डैनियल पाइप्स मिडिल ईस्ट फोरम के निदेशक तथा न्यूयार्क सन् , फिलाडेल्फिया इवनिंग बुलेटिन तथा जेरुसलम पोस्ट के पुरस्कार प्राप्त स्तंभकार हैं . उन्होंने 1971 में बीए तथा 1978 में पी एच डी की उपाधि हार्वर्ड विश्वविद्यालय से इतिहास विषय में प्राप्त की . उन्होंने 6 वर्ष विदेशों में अध्ययन किया जिनमें से 3 वर्ष मिस्र के शामिल हैं . उन्होंने शिकागो विश्वविद्यालय , हार्वर्ड विश्वविद्यालय तथा यू.एस नेवल वार कॉलेज में अध्यापन कार्य भी किया .
डॉ पाइप्स ने विभिन्न स्तरों से अमेरिकी सरकार के साथ काम किया है जिनमें से 2 राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत पद हैं- फुल ब्राईट बोर्ड ऑफ फौरेन स्कॉलरशिप के उपाध्यक्ष और यू.एस इंस्टीट्यूट ऑफ पीस बोर्ड के सदस्य के तौर पर . डॉ पाइप्स समय – समय पर विभिन्न टेलीविजन पर सामयिक विषयों पर चर्चा भी करते रहे हैं. वे अमेरिका के प्रमुख टी.वी कार्यक्रमों ए.बी.सी , वर्ल्ड न्यूज़ , सीबीएस रिपोर्ट , क्रॉस फायर , गुड मार्निंग अमेरिका , न्यूज़ आर विथ जिम लेहरर , नाईट लाइन , ओ रिले फैक्टर और द टुडे शो में भी आते रहते हैं. वह बी.बी.सी और अल – जजीरा सहित विश्व के प्रमुख टेलीविजन नेटवर्क पर प्रस्तुत हो चुके हैं.25 देशों में उनका व्याख्यान हो चुका है .डॉ पाइप्स अटलांटिक मंथली ,कमेन्ट्री , फॉरेन अफेयर्स , नेशन रिव्यू , न्यू रिपब्लिक और द वीकली स्टेन्डर्ड जैसी पत्रिकाओं में छप चुके हैं .
लॉस एन्जेल्स टाईम्स , न्यूयार्क टाईम्स , वॉल स्ट्रीट जर्नल और वाशिंगटन पोस्ट सहित सैकड़ों समाचार पत्र उनके लेख प्रकाशित कर चुके हैं. उनका लेखन सैकड़ों वेबसाईट पर प्रकाशित हुआ है और 27 भाषाओं में उनका अनुवाद होता है . वह 5 संपादकीय बोर्डों में बैठते हैं , कॉंग्रेस की अन्य समितियों के समक्ष उनका साक्ष्य हो चुका है तथा राष्ट्रपति पद के 4 चुनावों में उन्होंने प्रचार भी किया है .
कमेंटेटर – क्या आपको लगता है कि हाल में इरान की सरकार के खतरनाक और घातक बयान युद्ध का स्पष्ट संकेत है , यदि ऐसा है तो किसके विरुद्ध ?
डैनियल पाईप्स – यह इरानी शासन की मानसिकता और उसकी तात्कालिक मनोदशा को प्रकट करता है . यह स्पष्ट नहीं है कि वे इसे जारी रखेंगे और यह भी स्पष्ट नहीं है कि वे इसे युद्ध तक ले जायेंगे लेकिन निश्चित रुप से यह चिंता जनक है .
कमेंटेटर – आपने अपने ब्लॉग में यूरोप में नेतृत्व की शून्यता की बात कही थी . उसे ध्यान में रखकर तथा हाल में फ्रांस में हुए दंगों को देखते हुए क्या आपको लगता है कि वे इस्लामवादी समस्या से सीधे-सीधे निपट पायेंगे ?
डैनियल पाईप्स – मुझे लगता है कि यह एक दीर्घ गामी विषय है , मैं इस बात को लेकर आशावादी नहीं हूं कि इससे फ्रांस या अन्य कोई जागेगा . हमने पिछले साल देखा कि वॉन गॉग की हत्या ने कोई दीर्घगामी सकारात्मक प्रभाव नहीं छोड़ा और लंदन के बम कांड के साथ भी ऐसा ही हुआ इसलिए मुझे लगता है कि यह तत्काल उन्हें जगाने का एक रास्ता ही सिद्ध होगा .
कमेंटेटर – आप इराक में ऐसा क्या घटित होता देखना चाहते हैं कि जिससे वहां हमारी संभावनाओं को लेकर आप आशावादी हो जायें .
