इजरायल की प्रत्येक चरण की वापसी , पीछे हटने की नीति या स्वयं को असम्बद्ध करने की नीति से उसे समस्त विश्व की स्वीकृति प्राप्त होती है जो संयुक्त राष्ट्रसंघ की आम सभा से प्रकट होता है.
ओस्लो समझौते पर हस्ताक्षर के बाद सितंबर 1993 में संयुक्त राष्ट्रसंघ आम सभा ने 155 के मुकाबले 3 मतों से , जिनमें एक राज्य अनुपस्थित था तथा 19 राज्यों ने मत नहीं दिया ,इस समझौते की सराहना करते हुए इस शांति प्रयास की उपलब्धि के प्रति पूर्ण समर्थन व्यक्त किया .
मई 2000 में बराक सरकार द्वारा लेबनान से इजरायल की वापसी के निर्णय की प्रशंसा करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव कोफी अन्नान ने इसे इजरायल और संयुक्त राष्ट्र संबंधों के मध्य एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम बताया.यद्दपि कुछ ही महीनों के भीतर ये मधुर संबंध कड़वाहट में बदल गए और इनका स्थान वही पुरानी यहूदी विरोधी अफवाह और दोहरे चरित्र ने लिया .
एक बार फिर यही सत्य सिद्ध हो रहा है . अगस्त – सितंबर 2005 में गाजा से वापसी करने के बाद से एरियल शेरोन संयुक्त राष्ट्रसंघ के अत्यंत प्रिय पात्र बन गए हैं . इससे पूर्व इजरायल के किसी प्रधानमंत्री के साथ ऐसा नहीं हुआ था कि उससे मिलने के लिए विश्व के नेताओं में प्रतिस्पर्धा छिड़ी हो और उसे स्वयं को तथा देश को उनके समक्ष प्रस्तुत करने का अवसर मिला हो . यहां मध्य अक्टूबर की Israel as the new UN Favorite शीर्षक की न्यूयार्क टाइम्स की रिपोर्ट प्रस्तुत करने का अवसर मिला है ..
अभी हाल में इजरायल ने संयुक्त राष्ट्रसंघ में एक प्रस्ताव प्रस्तुत कर दो वर्ष के लिए सुरक्षा परिषद् की सदस्यता की उम्मीदवारी जताई तथा महासभा में बोलने के लिए इसके प्रधानमंत्री का गर्मजोशी से स्वागत किया गया . वैसे तो 190 देशों के इस संगठन में किसी भी देश के लिए यह आम बात है लेकिन इजरायल के संबंध में ऐसा पहली बार है कि जब इस देश ने प्रस्ताव प्रस्तुत किया है तथा सुरक्षा परिषद् की सदस्यता के अनुरोध पर अनुमान लगाया जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्रसंघ में इजरायल के विरुद्ध ऐतिहासिक दृष्टि से विरोध का जो वातावरण चला आ रहा था वह समाप्त हो गया है . 15 सितंबर को महासभा में एरियल शेरोन द्वारा दिया गया भाषण संयुक्त राष्ट्र संघ में उनका पहला भाषण था . यह भाषण उस विशाल कक्ष में दिया गया था जो उनके देश की निंदा से भरा रहता था जहां उनकी निंदा के प्रस्ताव पारित होते थे तथा इजरायल के लोगों के बोलने पर अरब प्रतिनिधि अपनी सीटें छोड़कर उठ जाते थे.
इजरायल के राजदूत डॉन गिलरमैन ने स्वीकृति प्राप्त करने के प्रयासों के संबंध में कहा “ दो वर्ष पूर्व ऐसे कदम उठने की संभावना नहीं थी .हमारे लिए तो इस संबंध में प्रयास करने के लिए सोचना भी सोच से परे व आत्मघाती था .”
