यह कोई आश्चर्य नहीं है कि मध्यपूर्व के विद्वान डैनियल पाइप्स ने अनेकों मित्र और शत्रु बनाए हैं. एक परंपरावादी स्तंभकार, आतंकवाद प्रतिरोध विश्लेषक और 18 पुस्तकों के लेखक पाइप्स इजरायल के कट्टर समर्थक और कट्टरपंथी इस्लाम के कटु आलोचक हैं.
वाल स्ट्रीट जर्नल के अपने सहयोगियों द्वारा मध्यपूर्व के आधिकारिक विश्लेषक के रुप में प्रशंसित पाइप्स को अरब अमेरिकी गुट इस्लामवाद विरोधी चरमपंथी कहता है . वे मिडिल ईस्ट फोरम के संस्थापक हैं जो कैम्पस वाच नामक अपनी वेबसाइट के द्वारा इस बात की देख रेख करता है कि अमेरिका के कॉलेजों में मध्यपूर्व कैसे पढ़ाया जाता है.
गुरुवार की रात ग्रोव सिटी कॉलेज में अरब विश्व में लोकतंत्र के विस्तार की संभावना विषय पर होने वाले सम्मेलन में वे प्रमुख वक्ता होंगे. मैंने मंगलवार को फोन पर सिडनी से ही पाइप्स से वार्ता की .
प्रश्न – क्या आप इराक मं युद्ध के पक्ष में थे और आपके विचार में इसमें प्रगति हो रही है या अवनति ?
उत्तर – मैं युद्ध के पक्ष में था .मैं इराकियों के , इस क्षेत्र के और स्वयं हमारे समक्ष उत्पन्न खतरों के कारण सद्दाम हुसैन के शासन को समाप्त करने के अभियान का समर्थन करता रहूंगा . अप्रैल 2003 से मैं आग्रह करता आ रहा हूं कि अमेरिकी प्रशासन और उसके सहयोगियों को इस क्षेत्र में अपनी अपेक्षायें सीमित करनी चाहिए. हमें इराकियों को वयस्क भांति देखना चाहिए .हमें यह समझना चाहिए कि अपना भविष्य और भाग्य वे स्वयं बनाने जा रहे हैं न कि हम . हमारी भूमिका सलाहकार की होनी चाहिए और हमें धैर्य धारण करना चाहिए . जितनी सीमित अपेक्षाएं होंगी उतना ही विस्तृत क्षितिज होगा .
प्रश्न – इसका अर्थ हुआ कि नीतियों के संबंध में महत्वपूर्ण परिवर्तन करना चाहिए. क्या हमें वापसी की घोषणा कर देनी चाहिए ?
उत्तर – सेना की संख्या मेरा मुद्दा नहीं है . उनकी तैनाती और भूमिका मुद्दा है . पिछले 3 वर्षों से मैं जनजातियों के बीच मध्यस्थता ष बिजली ग्रिड के निर्माण में , विद्यालय भवनों के निर्माण में सेना की सहायता का विरोध करता आ रहा हूं.
मेरी दृष्टि में यह हमारी सेना और धन का अपव्यय है . इराकियों को इन चीजों का नियंत्रण देना चाहिए हमें सेना की तैनाती रेगिस्तान में अंतरराष्ट्रीय सीमा की देखरेख के लिए , उत्पीड़न रोकने के लिए और गैस और तेल के निर्बाध आवागमन को सुनिश्चित करने के लिए करनी चाहिए ,शेष इराक को इराकियों पर छोड़ देना चाहिए .
प्रश्न – आप अपनी राजनीति को कैसे परिभाषित करते हैं. ?
उत्तर – परंपरावादी .
प्रश्न – क्या आप उन नव परंपरावादियों में से नहीं हैं जिन्होंने तथाकथित रुप से राष्ट्रपति बुश से मध्यपूर्व में युद्ध करने के लिए कहा ?
उत्तर – मुझे नवपरंपरावादी कहा जाता है, मुझे ठीक से नहीं पता कि नवपरंपरावादी किस प्रकार परंपरावादियों से भिन्न है .
प्रश्न – आप सामान्य रुप से राष्ट्रपति बुश की मध्यपूर्व नीति के उद्देश्य और उसके तरीकों से सहमत हैं ?
उत्तर – मैं तरीकों से अधिक उद्देश्य से सहमत हूं, मैंने अभी इराक का उदाहरण दिया जहां सद्दाम हुसैन से मुक्ति पाना और समृद्ध व मुक्त इराक की स्थापना अच्छा उद्देश्य है . मैं इसके क्रियान्वयन की आलोचना करता हूं . यही स्थिति लोकतंत्र के साथ भी है . मेरी दृष्टि में इस क्षेत्र के लिए लोकतंत्र का उद्देश्य बहुत अच्छा है . यहां भी मैं क्रियान्वयन की आलोचना करता हूं . मेरी दृष्टि में इसमें जल्दबाजी दिखाई जा रही है . अमेरिका के लोग इसे कल ही पूरा कर लेना चाहते हैं.
