें मिलने की संभावना है जबकि अन्य दलों को 10 सीटें मिलने की भी संभावना नहीं है .
लेकिन इस नई पार्टी का जीवन कितना लंबा होगा और इसका प्रभाव कितना गहरा होगा ? कदीमा के प्रभाव को जानने का सबसे अच्छा उपाय इजरायल की राजनीति में पार्टियों के तुलनात्मक इतिहास को जानना होगा . बर्नाड सुसर और गीओरा गोल्डबर्ग का शोधपूर्ण सार्थक शीर्षक Escapist parties in Israeli politics का सामयिक लेख इस विषय की अच्छी व्याख्या प्रस्तुत करता है . इसका प्रकाशन एफ्रेम कर्ष द्वारा संपादित समसामयिक पत्रिका “ Israel Affairs ” में हुआ है .
लेखक के अनुसार पलायनवादी राजनीतिक दल इजरायल के 40 वर्ष पुरानी राजनीतिक अवस्था में स्थायी तत्व रहे हैं. कदीमा को पलायनवादी कहना तो शायद अपमानजनक होगा लेकिन शेरोन की नई पार्टी सुसर और गोल्डवर्ग के इस वाक्यांश पर सटीक बैठती है. वास्तव में उन्होंने पलायनवादी पार्टियों को दो भागों में बांटा है, सामान्य स्तर से नीचे तथा नई शुरुआत . प्रथम स्तर की पार्टियां यहां हमारी रुचि का विषय नहीं हैं. क्योंकि इनका ध्यान राजनीति से अलग-थलग पड़े उन मतदाताओं की ओर होता है जिनका राजनीतिक व्यवस्था में हर प्रकार से बहुत कम निवेश होता है . इन वर्षों में अनेक रंगों वाली व्यक्तिगत पार्टियां इस रंग में आती हैं जिनमें शैमुअल फ्लैटो , शेरोन , नीना रोसेनत्लम, रबी मित्चाक , कदोवरी तथा हाल के चुनावों में सेवरियल ग्रीन लीफ पार्टी प्रमुख है .
इसके विपरीत नई शुरुआत की पार्टियों ने अधिक बड़ी भूमिका निभाई है जिनमें डैश , सेन्टर , इजरेल अचेरेट , शिनुई और हाओलाम हाजेह प्रमुख हैं. उपरी विभिन्नताओं के बाद भी इन संगठनों में आपस में कई समानतायें भी हैं .
आरंभ में इजरायल के सामने घिरी तमाम समस्याओं का तत्काल समाधान उपलब्ध कराने की बात कहते हैं और मतदाताओं को इनकी बात पर भरोसा हो जाता है क्योंकि कठिन विषयों के बार –बार उठने से उनके समाधान में बाधा पहुंचती रहती है.इस प्रकार वो किसी लंबी व सुस्त राजनीतिक क्रमिक विकास का परिणाम नहीं है. वरन् राजनीतिक पटल पर अचानक या नाटकीय ढ़ंग से प्रकट होने वाली शक्तियां हैं.
बाहरी स्वरुप में नई शुरुआत की पार्टियां कुछ मामलों में समान हैं.
वैचारिक दृष्टि से उनका किसी बात पर जोर नहीं होता .परंपरागत श्रेणियों जैसे दक्षिण या वाम , कट्टर या नरम , समाजवादी या पूंजीवादी , व्यवस्थावादी या व्यवस्थाविरोधी के आधार पर उनकी व्याख्या तो कठिन है . उनके राजनीतिक द्वंद को सनसनीखेज , आसान और नैतिक रुप से सक्रिय के रुप में व्यक्त किया जा सकता है . वे तात्कालिक परिणाम और नाटकीय सफलता का आश्वासन देते हैं. वे राजनीतिक अस्पष्टता का बहुत कम प्रदर्शन करती है . पलायनवादी पार्टियां प्राय: केन्द्रीय राजनीति के प्रतिनिधित्व का दावा करती हैं. यद्दपि पार्टी का नेतृत्व विचारधारा के किसी न किसी ध्रुव के निकट होता है.