तो क्या शेरोन द्वारा इजरायल की राजनीति को एकदम वामपंथ की ओर मोड़ देने से व्यक्तिगत आक्षेप का दौर समाप्त हो जाएगा . ? शांति के लिए अमेरिका के साथ मेल-जोल , इजरायल पॉलिसी फोरम् और जैक शिरॉक ने संयुक्त राष्ट्रसंघ के साथ इस सुखद अवसर का मार्ग प्रशस्त किया है .
निश्चित रुप से इस बार यह सुखद अवसर अधिक समय तक रहेगा नहीं . मध्य सितंबर में एक साक्षात्कार में मैंने भविष्यवाणी की थी कि ऐसा नहीं होगा –
इजरायल के प्रधानमंत्रियों द्वारा कुछ छूट देने की एवज में विश्व द्वारा उन्हें पुरस्कृत करने का पुराना इतिहास रहा है . संयुक्त राष्ट्रसंघ में जो अलोकप्रिय है उसे पुरस्कृत किया जा रहा लगता है और वह उल्लास मनाता है . यह भी शेरोन के कैरियर का सबसे अच्छा समय होगा. पूरी दुनिया कहेगी कि सही दिशा में उठाया गया कदम है और फिर एक दो महीने बाद पूछेगी ..अगला कदम कौन सा है ? इससे उल्लास का समय बहुत कम मिलने वाला है .यह तो एक चुस्की जैसा है .इससे आप विजयी नहीं हो सकते . मैं अत्यंत विश्वास के साथ भविष्यवाणी कर सकता हूं कि यदि उन्होंने पश्चिमी तट से इजरायल वासियों को वापस बुलाने की दिशा में कुछ कदम नहीं उठाया तो अच्छा मिजाज बदल जाएगा .
और आश्चर्य है कि इसी समय मिजाज बदल रहा है . दो दिसंबर को आम सभा ने इजरायल और उसके पड़ोसियों से संबंधित 6 प्रस्ताव पारित किए और प्रत्येक प्रस्ताव में अपने पुराने ढर्रे पर लौटते हुए इजरायल को लताड़ा गया और उस पर अनेक आरोप लगाए गए . उदाहरण के लिए एक प्रस्ताव पारित कर इजरायल से कहा गया कि वह 1967 में जीते गए क्षेत्र को वापस करे इस प्रस्ताव के पक्ष में 156 मत पड़े . 6 मत विरोध में पड़े तथा 9 राज्य मतदान में अनुपस्थित रहे . इसी प्रकार एक प्रस्ताव में जेरुसलम में इजरायल के स्वामित्व और प्रशासन की निंदा की गई .इस प्रस्ताव के पक्ष में 153 मत पड़े तथा 7 मत विरोध में पड़े . इन प्रस्तावों के संबंध में फिलीस्तीनी अथॉरिटी ने ठीक ही कहा कि ये मत संयुक्त राष्ट्र संघ आम सभा में फिलीस्तीनी प्रश्नों का भारी समर्थन है . उनके दृष्टिकोण से सबकुछ पहले जैसा सामान्य हो गया है .
1992 से ही इजरायल के अभागे नेता तुष्टीकरण की नीति अपना रहे हैं. उनको आशा है कि उन असंतुष्ट देशों को कुछ छूट देकर जिनकी विश्व जनमत में मान्यता है परेशानियां दूर हो जायेंगी तथा शांति और भाईचारा आएगा . परंतु अंध युग के दौरान 1940 का विंसटन चर्चिल का एक शाश्वत कथन है कि तुष्टीकरण करने वाला व्यक्ति वह है जो एक मगरमच्छ को इस आशा से खिलाता है कि एक दिन वह स्वयं मगरमच्छ का शिकार हो जाएगा . संयुक्त राष्ट्रसंघ रुपी मगरमच्छ इजरायल की हर दुखद छूट पर थोड़ा संतुष्ट हो जाता है लेकिन उसके बाद और लोभ की दृष्टि से उसकी ओर फिर देखता है .क्या कभी इजरायल के लोग समझ पायेंगे कि युद्ध विजय से जीते जाते हैं पीछे हटने से नहीं.