2003 के ईराक युद्ध का सबसे बड़ा रहस्य कि उन जनसंहारक हथियारों का क्या हुआ अब सुलझ गया है. इसका संक्षिप्त उत्तर यह है कि सद्दाम हुसैन के लगातार झूठ बोलने के कारण पिछले अनुभवों के आधार पर कोई भी विश्वास नहीं कर सकता कि अन्तिम क्षणों में उसने जनसंहारक हथियारों को समाप्त कर दिया था.
पेन्टागन की संयुक्त सेना कमान द्वारा बड़ी पुस्तकाकार प्रकाशित रिपोर्ट Iraqi Perspectives Project में अमेरिका के शोधकर्ताओं ने दो वर्ष के व्यवस्थित अध्ययन के बाद सद्दाम और उसके शासन को प्रेरित करने वाली और उन्हें आकार देने वाली शक्तियों को स्पष्ट किया है.
अच्छे ढंग से लिखी हुई, ऐतिहासिक सन्दर्भों से युक्त तथा अनेक विवरणों को उद्घाटित करने वाली इस पुस्तक को उस शासनकाल का वर्णन करने वाली कनान माकिया की कुशल Republic of Fear की श्रेणी में रखा जा सकता है. (संक्षिप्त संस्करण के लिये मई-जून का Foreign Affairs संस्करण देखें)
इस रिपोर्ट से पता चलता है कि किस प्रकार ईराक हिटलर के जर्मनी या स्टालिन के सोवियत यूनियन की भाँति एक ऐसा अनिश्चित स्थान था जहाँ सत्य को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया जाता था.
1990 के मध्य में सद्दाम में एक परिवर्तन आया और उसे अपनी सैन्य शक्ति का अभिमान हो गया और वह स्वयं को अपराजेय मानने लगा. इस कल्पना लोक की भूमि में सैनिकों की आस्था और उनकी कुशलता को तकनीक और वस्तु से अधिक महत्व दिया जाने लगा. वियतनाम से रेतीली तूफानों और सोमालिया से बाल्कन के सैन्य प्रशासन की अवहेलना कर इस अत्याचारी ने अमेरिका को अक्षम और कायर मान लिया.
इसी कालखण्ड में सद्दाम ने सुखद समाचारों पर अधिक जोर देते हुये स्वयं को कठोर सच्चाइयों से दूर कर लिया. जहाँ कुछ चन्द लोग स्वामी की बातों का खण्डन करने का साहस करते थे ,उसका स्वयं को धोखे में रखने का दृढ़संकल्पित व्यवहार राष्ट्रपति के महल से लेकर समस्त ईराकी प्रशासन और फिर उससे बाहर भी फैल गया . Iraqi Perspectives Project के प्रमुख केविन एम. वूड्स ने अपने चार सहयोगी लेखकों के साथ लिखा है, 1990 के मध्य में शासन की आन्तरिक परिधि के निकट जो लोग थे उन्होंने अनुभव किया कि हर कोई एक दूसरे से झूठ बोल रहा है. झूठ को स्थापित किया जाता था फिर उसे ब्याख्यायित किया जाता था. वायु रक्षा अधिकारी के शब्दों में , प्रथम लेफ्टिनेन्ट से लेकर ऊपर तक प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे से झूठ बोलता रहता था जब तक यह कड़ी सद्दाम हुसैन तक नहीं पहुँच जाती थी.
युद्ध के समय वास्तव में क्या हो रहा था इसका प्रतीकात्मक उदाहरण ईराक के सूचना मन्त्री के उन वक्तव्यों से लिया जा सकता है जो पूरे विश्व को ईराकी विजय के समाचार से सराबोर कर रहे थे. ईराकी नेताओं के दृष्टिकोण से बगदाद बाब(पश्चिमी रिपोर्टरों द्वारा दिया गया नाम) वही कुछ बता रहे थे जो युद्ध की अग्रिम पंक्ति से सुन रहे थे. सेना के एक कमाण्डर ने स्वीकार किया कि बगदाद में अमेरिकी टैंक देखकर वह सन्न रह गया.
