अहमद क्वेरिया जिन्हें कुछ लोग फिलीस्तीनी अथॉरिटी का प्रधानमंत्री कहते हैं उन्होंने अपने पद से त्यागपत्र की घोषणा करते हुए कहा है “एक संकट है और अराजकता की स्थिति है ..”पश्चिमी तट के कस्बे जेनिन के मेयर ने भी यही प्रतिध्वनित किया कि हम पूरी तरह अराजकता की स्थिति में हैं .इस अराजकता का आरंभ सितंबर 2000 में ओस्लो युद्ध की घोषणा से हुआ .इसके बाद फिलीस्तीनी अथॉरिटी को आपातकाल घोषित करना पड़ा जो कि स्वयं फिलीस्तीनी अथॉरिटी के अंत का संकेत हो सकता है.
गाजा स्थित जेनरल इंस्टीट्यूट फॉर इंनफोरमेशन द्वारा अप्रैल में किये गए जनमत सर्वेक्षण के अनुसार 94 प्रतिशत फिलीस्तीनी मानते हैं कि फिलीस्तीनी
अथॉरिटी राज्य क्षेत्र में कानून विहीनता और अराजकता की स्थिति प्रभावी है.
जब फिलीस्तीनी सुरक्षा बल को विभाजित और भंग कर दिया गया है तो अज्ञात परिचय वाले सशस्त्र गुटों ने उनका स्थान ले लिया है ..और जनता पर वे कठोर सशस्त्र नीति अपना रहे हैं.
जेरुसलेम स्थित फिलीस्तीनी मानवाधिकार गुटों ने पाया है कि शस्त्र धारण करना फिलीस्तीनी समाज के लिए मान्यता प्राप्त नियम बन गया है.
उदाहरण के लिए गैंगो के नियंत्रण वाले नाबलुस में अनेक मौतें बढ़ती आपराधिक गतिविधियों और इजरायल के साथ सहायता के आरोप में हुईं हैं.लेकिन रॉयटर्स ने स्पष्ट किया है कि बहुत सी मौतें गलत पहचान या फिर दुर्भाग्यवश हुई हैं. फरवरी 2004 से दो जटिल घटनाओं में 37 वर्षीय अमनेह अबू हिजलेह जब अपनी नवजात बच्ची के लिए खांसी की दवा लेने दुकान पर गया तो अव्यवस्थित अपहरण में उसे गोली लग गई. 13 वर्षीय फिराद अवधर जन्मदिन पर बाल कटाने के मामले में नाई के साथ हुए झगड़े में मारा गया.
जैसा कि वाशिंगटन पोस्ट में कहा गया है , “फिलीस्तीनी अथॉरिटी पूरी तरह से टूटी हुई, राजनैतिक रुप से विभाजित और भ्रष्टाचार से परिपूर्ण है जो अपने ही लोगों को सुरक्षा देने में और इजरायल के विरुद्ध आतंकवादी हमलों को रोकने में असमर्थ है .फतह के एक सामान्य सदस्य ने अनुमान लगाया है कि 90 प्रतिशत गैंगस्टर गतिविधियां फिलीस्तीनी अथॉरिटी के कर्मचारी द्वारा संचालित हैं.”
उदहारण के लिए फरवरी में एक फिलीस्तीनी पुलिस अधिकारी की मृत्यु हो गई और 11 अन्य लोग घायल हो गए जब गाजा पुलिस मुख्यालय के परिसर में ही वे प्रतिद्वंदी पुलिस गुट से भिड़ बैठे.
हद तो तब हो गई जब 16 जुलाई को अल-फतह के आतंकवादियों ने गाजा पुलिस प्रमुख के यहां धावा बोल दिया और घंटों तक उन्हें कैद रखा.इसके बाद हाल में ही बर्खास्त किये गए फिलीस्तीनी पुलिस कर्मी ने गाजा के दक्षिणी इलाके में सैन्य संयोजन के निदेशक का अपहरण कर लिया.
संयुक्त राष्ट्रसंघ के मधूयपूर्व प्रतिनिधि तेरजे रोएड लार्सन ने इस बढ़ती अराजकता पर सुरक्षा परिषद में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि गाजा क्षेत्र में फिलीस्तीनी
सुरक्षा बलों के बीच संघर्ष और शक्तिप्रदर्शन आम बात है.यहां शस्त्र ,धन और भय की आड़ में फिलीस्तीनी अथॉरिटी की कानूनी शक्ति तेजी से क्षीण हो रही है .वे अत्यंत चौंकाने वाले निष्कर्ष पर पहुंचे कि जेरिको फिलीस्तीन का एकमात्र ऐसा शहर बन कर उभर रहा है जहां पुलिस काम कर रही है .
इस प्रकार अराजकता में घिरे फिलीस्तीन को देखकर चार निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं.
फिलीस्तीनी अथॉरिटी ने कानून विहीनता के मामले में सोमालिया , सूडान,लेबनान ,इराक और अफगानिस्तान के वृह्तर मध्यपूर्व रुझान को अपना लिया है .
अराफात ने 1994 में भविष्यवाणी की थी कि या तो हम अपने शहर में सिंगापुर का निर्माण कर लेंगे या फिर दुखद सोमालिया मॉडल में फंस जायेंगे .
उन्होंने इस बात को स्वीकार कर लिया था कि फिलीस्तीनी अथॉरिटी का सोमालिया जैसा हश्र उनकी असफलता को संकेतित करता है.
फिलीस्तीनी राज्य क्षेत्र के लोगों की नर्क भरी जिंदगी देखकर इस्लामी मुहावरा सच ही दिखता है कि एक दिन की अराजकता से भले हैं दमन के हजार दिन. यद्यपि अराफात ने चार साल पहले ओस्लो युद्ध इजरायल को नष्ट करने के उद्देश्य से चलाया था लेकिन विडंबना है कि वे ही अपनी पहली सरकार को नष्ट कर रहे हैं.
अब फिलीस्तीनियों के सामने प्रश्न है कि क्या अपने कटु अनुभव से उन्होंने कुछ सही शिक्षा ली है. यह आशाजनक अवश्य है कि पहली बार वे अपनी समस्याओं के लिए इजरायल को दोषी नहीं ठहरा रहे हैं. कोक्स सूचना सेवा ने लिखा है कि जैसे-जैसे अव्यवस्था फैलेगी फिलीस्तीनी बुद्धिजीवी और राजनेता इजरायल को बलि का बकरा बनाने की पुरानी प्रथा छोड़कर अपने ऊपर जिम्मेदारी लेंगे.
नेशनल पब्लिक रेडियो ने एक फिलीस्तीनी को उद्धृत किया कि फिलीस्तीनी अथॉरिटी संकट में है क्योंकि लोगों का अपहरण हो रहा है , वे मारे जा रहे हैं , वे लूटे जा रहे हैं. हम सभी सरकारों पर आरोप लगा रहे हैं कि वे कुछ नहीं कर रहे हैं. गाजा स्थित जनरल इंस्टीटूयूट फॉर इंनफारमेशन ने पाया कि 29 प्रतिशत फिलीस्तीनी जनता अथॉरिटी द्वारा कानून व्यवस्था लागू न कर पाने के लिए इजरायल को दोषी मानती है .यह एक अच्छा आरंभ है . लेकिन अपनी दुखद राजनीतिक स्थिति से निकलने के लिए फिलीस्तीनियों को चाहिए कि वे इजरायल को यहूदी राज्य के रुप में मान्यता दें . अपने ह्रदय में इस परिवर्तन में वे जितना विलंब करेंगे , सोमालिया मॉडल जैसा ही उनका भाग्य बना रहेगा .