इस स्वरुप के आधार पर स्पष्ट होता है कि इस बात का दावा करके कि वे. “कुछ राष्ट्रीय विषयों पर आम सहमति रखते हैं तथा शांत बहुमत की आवाज हैं और विविध व व्यापक मतदाताओं तक पहुंचने का जितना प्रयास कर सकते हैं करते हैं . ” मतदाताओं की ओर झुकाव दिखाते हैं. मतदाताओं के लिए उनकी अपील भी एक सी होती है . वे इस बात पर जोर देती हैं और दावा करती हैं कि वे थक चुके मतदाताओं की हताशा का प्रतिनिधित्व करती हैं. पलायनवादी पार्टियां प्रमुख विषयों से अधिक व्यक्तियों पर जोर देती हैं . वे अपने नेतृत्व और अपनी क्षमताओं पर अधिक जोर देती हैं न कि उन विषयों पर जिनके लिए उनकी मान्यता है .
इसका अर्थ हुआ कि नेतृत्व और संरचना के स्तर पर भी कुछ समानता है . इन पलायनवादी पार्टियों का नेतृत्व व्यक्तित्व और विचारधारा का मिला जुला स्वरुप होता है. कभी –कभी वे सभी विचारधाराओं की ओर झुकती दिखाई पड़ती हैं. इन पार्टियों के पास राष्ट्रीय नेतृत्व तो होता है लेकिन जमीनी स्तर पर कोई संगठन नहीं होता और स्थानीय प्रतिनिधित्व भी विकसित नहीं होता. पलायनवादी पार्टियों के जीवन की संभावितता अत्यंत संक्षिप्त होती है . प्राय: ये एक कार्यकाल या दो कार्यकाल के बाद अदृश्य हो जाती हैं.
सुसर गोल्डवर्ग मॉडल शेरोन की पार्टी पर पूरी तरह उपयुक्त नहीं बैठता क्योंकि उनके वर्णन के अनुसार नई शुरुआत की पार्टियों का आरंभ राजनीति से बाहर के लोग करते हैं जो व्यवसाय की दुनिया के ,प्रेस , अकादमिक या वे लोग होते हैं जो व्यवस्था से परेशान हो कर राजनीति में कूदते हैं लेकिन पदासीन प्रधानमंत्री द्वारा ऐसी पार्टी का गठन शायद ही होता है . लेकिन इस मामले में एक उदाहरण पहले का है और वह है डेबिड बेन ग्यूरियन और उनकी रफी पार्टी का . उन्होंने पद से हटने के बाद उसका गठन किया जो अत्यंत अल्पकाल तक अस्तित्व में रही . नई शुरुआत की पार्टियां तत्काल अहंकारपूर्ण तरीके से इजरायल के राजनीति के दक्षिण और वामपंथी ध्रुव से परे कुछ नया और गंभीर करने का प्रयास करती हैं. इसी कारण शेरोन की कदीमा पार्टी का स्वभाव पलायनवादी पार्टी का है और मेरी भविष्यवाणी है कि यह जितनी तेजी से उभरी है उतनी ही तेजी से पतन की ओर जाएगी तथा अपने पीछे एक दयनीय विरासत छोड़ जायेगी .
अतिरिक्त सामग्री- विरोधी तर्क के लिए तथा पिछले अनुभवों के लिए स्तंभकार डैनियल फ्रीडमैन का लेख History won’t repeat itself भी देखा जा सकता है . 1965 में बेन ग्यूरियन द्वारा रफी पार्टी बनाए जाने और शेरोन द्वारा कदीमा पार्टी बनाए जाने के मध्य कोई समानता नहीं है . बेन ग्यूरियन द्वारा अपनी पार्टी के सदस्यों के साथ मतभेद के कारण नई पार्टी बनाई गई थी और उस समय मपाई की लोकप्रियता शिखर पर थी तथा लोगों ने बेन ग्यूरियन की स्थिति का समर्थन नहीं किया था .
एक और उदाहरण – डैश अनेक पार्टियों के गठबंधन से कुछ ही अधिक था तथा यादिन के पास पार्टी चलाने का अनुभव नहीं था अभी हाल में केन्द्रीय पार्टी का गठन बेंजामिन नेतान्याहू की सरकार के विरोध के चलते हुआ था . कुछ ही लोग इसमें शामिल हुए तथा नासेंट पार्टी के गठन के बाद ही आपसी लड़ाई आरंभ हो गई .
नई पार्टी के भविष्य के संबंध में कुछ भी सुझाव देने की आवश्यकता नहीं है केवल इतिहास स्वयं को दुहरा रहा है.