प्रश्न – क्या चीजों को धीरे-धीरे करने के लिए बुश प्रशासन को कुछ विशेष करना चाहिए . ?
उत्तर – हमने सद्दाम हुसैन और तालिबान से मुक्ति प्राप्त करने में कुछ अच्छे काम किए . वास्तव में ऐसे बुरे शासनों से मुक्ति प्राप्त करना हमारी भूमिका का चरमोत्कर्ष है.इसमें मैं एक और बात जोड़ना चाहता हूं कि मूल रुप में ये मुद्दे सतही है .ं हम एक बड़े युद्ध में संलग्न हैं .कट्टरपंथी इस्लाम का यह युद्ध एक वैश्विक प्रवृत्ति है जिसने हमारे विरुद्ध अनेक वर्षों से युद्ध छेड़ रखा है .हमने अभी इसकी शुरुआत भर की है . वास्तव में यह बड़ा मुद्दा है .
प्रश्न – अभी हाल में मैंने विदेश नीति विशेषज्ञ पीटर गॉलब्रेथ और इवान इलाण्ड से बात की जिन्होंने इराक में गृहयुद्ध रोकने के लिए उसके तीन भागों में विभाजन की बात की .इस पर आपके विचार ..
उत्तर – पड़ोसी एकमत से इसके विरुद्ध हैं और इराकी इसे लेकर भयभीत हैं इसलिए मुझे इसकी अधिक संभावना नहीं दिखती .
प्रश्न – मध्यपूर्व में अमेरिका की नीति क्या होनी चाहिए ?
उत्तर – मध्यपूर्व को आज के अधिनायकवादी और उत्पीड़क शासकों से मुक्त कराने की राष्ट्रपति की दृष्टि का मैं समर्थन करता हूं लेकिन यह दीर्घकाल का प्रकल्प है और यह मानकर चलना चाहिए कि इसमें महीनों नहीं दशकों लगेंगे.
दूसरा यदि हमने शीघ्रता की तो हम अपने भावात्मक शत्रुओं को सत्ता में लायेंगे जैसा कि फिलीस्तीनी अथॉरिटी में हुआ जहां एक आतंकवादी संगठन हमास ने फिलीस्तीनी जनता का बहुमत प्राप्त किया . ऐसा ही अफगानिस्तान , इराक , लेबनान , लीबिया , मिस्र और अल्जीरिया के मामलों में भी हुआ.इससे पहले कि यहां कि जनता अधिनायकवादी प्रलोभनों से बाहर निकलकर विश्व के प्रति संतुलित और नरमपंथी दृष्टिकोण विकसित न कर ले इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में काफी सतर्क रहना होगा.
प्रश्न – ऐसा करने में उन्हें काफी कुछ करना होगा .
उत्तर – बिलकुल सटीक तुलना तो नहीं है लेकिन 1933 से 1945 के मध्य जर्मनी अत्यंत बुरे दौर से गुजरा .मुस्लिम विश्व की स्थिति उतनी बुरी तो नहीं है लेकिन समतुल्य है यह एक बुरे दौर से गुजर रहा है . हमारा उद्देश्य शैक्षिक कार्यक्रमों या अन्य माध्यमों से मुस्लिम विश्व को इस स्थिति से निकालने का होना चाहिए . इस समय हम मुस्लिम विश्व के प्रमुख अल्पसंख्यक वर्ग के साथ युद्ध की स्थिति में हैं और हम युद्ध की स्थिति में इसलिए हैं क्योंकि उन्होंने हमारे विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी है और हमें इसका उत्तर देना है .
प्रश्न – इराक युद्ध से आपने सबसे बड़ी शिक्षा क्या ग्रहण की ?
उत्तर – सद्दाम हुसैन के दमन से मुक्त कराने में हमने उनकी सहायता की लेकिन बदले में हमें कृतघ्नता मिली . उन्होंने सामान्य तौर पर यह माना कि मानों यह सब उन्होंने किया और हम घटनावश वहां पहुंच गए . उन्होंने हमें चित्र से ही हटा दिया .
प्रश्न – हमें कब पता चलेगा कि इराक पर आक्रमण या कब्जा सफलता थी या असफलता ?
उत्तर – निश्चित रुप से यह सफलता थी हमें सद्दाम हुसैन से मुक्ति मिल गई बाकी चीजें अधिक महत्व की नहीं हैं.