बुश प्रशासन अमेरिका को इस्लाम के कट्टरपंथ के साथ युद्ध में संलग्न मानता है परन्तु इसी युद्ध के अन्य रंगमंचों रूस का चेचन विद्रोहियों के साथ, भारत का कश्मीरी आतंकवादियों के साथ और इजरायल का हमास के प्रति संघर्ष की ओर देखने का अवसर और इसे भी अपना संघर्ष मानकर इस्लामवादियों को परास्त करने के लिये कार्य करने का अवसर नहीं है.
इसके बजाय कम से कम इजरायल के मामले में वाशिंगटन ने आपसी समझ, संयम, समझौते, समस्या के प्रबन्धन के साथ कुछ आधे-अधूरे और निराशाजनक समाधानों का आग्रह किया. इसका परिणाम है कि कहीं अधिक उल्लसित और आक्रामक फिलीस्तीनी जनता को विजय अपनी पहुँच में दिख रही है.
वाशिंगटन की समस्या के प्रति गलत पहुँच का आरम्भ 1993 के ओस्लो समझौते से होता है जब यासर अराफात ने बिल क्लिंटन को लिख कर दिया कि पी.एल.ओ शान्ति और सुरक्षा के साथ इजरायल के अस्तित्व को स्वीकार करता है और ऐसा लगा कि अराफात ने अस्तित्व के विवाद को बन्द कर दिया है. परन्तु अराफात का आश्वासन एक धोखाधड़ी थी और इजरायल को समाप्त करने का अरब प्रयास अब भी जारी है.
इजरायल को अमरिका के साथ मिलकर इस गलत महत्वाकांक्षा को समाप्त करना चाहिये. इसमें पवित्र भूमि में स्थायी यहूदी राज्य के अस्तित्व को फिलीस्तीनियों से स्वीकार करा कर उनमें पराजय की भावना का समावेश किया जाये. उसके बाद ही हिंसा थमेगी.