डैनियल पाईप्स – मुझे नहीं लगता कि इराक उस रास्ते पर जा रहा है जिस रास्ते पर हम उसे ले जाना चाहते हैं.
कमेंटेटर – आपने अपनी बात-चीत में कहा कि अमेरिका को अपनी सेनायें रेगिस्तान तक सीमित रखनी चाहिए थीं और शहरों में प्रवेश नहीं करना चाहिए था , जिसके कारण अनेक समस्यायें उत्पन्न हुईं. क्या ऐसी स्थिति में संभव नहीं था कि इराक जरकाबी जैसे लोगों के हाथ में चला जाता ?
डैनियल पाईप्स – बिल्कुल संभव था. इसलिए हमारी सेनायें वहां हैं ताकि स्थिति को संभाल सकें . दूसरे शब्दों में मेरा विचार है कि अपने स्वरुप में मध्यपूर्व का राज्य ठीक है ..यह कोई खतरा नहीं है , न ही नरसंहारक है , यह तेल में कटौती भी नहीं करेगा और न ही ऐसा कुछ अन्य करेगा . वहां राज्य या नेतृत्व का विकास होने देना चाहिए उसके बाद ही हम यह सब रोकने की स्थिति में होंगे , हमें वहां सेना रोक कर रखनी चाहिए उसे हटा नहीं सकते लेकिन हमें कम महत्वकांक्षी कार्यक्रम बनाने चाहिए .
कमेंटेटर – क्या आपको लगता है कि मध्यपूर्व के वर्तमान वातावरण में वहां उदारवादी लोकतांत्रिक सरकारें अपना अस्तित्व बचा सकती हैं या फिर वे भी अंतत: इस्लामवादी हो जायेंगी .
डैनियल पाईप्स –इस समय मुस्लिम विश्व में लोकतंत्र का अर्थ इस्लामवाद है. हो सकता है कुछ अपवाद हों लेकिन वे भी बहुत कम इसलिए मुझे लगता है कि हम लोकतंत्र को प्रोत्साहित करना चाहते हैं लेकिन धीरे – धीरे नपे तुले अंदाज में , चरणबद्ध तरीके से चलना होगा. अंतिम परिणाम आने में कई दशक नहीं तो कई वर्ष अवश्य लग जायेंगे.
कमेंटेटर - तो उदाहरण के तौर पर तुर्की के मामले में वर्तमान सरकार के परिवर्तन को आप एक झटका मानते हैं . ?
डैनियल पाईप्स – यह एक बड़ी समस्या है . प्रमुख प्रश्न यह है कि जो इस्लामवादी सत्ता में हैं क्या वे अतातुर्क को प्रासंगिक बना कर रखना चाहते हैं या उसे उलट देना चाहते हैं. हम इसे अभी तक नहीं जानते और कई वर्षों तक नहीं जान पायेंगे . संभव है कि वे इसके साथ रहना चाहते हों लेकिन यह चिंताजनक है यदि वे इसे बदलना चाहते हैं.
कमेंटेटर – आप नरमपंथी इस्लाम के अभ्युदय की बात कर रहे थे . आपके विचार में सापेक्षिक स्थिति में यह कब घटित हो सकता है.?
डैनियल पाईप्स – मेरे विचार में इसमें समय लगेगा . सामान्य रुप से धार्मिक परिवर्तनों में समय लगता है . सैकड़ों साल पहले की तुलना में आज चीजें तेजी से घटित होती हैं फिर भी तत्काल समाधान की अपेक्षा मत रखिए .
कमेंटेटर – मुस्लिम जनसंख्या के सामने यूरोप अपनी संस्कृति को बचाने के लिए क्या कर सकता है .?
डैनियल पाईप्स – उन्हें ऐतिहासिक संदर्भ में अपनी संस्कृति की सराहना करनी चाहिए . उन्हें स्वीकार करना होगा कि यह स्वीकार किए जाने योग्य है और सतत् जारी है. यदि वे सोचते हैं कि सब कुछ समान है तो यह बदल जायेगा. यदि वे सोचते हैं कि इसे बचाकर रखना है तो इसे बचाकर रखेंगें. और इस बात के संकेत हैं कि यूरोप के लोग यूरोप को उसी स्वरुप में रखना चाहते हैं जैसा यह है . लेकिन यह ऐसा संघर्ष है जो अनेक वर्षों तक चलने वाला है और यह कह पाना कठिन है कि किस रास्ते पर जायेगा. लेकिन सामान्य तौर पर मुझे लगता है कि यूरोप के लोग आसानी से हार मान कर यह नहीं कहने वाले हैं कि वे उत्तरी अफ्रीका का विस्तार बनने को राजी हैं .