अब जबकि इजरायल के लोग चुनाव में जा रहे हैं किसी भी प्रमुख राजनीतिक दल ने फिलीस्तीनी अरब के विरुद्ध युद्ध में विजय के विकल्प का प्रस्ताव सामने नहीं रखा है.यह झकझोर देने वाली और खतरनाक कमजोरी है .
पहले कुछ पृष्ठभूमि देख लें .ऐतिहासिक आंकड़े इस बात को प्रदर्शित करते हैं कि युद्ध तभी जीते जाते हैं जब एक पक्ष अपने उद्देश्यों को छोड़ देता है . यही एक मात्र तार्किक चीज है क्योंकि जब तक दोनों पक्ष अपनी युद्ध संबंधी महत्वाकांक्षा को पूर्ण करना चाहेंगे तब तक या तो युद्ध जारी रहेगा या उसके जारी रहने की संभावना बनी रहेगी .उदाहरण के लिए यद्यपि जर्मन प्रथम विश्वयुद्ध में पराजित हो गए थे लेकिन यूरोप पर नियंत्रण स्थापित करने के अपने उद्देश्य को उन्होंने छोड़ा नहीं था और जल्द ही इसके लिए वे हिटलर की ओर मुड़ गए.
कोरियाई युद्ध पचास वर्ष पहले समाप्त अवश्य हो गया लेकिन उत्तर या दक्षिण कोरिया में से किसी ने भी अपनी महत्वाकांक्षा को छोड़ा नहीं है इसलिए फिर लड़ाई कभी भी हो सकती है . इसी प्रकार अरब फिलीस्तीनी संघर्ष के अनेक चरण के बाद भी (1948-49 , 1956,1967 ,1973 और 1982 ) दोनों पक्ष अपने उद्देश्यों को धारण किए हुए हैं.
ये उद्देश्य सामान्य, स्थिर और दोहरे हैं . अरब इजरायल को नष्ट करने के लिए लड़ रहे हैं , इजरायल अपने पड़ोसियों की स्वीकृति प्राप्त करने के लिए लड़ रहा है . पहले का आशय आक्रामकता का है जबकि दूसरे की लड़ाई रक्षात्मक है . पहला बर्बर है जबकि दूसरा सभ्य . इजरायल को अस्वीकार करने वाले अरब लोगों ने विभिन्न रणनीतियों से पिछले 60 वर्षों में इसे नष्ट करने का प्रयास किया है .इनमें प्रचार द्वारा इसकी मान्यता को कमतर करना , व्यापारिक बहिष्कार द्वारा इसकी अर्थव्यवस्था को क्षति पहुंचाना , आतंकवाद द्वारा इसका मनोबल गिराना और सामूहिक नरसंहार के हथियारों द्वारा इसकी जनसंख्या को भयभीत करना शामिल है .
यद्यपि अरब प्रयास धैर्यपूर्ण , तीव्र और उद्देश्यपूर्ण होते हुए भी असफल रहे हैं . इजरायल ने आधुनिक , कुलीन और शक्तिशाली देश का निर्माण कर लिया है लेकिन अब भी वह अरब द्वारा अस्वीकृत है .इस मिश्रण के दो राजनीतिक परिणाम सामने आए हैं – राजनीतिक रुप से नरमपंथी इजरायलवासियों में आत्मविश्वास का भाव व्याप्त हुआ है और इसके वामपंथियों में अपराधबोध और आत्मालोचना का भाव . अब बहुत कम इजरायली अरब द्वारा यहूदी राज्य को मान्यता दिए जाने के अपूर्ण कार्य के प्रति चिंतित है . इसे हम इजरायल के युद्ध का अदृश्य उद्देश्य कह सकते हैं.
विजय प्राप्त करने के बजाए इजरायल वासियों ने संघर्ष के प्रबंधन के लिए तमाम उपायों की ओर रुख किया है . इनमें निम्नलिखित सम्मिलित हैं.
अपनी ओर से ही पहल ( दीवार का निर्माण , आंशिक वापसी ) वर्तमान नीति यही है जिसे एरियल शेरॉन , एहूद ओलमर्ट और कदीमा पार्टी ने अपनाया है .
