बगदाद स्थित हमारे असीरिन चर्च लेडी आफ सालवेशन के पुरोहित लुइस ने इस चर्च में हुये धमाके के तत्काल बाद पूछा कि आखिर मुसलमान कर क्या रहे हैं. इसका अर्थ हुआ वे हमें बाहर करना चाहते हैं.
बिल्कुल इसका यही अर्थ हुआ. हमारा लेडी आफ सालवेशन का यह चर्च उन पांच चर्चों में से एक है जिसे रविवार 1 अगस्त को सायं 6 से 7 के बीच बगदाद और मोसुल में हुये श्रृंखलाबद्ध विस्फोटों में निशाना बनाया गया था. इन कार धमाकों में कुल 11 लोग मारे गये और 55 घायल हुये. इसके अलावा पुलिस ने दो अन्य बम निष्क्रिय किये.
हमले के समय के चुनाव के कारण अधिक लोगों की मृत्यु हुई. कुछ ईराकी शाखाओं के लिये एक अगस्त पवित्र दिन होता है और चूंकि मुस्लिम ईराक में रविवार प्राय: सामान्य कार्य दिवस होता है इसलिये अधिकतर कार्य सायंकाल को ही सम्पन्न होते हैं.
सद्दाम हुसैन के अपदस्थ होने के बाद अल्पसंख्यक ईसाइयों को निशाना बनाते हुये ये विस्फोट कोई पहली घटना नहीं हैं.
पीड़ित ईसाइयों की सहायता करने वाले संगठन बारनाबास फंड ने 2003 के अन्त की कुछ घटनाओं का थोक में वर्णन किया है. इनमें मोसुल के एक कानवेन्ट में मिसाइल हमला, बगदाद और मोसुल में निष्क्रिय किया गया बम, क्रिसमस से पूर्व बगदाद के चर्च में बम विस्फोट, मोसुल के उपासना स्थल में निष्क्रिय किया गया बम.
इसके अतिरिक्त इस्लामवादियों ने प्रमुख रूप से ईसाई स्वामित्व वाली शराब की दुकानों, फैशन स्टोर, सौन्दर्य प्रसाधन सैलूनों पर हमले कर उन्हें बन्द कराने का प्रयास किया है. ईसाई महिलाओं को डराया कि वे इस्लामी अन्दाज में अपने सिर ढंकें. बिना किसी बिशेष कारण के ईसाइयों की हत्या की गई.
इन आक्रमणों के बाद विश्व की सबसे प्राचीन ईसाई शाखा को बड़ी संख्या में देश छोड़ने को विवश होना पड़ा. कुछ महीने पहले एक ईराकी ईसाई पुरोहित ने निष्कर्ष निकाला कि “ अभी हाल में एक रात को चर्च को उन बपतिस्मा फार्मों को अधिक भरना पड़ा जो देश छोड़ना चाहते हैं न कि जो उपासना लिये अपनी सेवायें देना चाहते हैं----हमारा समुदाय घटता जा रहा है ”. ईराक के प्रवासी और स्थानान्तरण मन्त्री पास्केल इको वारदा ने अनुमान लगाया है कि 1अगस्त के बम विस्फोट के बाद दो सप्ताह में 40,000 ईसाइयों ने ईराक छोड़ दिया है.
एक ओर जहाँ सीरिया की जनसंख्या का केवल 3 प्रतिशत ही ईसाई हैं शरणार्थियों का अनुपात 20 प्रतिशत और 95 प्रतिशत का है. इससे भी व्यापक चित्र देखें तो 1987 से अब तक 40% ईसाई समुदाय देश छोड़ चुका है. उस समय की जनगणना के अनुसार ईराक में 14 लाख ईसाई थे.
यद्यपि मुस्लिम नेताओं ने एक स्वर से हमलों की निन्दा की है. अयातुल्ला अली अल सिस्तानी ने इस कार्य को आपराधिक कृत्य की संज्ञा दी है तो वहीं अन्तरिम ईराकी सरकार ने साहसपूर्वक घोषणा की है कि इस विस्फोट से ईराक एकजुट होगा तथापि ईराकी ईसाइयों के लुप्त होने में यह घटना मील का पत्थर सिद्ध हो रही है.
- यह काफी कुछ सम्भव प्रतीत हो रहा है क्योंकि इस्लामवादी उत्पीड़न और कम जन्मदर के कारण वे पूरे मध्यपूर्व में लुप्त हो रहे हैं. पृथ्वी पर ईसाइयों की पहचान से जुड़े दो शहर बेथलेहम और नजारेथ दो सहस्राब्दी तक ईसाई बहुल रहे परन्तु अब नहीं हैं. जेरूसलम में तो यह गिरावट और भी तीव्र है. 1922 में उनकी संख्या मुसलमानों से अधिक थी परन्तु अब शहर की जनसंख्या का 2 प्रतिशत से भी कम है.
- तुर्की में 1920 में 20 लाख ईसाई थे परन्तु अब कुछ हजार ही बचे हैं.
- पिछली शताब्दी के आरम्भ में सीरिया में एक तिहाई ईसाई थे अब उनकी संख्या 10 प्रतिशत ही रह गई है.
- लेबनान में 1932 में कुल जनसंख्या का 55 प्रतिशत ईसाई थे परन्तु अब 30 प्रतिशत ही बचे हैं.
- मिस्र में 1950 से काप्ट बड़ी संख्या में दूसरे देशों की ओर जा रहे हैं.
वर्तमान दर से मध्य पूर्व के 1.1 करोड़ ईसाई एक या दो दशक में अपनी सांस्कृतिक विशिष्टता और राजनीतिक महत्व खो देंगे. ध्यान देने योग्य बात है कि ईसाई कुछ दशक पूर्व के यहूदियों के सामूहिक पलायन को दुहरा रहे हैं. 1948 में मध्यपूर्व में यहूदी लाखों की संख्या में थे परन्तु अब इजरायल से बाहर मात्र 60,000 ही शेष रहे हैं.
दो प्राचीन धर्मों की नस्ल का इस प्रकार साफ होना एक युग के अन्त का प्रतीक है. लारेन्स डूरेल की Alexandria Quartet (1957-60) का बहुलतावादी मध्ययुगीन जीवन अब एक धर्म और कुछ मुट्ठीभर मान्य भाषाओं तक सीमित हो गया है. केवल प्रभावित अल्पसंख्यक ही नहीं समस्त क्षेत्र इस संकीर्णता का शिकार हो रहा है.