क्या आपको पता है कि डेनमार्क में छपे मोहम्मद के कार्टूनों में मेरा हाथ है. नहीं न, फरवरी के प्रथम सप्ताह में एक षड़यन्त्रकारी वेबसाइट पर यह छपने से पहले मुझे भी यह नहीं पता था. षड़यन्त्रकारी सिद्धान्त पर बात करने से पूर्व पूरे मामले को स्पष्ट करने के लिए तथ्यों से आरम्भ करता हूं.
वास्तव में हुआ यूं कि डेनमार्क के समाचार पत्र जिलैण्ड्स-पोस्टेन के सांस्कृतिक सम्पादक फ्लेमिंग रोज ने 29सितम्बर 2004 को अपना परिचय देते हुए मुझे एक ई-मेल भेजा और अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान मुझसे व्यक्तिगत रूप से मिलकर मेरे साक्षात्कार की इच्छा जताई. मैं राजी हो गया. श्री रोज 25 अक्टूबर को फिलाडेल्फिया स्थित मेरे कार्यालय पर आये और वहाँ आधे घण्टे रहे तथा मुझसे अनेक प्रश्न पूछे. मेरे सम्बन्ध में उनका लेख The Threat of Islamism 29 अक्टूबर को प्रकाशित हुआ. यह लेख स्तरीय पत्रकारिता का लेख था जिसमें रोज ने मेरे सम्बन्ध में कुछ आत्मकथात्मक सूचनायें देते हुये कट्टरपंथी इस्लाम के सम्बन्ध में मेरे विचारों का वर्णन किया. उस भेंट के बाद रोज से मेरा कोई सम्पर्क नहीं रहा. इससे भी सटीक तौर पर कहें तो उसके बाद न तो हमने कोई बात की, न एक दूसरे से मिले और न ही एक दूसरे को कुछ लिखा. उनसे भेंट के के एक वर्ष बाद मुझे प्रेस के द्वारा ही कार्टून प्रकाशित करने के उनके निर्णय का पता चला.
वास्तव में वह उबाऊ नियमित साक्षात्कार से अधिक कुछ नहीं था. रोमांचकारी षड़यन्त्रकारी सिद्धान्त तब आरम्भ हुआ जब एक सेमेटिक विरोधी लेखक क्रिस्टोफर बोलिन ने 3 फरवरी को एक विश्लेषण प्रकाशित करते हुये घोषणा की कि “रोज ने अक्टूबर 2004 में फिलाडेल्फिया की यात्रा की थी और उसके बाद रोज ने डैनियल पाइप्स के सम्बन्ध में एक सकारात्मक लेख लिखा था”. दो दिन पश्चात् श्री बोलिन ने इस तथ्य को आश्चर्यजनक ढंग से एक षड़यन्त्रकारी सिद्धान्त में परिवर्तित कर दिया “ मुस्लिम विरोधी कार्टून स्कैण्डल स्पष्ट रूप से ईसाई पश्चिम को इस्लामी राज्यों और उनके निवासियों के विरुद्ध खड़ा करने के यहूदी नव परम्परावादियों के कृत्रिम सभ्यता के संघर्ष के रूप में परिवर्तित होता जा रहा है .हमें पता है कि फ्लेमिंग रोज यहूदी नव परम्परावादी डैनियल पाइप्स के सहकर्मी और मित्र हैं. उन्होंने फिलाडेल्फिया में पाइप्स से भेंट की और मित्रवत् आत्मकथात्मक लेख लिखा”.
श्री बोलिन के तीन अनुमान ध्यान देने योग्य हैं- रोज मेरे सहकर्मी और मित्र हैं, मैंने और उन्होंने जानबूझकर मुसलमानों को भड़काया तथा हम ईसाई और मुसलमानों के सम्बन्धों को खराब करने के व्यापक षड़यन्त्र के अंग हैं.
ऐसी जंगली कल्पनायें बोलिन की पत्रकारिता के स्तर की कीमत हैं. 11 सितम्बर 2001 का उदाहरण लें तो उनका मानना है कि राष्ट्रपतिबुश और प्रेस टायकून रूपर्ट मर्डोक को इस योजना के सम्बन्ध में पहले से ही पता था. इस घटना में मोसाद का हाथ था. युनाइटेड एअरलाइन्स फ्लाइट 175 वर्ड ट्रेड सेन्टर के दाहिनी ओर नहीं उड़ा और ये टावर या तो इजरायली अमेरिकी लेजर बीम हथियार या फिर भयानक भूमिगत विस्फोट से ढहाये गये.
सभ्यता के संघर्ष से मुझे जोड़ने का बोलिन का सिद्धान्त आजकल काफी चल रहा है. वामपंथी और इस्लामवादी लेखक प्राय: रोज को मेरे सहायक,शिष्य और मेरे द्वारा संरक्षण प्राप्त व्यक्ति के रूप में चित्रित कर रहे हैं. इन्टरनेट नव परम्परावादी षड़यन्त्र में मेरी भूमिका के अफवाह से भरा पड़ा है. यहाँ तक कि मुख्यधारा के तत्व भी इस विचार को ग्रहण करने लगे हैं. अरब के अग्रणी समाचार पत्र अल-हयात ने 10 फरवरी को अनुमान लगाया कि रोज और मेरे मध्य परस्पर सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध है. वाशिंगटन में पी.एल.ओ के प्रतिनिधि अफीक साफियेह ने सी.एन.एन के वोल्फ ब्लिट्जर को 12 फरवरी को बताया कि फ्लेमिंग रोज मेरे प्रशंसक हैं.
बेल्जियम के अतिप्रचलित साप्ताहिक knack ने मुझे नव परम्परावादियों का विचारक बताया तथा मुझ पर रोज पर तथा अन्य लोगों पर आरोप लगाया कि हमने जानबूझकर नव परम्परावादियों की ओर से भड़काने का कार्य किया है.
इस पूरे मामले से मैं तंग भी आ गया हूँ और सशंकित भी हूँ. षड़यन्त्रकारी सिद्धान्त पर अनेक लेख और दो पुस्तकें लिखने के बाद भ्रमित वास्तविकता को समझने के लिये मैंने गहरा अध्ययन किया है. इस बार गहराई में जाने का दोहरा अवसर था. इसके उत्तर में मैंने 1992 की सी.ए.आई रिपोर्ट के सुझावों की अनुशंसा की. American government to handle conspiracy theories में मैंने षड़यन्त्रकारी सिद्धान्त से निबटने के उपायों के सुझाव दिये हैं.
षड़यन्त्रकारी सिद्धान्तों को मान्यता न मिले - अपनी ही सलाह के आधार पर मैंने अपनी वेबसाइट पर संशोधन किया है. अल-जजीरा टेलीविजन पर भी इस विषय पर चर्चा की है और अब यहाँ इस विषय को रख रहा हूँ.
घातक ब्याख्याओं से निबटा जाये - वर्तमान दुष्ट और अभद्र राजनीतिक वातावरण में सामाजिक लोगों को मानना चाहिये कि उनका कोई कार्य कितना ही छोटा या निर्दोष क्यों न हो सन्दर्भ से हटाकर किसी भी बड़े कार्यक्रम का अंग बना दिया जायेगा. इसे रोका तो नहीं जा सकता परन्तु सचेष्ट होकर दस्तावेजों(ई-मेल,आवाज की रिकार्डिंग,चित्र )की देखभाल की जानी चाहिये ताकि तथ्यों के तोड़े-मरोड़े जाने की स्थिति में उन्हें प्रस्तुत किया जा सके.