पश्चिमी तट में स्थित इजरायली कस्बों की भूमि को 99 बर्ष के पट्टे पर देना. लेबर पार्टी के अमीर पेरेज का प्रस्ताव.
शिमोन पेरेज द्वारा फिलीस्तीनी अरब के आर्थिक विकास की बात
राज्य क्षेत्र पर समझौता-ओस्लो कूटनीति इसी पर आधारित थी जो यित्जाक राबिन ने आरम्भ की थी.
मार्शल योजना ढर्रे पर फिलीस्तीनी अरब के लिए बाहरी आर्थिक सहायता अमेरिकी प्रतिनिधि हेनरी हाइड की पहल.
इजराइल के घोर वामपंथियों का प्रस्ताव कि 1967 की सीमा से वापसी
राष्ट्रपति बुश और नतान शारंस्की का प्रस्ताव कि फिलीस्तीनी अरब को अच्छे प्रशासन की ओर उन्मुख किया जाये
इजरायल के दक्षिणपंथी मानते हैं कि जार्डन ही फिलीस्तीन है
इजरायल के घोर दक्षिणपंथी मानते हैं कि फिलीस्तीनी अरब को पश्चिमी क्षेत्र से स्थानांतरित किया जाए.
ये सभी रूख अपनी मूल भावना में काफी भिन्न हैं और अपने आप में पूर्ण हैं लेकिन मूल बिन्दु सबमें समान है. सभी संघर्ष का प्रबंधन करना चाहते हैं न कि उसका समाधान . फिलीस्तीनी अस्वीकृति को नजरअंदाज कर उसे स्वीकृत कराने की आवश्यकता से सब बच रहे हैं. सभी युद्ध को जीतने के बजाए उसे तोड़ने मरोड़ने में लगे हैं.
किसी बाहरी विश्लेषक के लिए जो देर सबेर अरब द्वारा इजरायल की स्वीकृति की आशा रखता है , विजय की इस रणनीति की उपेक्षा हताश करती है .एक हताशा तो यह कि कब मेधावी ढंग से इजरायली युद्ध के उद्देश्य को समझ पायेंगे.
सौभाग्यवश एक प्रमुख इजरायली राजनेता ने फिलीस्तीनी अरब पर इजरायल की विजय की बात उठाई है . उजी लांडाव ने सामान्यतौर पर कहा है कि “जब आप युद्ध की स्थिति में हैं तो आप युद्ध में विजय प्राप्त करना चाहते हैं.” उन्होंने इन चुनावों में लिकुड का नेतृत्व करने की आशा की थी लेकिन अपनी पार्टी को बहुमत दिलाने में असफल दिख रहे हैं.और इस सप्ताह निर्वाचन सूची में 14वें स्थान पर दिखे जो कि संसदीय सीट दिलाने के लिए भी पर्याप्त नहीं है . अब जबकि लिकुड को लोकप्रिय मत का 15 प्रतिशत से भी कम प्राप्त हो रहा है यह स्पष्ट हो गया है कि युद्ध में विजय प्राप्त करने का सिद्धांत इस समय इजरायलवासियों में कितना अलोकप्रिय है .इस लिए वे समझौतों, अपनी ओर से पहल , शत्रुओं को समृद्ध करने या अन्य नीतियों के साथ प्रयोग कर रहे हैं लेकिन जैसा कि डगलस मैकार्थर ने विश्लेषण किया है युद्ध में विजय का विकल्प कुछ नहीं होता . ओस्लो कूटनीति निराशाजनक ढंग से असफल हुई और इसी प्रकार अन्य नीतियां भी असफल होंगी जो विजय के कठोर परिश्रम से भागना चाहती हैं.
इजरायलवासियों को फिलीस्तीनी तथा अन्य लोगों को समझाने के लिए कि इजरायल को नष्ट करने का उनका स्वप्न साकार नहीं हो सकता एक कठिन , कटु , लंबे और खर्चीले प्रयासों से सन्नद्ध होना चाहिए.यदि इजरायलवासी य़ह लक्ष्य प्राप्त करने में असफल रहते हैं तो इजरायल स्वयं नष्ट हो जाएगा.