इजरायल के प्रधानमंत्री को ब्रेन हैमरेज का दौरा पड़ा है . ऐसा लगता है कि उनका लंबा राजनीतिक जीवन अब समाप्त हो गया हो जाएगा . इसका इजरायल की राजनीति और अरब इजरायल संबंधों के लिए क्या मायने हैं ?
मूल रुप में यह कार्य व्यापार के पुराने ढर्रे पर लौटने का संकेत है . 1948 में इजरायल के अस्तित्व में आने के बाद से अरब के साथ संबंधों को लेकर इसके राजनीतिक जीवन में लेबर और लिकुड क्रमश: वामपंथी और दक्षिणपंथी धाराओं का प्रतिनिधित्व करती रही हैं .लेबर ने सदैव लचीलेपन और अरब के साथ समायोजन की बात की .जबकि लिकुड ने सख्त रवैया अपनाया . इजरायल के 11 प्रधानमंत्रियों में से सभी इन दोनों में से आए . कोई एक भी अन्य धारा से नहीं आया . इन दोनों दलों ने एक साथ दीर्घगामी स्तर पर लोकप्रियता में ह्रास का काल देखा लेकिन संयुक्त रुप से इजरायल के निर्वाचन की धुरी और किंगमेकर बने रहे .
ऐसा वे पिछले 6 सप्ताह तक करते रहे . जबतक 21 नवंबर को शेरोन ने लिकुड पार्टी को छोड़कर कदीमा नामक नई पार्टी बना ली . उन्होंने यह कदम धीरे –धीरे उठाया क्योंकि फिलीस्तीनियों की नजर में उनका दृष्टिकोण लिकुड के आधार पर ही विकसित हुआ था और 2005 के मध्य में गाजा से इजरायली सेनाओं और लोगों की वापसी के निर्णय के बाद लगा कि वे वहां के लिए भी उपयुक्त नहीं रहे. इसके अलावा उन्होंने इतनी व्यक्तिगत लोकप्रियता अर्जित कर ली थी कि अपनी छवि के आधार पर नई पार्टी के गठन का उनका कद हो गया था . उन्होंने बहुत सोच समझ कर सही समय पर कदम उठाया था जो काफी सफल रहा .तत्कालीन सर्वेक्षणों से पता चला है कि लिकुड और लेबर का स्थान कदीमा ने ले लिया है. Dialogue द्वारा सोमवार को किए गए और कल प्रकाशित सर्वेक्षण में बताया गया है कि इजरायल की संसद नेसेट की 120 की सदस्य संख्या में कदीमा को 42 स्थान मिलने वाले हैं जबकि लेबर और लिकुड क्रमश: 19 और 14 स्थानों के साथ काफी पीछे हैं.
कदीमा की इस असाधारण सफलता ने इजरायल की राजनीति को आमूल चूल परिवर्तित कर दिया है . पुराने घोड़े इस तरह किनारे कर दिए गए कि कोई भी इस बात का अंदाजा लगा सकता था कि उन दोनों में से किसी से भी गठबंधन किए बिना शेरोन सरकार बना सकते हैं .
इससे भी अधिक आश्चर्यजनक कदींमा में शेरोंन की अपनी हैसियत थी . इजरायल ने इससे पहले इतने शक्तिशाली व्यक्ति का अभ्युदय नहीं देखा था .(किसी भी परिपक्व लोकतंत्र के लिए यह दुर्लभ उदाहरण है . अपवाद के तौर पर नीदरलैंड्स के पिम फार्चूय्न का नाम आता है) . शेरोन ने तत्काल लेबर और लिकुड सहित अनेक राजनेताओं को अपने साथ मिला लिया जो उनका नेतृत्व स्वीकार करने को तैयार थे . यह ऐसी खतरनाक उड़ान थी जो शेरोन के जादू या उनके स्वास्थ्य तक ही उड़ने वाली थी .
कदीमा के संबंध में मैं आरंभ से ही आशंकित था . इसके अस्तित्व में आने के एक सप्ताह पश्चात् ही मैंने इसे पलायनवादी उपक्रम करार देते हुए कहा था कि जितनी तेजी से इसका उत्थान हुआ है उतनी ही तेजी से इसका पतन होगा तथा अपने पीछे यह दयनीय विरासत छोड़ेगी . अब यदि शेरोन का कैरियर समाप्त है तो कदीमा का भी . शेरोन ने इसे बनाया ,चलाया इसकी नीतियों का निर्धारण किया और दूसरा इन तत्वों पर निर्णय स्थापित नहीं कर सकता . शेरोन के बिना कदीमा के घटक अपने पुराने घरों की ओर लेबर, लिकुड या अन्य स्थानों को लौट जायेंगे. इजरायल की राजनीति सामन्य ढर्रे पर लौट आएगी .
मार्च के चुनावों में अच्छा स्थान प्राप्त कर लिकुड का ही प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहने वाला था लेकिन अब शेरोन के जाने से सबसे अधिक लाभ उसी को होने वाला है . कदीमा के सदस्य गैर- आनुपातिक तरीके से लिकुड से ही आते हैं और अब बेन्जामिन नेतान्यहू के सशक्त नेतृत्व में यह सत्ता में रहने में सफल हो सकेगी . लिकुड की संभावनायें इसलिए भी उज्जवल हैं क्योंकि लेबर ने अभी एक कट्टर और बिना आजमाए हुए अमीर पेरेज को अपना नेता चुना है .
अधिक विस्तार में जायें तो शेरोन द्वारा व्यक्तिगत् रुप से वामपंथ के प्रति झुकने से इजरायल की राजनीति का वामपंथ की ओर घूमना अब न केवल रुक जायेगा वरन् यह प्रक्रिया उलट भी जाएगी .
फिलीस्तीन के साथ इजरायल के संबंधों की ओर मुड़ें तो बीते महीनों में शेरोन ने भारी गलतियां कीं .विशेष रुप से गाजा से सभी इजरायल वासियों की वापसी ने फिलीस्तीनियों को सुनिश्चित कर दिया कि आतंकवाद का रास्ता सही है , इसने राजनीतिक तापमान को भड़काया और इजरायल के राज्य क्षेत्र में रॉकेट के हमले तेज कराये .
आज जबकि इजरायल अपने सामान्य स्वरुप में आ रहा है और किसी भी राजनेता की लोकप्रियता शेरोन जैसी व्यापक नहीं है तो सरकार के कृत्यों पर लोगों की नजर होगी. अब परिणाम फिलीस्तीन के प्रति नीतियों के संबंध में वास्तविकता पर आधारित होगें न कि पलायनवादी होगें .तथा इजरायल फिलीस्तीनी युद्ध के समाधान की दिशा में अग्रगामी कदम होंगे .