यह सुखद रहा कि अमेरिका राज्य विभाग में जन कूटनीति के विक्रेता केरेन ह्यूजेज ने जनता के कर से वित्तपोषित होने वाली पत्रिका Hi International के माध्यम से अरब तथा अन्य विदेशी भाषा-भाषी लोगों तक पहुंचने के प्रयास को स्थगित कर दिया है .यह जानकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि 4.5 मिलियन डॉलर के सालाना खर्च वाली Hi पत्रिका की महीने में 55 हजार प्रतियां छपती हैं तथा Alexa.com ने इसे ऊपर से 900,000 की रैंकिंग दी है और प्रति दिन 100 लोग इस वेबसाईट को देखते हैं. यह पत्रिका एक उलझन और धन का अपव्यय है . लेकिन Hi पत्रिका को बेहतर तरीके से चलाया जाता तो कुछ हद तक अमेरिका प्रशासन रेडियो सावा और अल हुरा टेलीविजन को भी ठीक ढ़ंग से चला सकता था .युद्ध लड़ने वाले जनरल कूटनीति के अपने पिछले अनुभव को सुनाते हैं कि किस प्रकार रेडियो लिबर्टी और रेडियो फ्री यूरोप के माध्यम से सोवियत लोगों को महत्वपूर्ण सूचनाएं उपलब्ध कराई जाती थीं जिससे उनकी सेटेलाईट को प्रभाव किया जा सका . ऐसा करते हुए उन्होंने Hi पत्रिका और सावा तथा अल –हुरा के लिए भी सूचनायें उपलब्ध कराने का वही तरीका ढूंढा है. लेकिन ध्यान देने की बात यह है कि मुसलमानों और विशेष रुप से इस्लामवादियों के पास उपयुक्त सूचनाओं का अभाव नहीं है और वे पश्चिम की सूचनाओं पर उतना निर्भर नहीं करते जितना सोवियत के लोग करते थे . इसके विपरीत बहुत से ऐसे संकेत हैं जो साफ करते हैं कि मुसलमान अपने सहधर्मियों की रिपोर्ट पर अधिक विश्वास करते हैं बजाए उनके जो गैर-मुसलमानों द्वारा बनाई गई हैं.
इस बात का स्पष्ट संकेत पश्चिम और इजरायल में रहने वाले मुसलमानों से मिलता है जो एक या एक से अधिक पश्चिमी भाषाओं में पारंगत होते हैं ये लोग अनेक टेलीविजन चैनल और वेब-साईट देखते हैं लेकिन उनकी सूचनाओं का स्रोत ये नहीं वरन् मुस्लिम स्रोत होते हैं.
इस पद्धति का एक संकेत तो कनाडा के अल –जजीरा और फ्रांस के अल-मनार द्वारा मुस्लिम दर्शकों तक पहुंचने के प्रयास से मिलता है इसके साथ ही 2006 में अल –जजीरा ने अंग्रेजी में अपने प्रसारण की योजना बनाई है . एक और साक्ष्य पश्चिम में रहने वाले आतंकवादियों से मिलता है जो गैर-मुस्लिम सूचनाओं के स्रोत को अवरुद्ध कर देते हैं.
उदाहरण के लिए न्यूयार्क के ब्रुकलीन पुल पर यहूदी बालक अरी हाल बर्स्टाम पर लेबनानी आप्रवासी राशिद बाज ने 1 मार्च 1994 को हमला किया जैसा कि Middle East Quarterly में यूरियल हेलमैन ने लिखा है कि बाज ने हालबर्टसम को उस घटना के चार दिन बाद गोली दाग कर मारा जिसमें एक इजरायली बरुच गोल्डस्टीन ने हैब्रॉन की एक मस्जिद में 29 मुसलमानों को मार डाला था . गोल्डस्टीन के इस नर संहार के बाद मध्यपूर्व में दंगों का दौर शुरु हुआ और अमेरिका के मुसलमानों ने इसकी व्याख्या की कि मध्यपूर्व में हालात अमेरिका जैसे अच्छे नहीं हैं.
हालांकि इजरायल की सरकार ने गोल्डस्टीन के कृत्य की कड़े शब्दों में निंदा की लेकिन लगभग समस्त अरब प्रेस ने इसके लिए इजरायल की जनता और उसकी सरकार को जिम्मेदार ठहराया . इसने फिलीस्तीनी प्रतिनिधियों को संयुक्त राष्ट्र संघ से यह कहते प्रसारित किया कि जो कुछ भी हुआ है उसके लिए इजरायल की सरकार उत्तरदायी है और कुछ ने तो यहां तक कहा कि सरकार ने इसमें हिस्सा लिया है . इस्लामवादी स्रोतों ने घोषणा की कि जो कुछ भी या जो कोई भी दूर से भी इजरायल से जुड़ा है उसे हमले का निशाना बनाया जाना चाहिए .
बाज इसी व्याख्या के बीच जीता रहा.अमेरिका के समाचार पत्र और प्रसारण उसके लिए मायने नहीं रखते थे .यद्यपि वह विश्व प्रेस की राजधानी में रहता था लेकिन उसके मस्तिष्क को आकार दूर बैठे अरबी भाषा के संपादकों ने दिया .अरबी स्रोत की इन सूचनाओं ने गोल्डस्टीन को इजरायल के एक एजेंट के रुप में चित्रित किया न कि अकेले दम पर हत्या करने वाले एक हमलावर के रुप में. इसके बाद बाज ने हथियार उठाया , इजरायल से जुड़ा लक्ष्य ढूंढा और हसीदिक बच्चे के रुप में उसे यह मिला और उसने इसकी हत्या कर दी .
सोवियत लोगों के विपरीत मुस्लिम विश्व में उपयुक्त सूचनाओं का अभाव नहीं है वरन् उनकी इसमें रुचि नहीं है . इसके कई कारण हो सकते हैं . लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कारण षड्यंत्रकारी सिद्धांत में विश्वास करना तथा समस्याओं के अधिनायकवादी समाधान की ओर आकर्षित होना है . राज्यों और मुसलमानों को सामग्री उपलब्ध कराने के बजाए उदारवादी , सेक्यूलर और मानवीय मूल्यों पर ज़ोर देना चाहिए . तथ्यों के बजाए मुस्लिम विश्व को समझना चाहिए कि पश्चिमी विश्व का विकास कैसे हुआ है और फिर इसकी बराबरी करने का प्रयास करना चाहिए .