प्रेस द्वारा यासर अराफात की मौत की खबर बाहर आने के बीच राष्ट्रपति बुश ने पुन: निर्वाचित होने के दो दिन के अंदर कहा “ मेरे विचार में इजरायल के मेरे मित्रों के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि उनकी सीमा पर एक शांत फिलीस्तीनी राज्य हो तथा फिलीस्तीनी लोगों के लिए महत्वपूर्ण होगा कि उनके लिए कि एक शांतिपूर्ण और आशावादी भविष्य हो .”
बुश के नए जनादेश और यासर अराफात की मौत के निकट की स्थिति के बीच मेरी भविष्यवाणी है कि महीनों से निष्क्रिय पडी इजरायल फिलीस्तीनी कूटनीति और इजरायल के विरुद्ध खतरों का नया दौर आरंभ हो जाएगा . यह निष्क्रियता इस लिए समाप्त होगी क्योंकि राष्ट्रपति इजरायल और फिलीस्तीन के शांतिपूर्ण तरीके से साथ – साथ रहने के अपने सपने में यासर अराफात को सबसे बड़ी बाधा मानते हैं. जब राजनीतिक पटल से यासर अराफात का अवसान हो रहा है और वह अपने साथ आतंकवाद , भ्रष्टाचार , अतिवाद और प्रताड़ना भी ले जा रहे हैं तो वाशिंगटन अपने सपने को सत्य बनाने का प्रयास करेगा और वह भी इसी गुरुवार को जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री यहां आएंगे .
इस पर्यवेक्षक की अपेक्षा है कि पहले की अरब- इजरायली कूटनीति की भांति राष्ट्रपति के प्रयास न केवल असफल होंगे वरन् यह नुकसान ही पहुंचायेंगे. ऐसा सोचने के पीछे दो कारण हैं.- एक तो अरब इजरायली संघर्ष की राष्ट्रपति की खुद की समझ तथा दूसरा फिलीस्तीनी राज्य क्षेत्र की जमीनी सच्चाई .
बुश की समझ – राष्ट्रपति का जून 2002 का वक्तव्य इस संबंध में उनके उद्देश्य की ओर संकेत करता है तथा संघर्ष के प्रति उनकी समझ को भी दर्शाता है . इसमें उन्होंने सशर्त फिलीस्तीनी राज्य का स्वरुप दिया तथा इजरायल के क्षेत्र को कब्जे वाले इलाके कहकर उसमें लोगों को बसाने की नीति स्पष्ट की . यही दो कदम हैं जो फिलीस्तीनी अरब के कार्यक्रम का ह्रदय हैं .अपने विचारों के द्वारा राष्ट्रपति फिलीस्तीनी अरब वासियों को निमंत्रित कर रहे थे कि इस मध्यावकाश में वे जितना अधिक पुरस्कार चाहते हैं , प्राप्त कर लें और फिर युद्ध के रास्ते पर लौट सकते हैं . इसके विपरीत राष्ट्रपति को फिलीस्तीनी अरब वासियों से कहना चाहिए था कि वे इजरायल को एक स्थायी यहूदी राज्य मानकर हिंसा का रास्ता छोड़ दें . यही नहीं इससे पहले कि कोई बहस आरंभ हो यह ह्रदय परिवर्तन स्कूल , प्रेस मस्जिदों और राजनीतिक बयानबाजी में भी दिखना चाहिए लेकिन बुश ने ऐसी कोई मांग नहीं की इसलिए जैसा कि एली लैक ने न्यूयार्क सन् में लिखा है कि उनके तरीके से इजरायल पर दबाव ही बढेगा.
जमीनी सच्चाई – अराफात ने अपने तरह – तरह के तरीकों और योजनाओं से सुनिश्चित कर दिया है कि कोई भी उनका उत्तराधिकारी नहीं होगा. यह समय तो बंदूक वालों का है . आने वाले महीनों और वर्षों में फिलीस्तीन में अपराधियों का बोल-बाला रहेगा .चाहे वे जमीन या धन के लिए लड़ने वाले अपराधी गुट हों या विचारधारा के लिए लड़ने वाले हमास जैसे गुट हों.
कूटनीति और टीवी विश्लेषणों के द्वारा जाने जाने वाले महमूद अब्बास और अहमद क्यूरी के पास बंदूक वालों का अभाव है इसलिए उनके आगे बढ़ने की संभावना सीमित है .
फिलीस्तीनी राज्य क्षेत्र पहले ही अव्यव्स्था का शिकार हो चुका है और आने वाले दिनों में सत्ता का संघर्ष इसे और भी बदतर बना देगा . उनमें से दो इजरायल और अमेरिका के साथ सौदेबाजी कर सकने की स्थिति प्राप्त कर विकसित होंगे. ध्यान देने की बात है कि ये दो कौन हैं . पश्चिमी तट और गाजा का भौगोलिक विभाजन वे त्तत्व हैं जिनपर यासर अराफात की मौत के कारण कम ध्यान दिया जा रहा है . जोनाथन स्कैंजर ने सुझाव दिया है कि जो एक इकाई पर शासन करेगा वह दूसरे पर शासन नहीं कर सकेगा जिससे फिलीस्तीन के विचार को आगे बढ़ाना काफी कठिन होगा.
सारांश में पिछले तीन वर्षों में इजरायल अमेरिका के दबाव से अलग रहा क्योंकि यासर अराफात ने आतंकवाद का हथियार अपनाकर अमेरिका के राष्ट्रपति और उनकी कूटनीति को अलग-थलग कर दिया था .
फिलीस्तीनी अरब राज्य क्षेत्र में बढ़ रही अव्यवस्था के कारण इजरायल आने वाले कुछ और दिनों तक भाग्यशाली बना रहेगा लेकिन जैसे ही कोई शक्तिशाली और चतुर फिलीस्तीनी अरब नेता इस बात को अनुभव करेगा कि कुछ समय तक हिंसा को टालकर इजरायल के एकमात्र बड़े साथी पर इस बात के लिए दबाव डाला जा सकता है कि यहूदी राज्य से अभूतपूर्व छूट देने के लिए कहे वैसे ही हिंसा का यह अवकाश समाप्त हो जायेगा.
मुझे इस बात में संदेह है कि बुश की देखरेख में ऐसा होगा लेकिन अगर ऐसा होता है तो मैं देख सकता हूं कि इससे इजरायल और अमेरिका के संबंधों पर बहुत बड़ा संकट आ जायेगा.