ऐसी संभावना थी कि पोप बेनेडिक्ट 16 के लिए इस्लाम और मुस्लिम संबंधी विषय सर्वोच्च वरीयता का रहेगा , लेकिन पद ग्रहण करने के 9 महीनों तक वे इस विषय पर मौन साधे रहे . हालांकि उनकी एक रिपोर्ट अवश्य उनके इन विचारों की तरफ संकेत करती है .
फादर जोसेफ डी फेसियो ने Hugh Hewitt Show में इस्लाम से संबंधित उस सेमिनार का ब्यौरा दिया जिसमें उन्होंने दिसंबर 2005 में पोप के साथ भाग लिया था . इस सेमिनार में भाग लेने वालों ने पाकिस्तान में जन्मे उदारवादी धर्म शास्त्री फजलुर रहमान (1919-88) के विचार सुने जिन्होंने कहा था कि यदि मुसलमान व्यापक रुप से कुरान की फिर से व्याख्या करें तो इस्लाम आधुनिक हो सकता है . उन्होंने कुरान के कुछ कानूनों को जैसे जिहाद . चोर के हाथ काट लेना , बहुविवाह की अनुमति को समय के अनुसार ( संशोधित करने की आवश्यकता बताई . उनके अनुसार यदि मुसलमान ऐसा करते हैं तो वे संपन्न भी होंगे .गैर-मुसलमानों के साथ शांति पूर्वक रह भी सकेंगे.
पोप बेनेडिक्ट ने इस तर्क पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की . वे 1977 से ऐसे सेमिनार में भाग लेते आए हैं लेकिन वे सदैव दूसरों को बोलने देते थे तथा अपनी बारी आने की प्रतीक्षा करते थे . फादर फेसियो इस सेमिनार को याद करते हुए कहते हैं कि फजलूर रहमान का विश्लेषण सुनकर पोप स्वयं को नहीं रोक सके .
यह पहला अवसर था जब मैंने उन्हें तत्काल वक्तव्य देते हुए सुना .मैं भी इसे सुनकर स्तब्ध रह गया और वह भी कितना शक्तिशाली था. पवित्र फादर ने शांतिपूर्वक अत्यंत चतुराई से कहा कि और तो ठीक है लेकिन उनके विश्लेषण के साथ एक मूल-भूत समस्या है . इस्लाम की परंपरा के अनुसार ईश्वर ने अपने शब्द मुहम्मद को अवश्य दिए हैं लेकिन ये शाश्वत शब्द हैं. ये मुहम्मद के शब्द नहीं हैं और ये शाश्वत काल तक ऐसे ही वहां रहेंगे . इसके समायोजन की या इनके व्याख्या की कोई संभावना नहीं है .
पोप बेनेडिक्ट के अनुसार यह मूलभूत अंतर इस्लाम को ईसाई और यहूदी धर्म से अलग करता है . बाद के दोनों धर्मों में ईश्वर ने अपनी कृति का सहारा लिया है .इसलिए केवल ईश्वर के शब्द नहीं है वरन् ये इसययाह और मार्क के भी शब्द हैं. यहां ईश्वर ने अपनी कृति का उपयोग किया और उन्हें प्रेरित किया कि वे उनके शब्द दुनिया को बतायें . दुनिया को उनका संदेश है कि यहूदी और ईसाई जो कुछ भी अच्छा है उसे ग्रहण कर सकते हैं . अपनी परंपरा में उसे स्थान देकर उसे अपनी ओर मोड़ सकते हैं.
दूसरे शब्दों में ईसाई बाईबल का आंतरिक तर्क हैं कि इस धर्म को आशा है कि वह नई परिस्थिति के अनुसार स्वयं को ढाल सकता है .
बेनेडिक्ट के लिए बाईबिल ईश्वर का ऐसा संदेश है जो मानव समाज के माध्यम से आता है वहीं उनके अनुसार कुरान स्वर्ग से उतारा गया जो समायोजित करना संभव नहीं है. स्पष्ट रुप से इसके व्यापक अर्थ है . इसका अर्थ है कि इस्लाम अविचल है . यह एक धर्म पुस्तक के साथ अविचल है . इसमें संशोधन संभव नहीं है ,फादर फेसियो के इस वर्णन ने दो प्रतिक्रियाओं को प्रेरित किया है. पहला यह कि ये टिप्पणियां एक निजी सेमिनार में व्यक्त की गईं न कि किसी सार्वजनिक स्थल पर जैसा कि एशिया टाईम्स में स्पैंगनलर ने संकेत दिया है कि पोप इस्लाम के बारे में कोई चर्चा फुसफुसाहट में ही करते हैं . यह समय का संकेत है .