यही स्थिति औद्योगिक सैन्य ढाँचे के सम्बन्ध में भी थी. रिपोर्ट के अनुसार पहला तो सद्दाम को लगता था कि काम होने के लिये उसका आदेश देना पर्याप्त है. दूसरा अपने जीवन की सुरक्षा को लेकर आशंकित लोग प्रगति की ही बात करते थे. विशेष रूप से वैज्ञानिकों ने सदैव कहा कि चमत्कारी हथियार बनकर तैयार है. ऐसे वातावरण में जनसंहारक हथियारों की वास्तविक स्थिति का किसे पता था. यहाँ तक कि सद्दाम के सामने भी जब जनसंहारक हथियारों की बात आती थी तो सच्चाई को लेकर उसे भी आशंका रहती थी.
ईराक के रणनीतिक संशय ने विषय को और पेचीदा बना दिया. इस बात को भांपकर कि ईराक की कमजोरी के सन्देश से उस पर शत्रुओं विशेष रूप से ईरान के आक्रमण का खतरा है, सद्दाम दुनिया को सन्देश देना चाहता था कि उसके पास जनसंहारक हथियार हैं. साथ ही उसे यह भी आभास था कि गठबन्धन की देखभाल के लिये आवश्यक है कि पश्चिमी देशों को भरोसा दिलाया जाये कि उसके पास वे जनसंहारक हथियार अब नहीं हैं.
गठबन्धन सेना ने 2002 के अन्त में युद्ध की तैयारी की उस समय सद्दाम हुसैन ने संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ सहयोग का निश्चय किया ताकि स्थापित किया जा सके कि उसका देश जनसंहारक हथियारों के मामले में पाक साफ है. जैसा कि उसने अनुभव भी किया कि राष्ट्रपति बुश को युद्ध आरम्भ करने का कोई कारण न दिया जाये.
विडम्बना है कि ये साफगोई के क्षण संयुक्त राष्ट्र को धोखा देने के उसके पूर्व इतिहास की भेंट चढ़ गये. निरीक्षण के साथ सहयोग करने के ईराकी कदम का शासन के लिये उल्टा अर्थ हुआ और इससे पश्चिमी आशंका और सशक्त हुई कि यह सहयोग एक चाल थी. उदाहरण के लिये बीच में ही खुफिया अधिकारियों द्वारा सुने गये आदेश कि पूर्ववर्ती जनसंहारक कार्यक्रमों के सभी चिन्ह मिटा दिये जायें को भी एक और चाल ही माना गया और इसे ईमानदार प्रयास नहीं माना गया.
सद्दाम द्वारा देर से उठाया गया पारदर्शिता का यह दाँव उल्टा पड़ा और जैसा कि रिपोर्ट के लेखक ने कहा है एक कूटनीति और प्रचार का संयुक्त प्रभाव. इसका साथ कुछ स्मारकीय भूलों ने दिया. 2003 के युद्ध में पकड़े गये ईराकी अधिकारी अनेक महीनों तक कहते रहे कि सम्भव है कि ईराक के पास अब भी जनसंहारक हथियार की क्षमता हो जिन्हें कहीं अन्यत्र छुपा कर रखा गया हो. यह कोई आश्चर्य नहीं है कि इस लम्बे समय तक चले नाटक में गठबन्धन खुफिया एजेन्सियों ने अन्तिम और अप्रत्याशित पेंच छोड़ दिया. न तो उन एजेन्सियों ने और न ही पश्चिमी राजनेताओं ने झूठ बोला. यह सद्दाम का ओढ़ा हुआ चेहरा था जिसने अन्त तक सबको भ्रमित किया और खतरे में डाला. यहाँ तक कि स्वयं उसे भी.