आश्चर्यजनक रुप से इजरायल को नष्ट करने का सही और गलत दोनों रास्ता है . पिछले सप्ताह संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव कोफी अन्नान ने दोनों रास्तों का उदाहरण प्रस्तुत किया . 26 अक्टूबर को जब इरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद ने कहा कि जेरुसलम पर शासन करने वालों को इतिहास के पन्ने से मिटा देना चाहिए तो श्री अन्नान ने इसपर दुख प्रकट किया था . दुबारा जब आठ दिसंबर को अहमदीनेजाद ने इजरायल को इजरायल में ले जाने की मांग की तो अन्नान ने इसे चौंकाने वाले बताया .
लेकिन अहमदीनेजाद के इस दुखद और चौंकाने वाले वक्तव्य के बाद भी अन्नान ने इन्ही वक्तव्यों के मध्य संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा प्रायोजित फिलीस्तीनी लोगों के साथ एकता दिखाने वाला अंतरराष्ट्रीय दिवस कार्यक्रम में भाग लिया . आई ऑन यू एन में एनी बेफीस्के ने बताया कि अन्नान मंच पर अरबी भाषा के एक मानचित्र के निकट बैठे थे जिसमें इजरायल की जगह पर फिलीस्तीन को दिखाया गया था . इस मानचित्र के माध्यम से वह उद्देश्य प्राप्त कर लिया गया जिसका आहवान् अहमदीनेजाद ने किया है कि यहूदी राज्य को नष्ट कर दिया जाये .
अन्नान का विरोधाभाषी कृत्य उस तथ्य का परिणाम है जिसके द्वारा 1993 से इजरायल को नष्ट करने की स्पष्ट घोषणा काफी आक्रामक हो गई है लेकिन परोक्ष घोषणा अधिक स्वीकृत हैं . बाद की घोषणाओं में निम्नलिखित सम्मिलित हैं . किसी के भी द्वारा फिलीस्तीनी होने का दावा कर जनांकिकीय दृष्टि से यहूदी राज्य पर प्रभाव बनाना.
- जेरुसलम को मुक्त कराने के लिए जेहाद की घोषणा . इजरायल के निर्माण को अल – नकाब ( आपदा ) .
- एक राज्य के समाधान के प्रस्ताव के तहत इजरायल न रहे ऐसी बात करना .
- फिलीस्तीनी लोगों के लिए अपनी जान देने वालों को श्रद्धांजली देना ( जिसमें आत्मघाती हमलावर भी हैं)
- ऐसे मानचित्र जिसमें इजरायल को नहीं दिखाया गया है .
फतह और हमास दोनों दिखने में अलग- अलग हैं लेकिन दोनों की आकांक्षा इजरायल को नष्ट करने की है लेकिन इसे प्राप्त करने के इनके तरीके अलग हैं .
1988 में यासर अराफात द्वारा आतंकवाद की निंदा करने और इजरायल के साथ शांति प्रक्रिया आरंभ करने के बाद से फतह की रणनीति अवसरवादी , बनावटी और अस्थिर रही है क्योंकि साथ ही साथ अराफात ने आत्मघाती हमलों को बढ़ावा दिया तथा ऐसी विचारधारा को प्रश्रय दिया जो इजरायल की मान्यता को पूरी तरह अस्वीकार करती है . इस पारदर्शी धोखे से फतह को इजरायल से काफी लाभ प्राप्त हुए जिसमें एक स्वायत्तशासी शासन , एक अर्ध सैनिक बल , विस्तृत पश्चिमी सहयोग तथा एक सीमा का लगभग पूरा नियंत्रण. इसके विपरीत हमास ने लगातार इजरायल के अस्तित्व को नकारा है तथा उसने फिलीस्तीनी अरब जनमानस के बहुत बड़े भाग पर विजय प्राप्त कर रखी है . ( नवीनतम चुनाव सर्वेक्षण के अनुसार आगामी चुनाव में हमास फतह से 35 के मुकाबले 45 प्रतिशत से आगे चल रहा है ) लेकिन इस प्रकार स्पष्ट रुप से अस्वीकार करने की नीति से उसके प्रति इजरायल तथा अन्य लोगों में घृणा के कारण प्रभाव कम हो गया है . इसके परिणाम स्वरुप हाल के महीनों में हमास ने अधिक लचीला रुख अपनाना शुरु कर दिया है . उदाहरण के लिए उसने इजरायल के साथ युद्ध विराम का सम्मान किया तथा कूटनीतिक प्रक्रिया की ओर प्रवेश किया है . इससे कई लाभ भी हुए हैं . Conflicts Forum तथा कुछ अन्य लोगों ने कुछ सफलता के साथ हमास को एक नवीन मान्यता प्राप्त मध्यस्थ के रुप में प्रस्तुत किया है .
फिलीस्तीनी इस्लामिक जेहाद ही अब एक मात्र ऐसा संगठन रह गया है जो इजरायल को पूरी तरह अस्वीकार करता है .
शैली के संबंध में इतनी विविधता क्यों ? क्योंकि फतह का तरीका इजरायल के लोगों को उनके साथ काम करने के लिए उत्तेजित करता है . अराफात की भांति दिखावा , अस्थिरता , धोखे और झूठ ने इजरायल वासियों को पीड़ादायक छूटों के लिए प्रेरित किया है . अहमदीनेजाद का तरीका स्पष्ट रुप से क्रूर है जो इजरायल से टकराता है और किसी भी भांति तार्किक नहीं कहा जा सकता . इजरायल को अदृश्य करने की मुंहफट घोषणायें इजरायल को संकीर्ण बनाती हैं .तथा कूटनीतिक रास्ते बंद करने के नए तरीके प्रदान करती हैं .
इन दाव पेंचों से कटुता बढनी चाहिए और निश्चित रुप से इजरायली अनुभव करेंगे कि पहला तो किसी भी प्रकार बाद वाले से कम नुकसानदेह नहीं है . लेकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं . दार्शनिक योराम हाजोनी के शब्दों में “ 1993 से इजरायल के शब्दों में 1993 से इजरायल के लोग थके हुए , भ्रमित और दिशाहीन रहे हैं तथा अपने शत्रु द्वारा धोखा खाने को उद्दत रहे हैं . उन्हें किसी दिशा में शुरुआत करने की आवश्यकता है हालांकि बहुत प्रभावी नहीं है कि वे युद्ध से मुक्त हो जायेंगे तथा कठिन है कि वे भौतिक शत्रु के विरुद्ध छूट देने से स्वयं को रोक पायेंगे.
तो क्या प्रबुद्ध विश्व जनमत इस बात को भांपकर कि अहमदीनेजाद काफी आगे बढ़ गए तथा इजरायल को पीछे हटने से विवश कर रहे हैं , उनके विवश कर रहे हैं , उनके विचार की निन्दा करेगा . यदि वह अपने वक्तव्य का तीखापन कम करके विनम्रतापूर्वक एक राज्य के समाधान का समर्थन कर इजरायल को नष्ट करेंगे तो सबकुछ ठीक रहेगा.
क्या इजरायल के लोगों ने प्रभावी रुप से इस बात को परिभाषित किया है कि कौन सा यहूदी विरोध माल है और कौन सा नहीं .
इजरायल के विनाश का समर्थन करने की और उसकी निंदा करने का कोफी अन्नान का रिकार्ड इजरायल के लोगों द्वारा स्थापित विनम्र व्यवहार को ही प्रतिविंबित करता है .