दूसरी प्रतिक्रिया मेरी है और वह है कि पूरा सम्मान बरतते हुए असहमति . कुरान की भी व्याख्या संभव है . निश्चय ही संभव है, मुसलमानों ने भी कुरान को ईसाइयों और यहूदियों की भांति व्याख्यायित किया है .बाईबिल की भांति कुरान भी इतिहास है .
इसके एक संकेत के तौर पर सुडान के धर्म शास्त्री महमूद मोहम्मद ताहा (1909-85) को देखा जा सकता है .ताहा ने अपनी व्याख्या का निर्माण कुरान को दो भागों में विभाजित कर दिया . प्रारंभिक आयतें उस समय आईं जब मोहम्मद शक्तिहीन होकर मक्का में रहते थे और बाद की आयतें तब आईं जब मुहम्मद मदीना के शासक हुए . जिसमें अनेक निश्चित नियम बताये गए हैं. यही आदेश शरियत या इस्लामिक कानून का आधार है .
ताहा का तर्क है कि कुरान के कुछ नियम केवल मदीना के लिए थे न कि अन्य क्षेत्रों के लिए . उनकी आशा थी कि मुसलमान इन नियमों को एक किनारे रख देंगें और मक्का के सामान्य नियमों के साथ जीवन जियेंगे. यदि ताहा के विचार को स्वीकार किया जाए तो शरीयत का बहुत बडा भाग लुप्त हो जायेगा ,जिसमें लूट , चोरी और महिलाओं से संबंधित अनेक कालबाह्य नियम शामिल हैं. उनके बाद मुसलमान निश्चित ही आधुनिक हो सकते हैं .हालांकि ताहा द्वारा प्रस्तावित योजना के अनुसार मुसलमानों ने बड़े स्तर पर इस दिशा में कार्य आरंभ नहीं किया है लेकिन कुछ शुरुआत अवश्य हुई है.
उदाहरण के लिए प्रतिक्रियावादी ईरान की इस्लामी अदालतों ने इस्लामिक परंपरा से स्वयं को अलग करते हुए महिलाओं को तलाक के लिए पुरुष पर मुकदमा करने की छूट दी तथा मृतक ईसाई के परिजनों को मृतक मुस्लिम परिवार के बराबर मुआवजा दिया . इससे संकेत मिलता है कि इस्लाम जड़ नहीं है लेकिन इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए काफी प्रयास करने की आवश्यकता है .
17 जनवरी 2006 अपडेट - उपर्युक्त सेमिनार में Christian Troll ने फजलुर रहमान के विचार की व्याख्या की थी . मेरे लेख के जवाब में डॉ ट्राल ने फादर फेसियों के घटनाक्रम का विवरण देते हुए एक प्रमुख मुद्दे पर असहमति जताई है .
श्रीमान,
फादर फेसियो द्वारा बताए गए सेमिनार में मैंने भाग लिया था .और उनके द्वारा उद्दृत फजलुर रहमान के संबंध में निबंध मैंने ही पढ़ा था .
मैं केवल इतना ही कह सकता हूं कि पवित्र फादर की जिस टिप्पणी का उल्लेख उपर किया गया है वे ईश्वर के शब्द और उनकी प्रेरणा को लेकर मुख्यधारा के मुसलमानों और शास्त्रीय कैथोलिक धर्मशास्त्रियों के परस्पर मतभेद की परंपरा का अंग है . इससे यह भी संदेश मिलता है कि मुस्लिम धर्मशास्त्रियों को गहरे जड़ जमाए बैठे आस्था और धार्मिक दृष्टि के भार से निपटना है .
वैसे मुझे याद नहीं कि पाईप्स की रिपोर्ट पोप और कुरान में जैसा कहा गया है कि इसके संशोधन और समायोजन की कोई संभावना नहीं है . ऐसा पवित्र फादर ने कुछ कहा हो. पवित्र फादर इस बात से भली भांति परिचित हैं कि देववाणी की धार्मिक मान्यता के साथ – साथ कुरान की व्याख्या के उदाहरण भी हैं. इसमें मुस्लिम विचार और पहल भी शामिल है .
लोग इस्लामी आंदोलन के कुछ भाग को इससे अवगत करायेंगे ऐसा लगता है . हालांकि हमें नहीं पता कि इस दिशा में आगे कितनी समस्यायें आएंगी लेकिन कुरान के बारे में ऐसी धारणा है और यह अकादमिक वर्ग में और उनके बाहर चर्चा का विशेष बन चुका है .
हालांकि अरब विश्व में इस संबंध में खुली बहस की संभावना नहीं है लेकिन तुर्की और इंडोनेशिया के समाज में ऐसी बहस की संभावनायें है तथा पश्चिमी समाज में तो यह संभावना और भी अधिक है .मैंने अभी हाल में Critical survey on progressive thinking in contemporary Islam नामक पुस्तक लिखी है जो ऐसे ही विषय को उठाती है .
Sincerely,
Christian W. Troll
Ph.D London