वेटिकन के सर्वोच्च न्यायालय के सचिव मोन्सिगनोर(रोमन कैथोलिक चर्च के पुजारी की एक उपाधि) वेलासिवो डि पाओलिस ने मुसलमानों के सन्दर्भ में कहा, “ दूसरा गाल आगे करना अब बहुत हो गया स्वयं की रक्षा करना हमारा दायित्व है”. अपने अनुयायियों के लिये जीसस की दूसरा गाल आगे करने की शिक्षा को प्राय: नकारते हुये डि पाओलिस ने उल्लेख किया कि पिछली आधी शताब्दी से अरब देशों के साथ पश्चिम के सम्बन्ध हैं परन्तु मानवाधिकारों के सम्बन्ध में थोड़ी सी भी छूट प्राप्त करने में वे सक्षम नहीं रहे हैं.
डि पाओलिस अकेले इस विचार के व्यक्ति नहीं हैं. मुस्लिम शासन में रहने वाले कैथोलिकों की सुरक्षा के सम्बन्ध में कैथोलिक चर्च की दशकों पुरानी नीति में नाटकीय परिवर्तन आया है. शान्त कूटनीति और अव्यक्त तुष्टीकरण के तरीके असफल हो गये हैं. बारनाबास फण्ड के पैट्रिक सुखदेव ने उल्लेख किया है कि दारूल इस्लाम में निवास करने वाले अनुमानत: 4 करोड़ मुसलमान स्वयं को एक ऐसे अल्पसंख्यक के रूप में देख रहे हैं जो शत्रुओं से घिरे हैं, आर्थिक गिरावट, धुँधलाते अधिकार और शारीरिक क्षति की आशंका का सामना कर रहे हैं. उनके अनुसार उनमें से अधिकांश उपेक्षित, घृणा के शिकार द्वितीय श्रेणी के नागरिक बन गये हैं जिनके साथ शिक्षा, नौकरी और न्यायालयों में भेदभाव किया जाता है.
इन कठोर परिस्थितियों के शिकार ईसाई अपने पूर्वजों की भूमि छोड़कर पश्चिम के अधिक मेहमाननवाज वातावरण की ओर जाने लगे हैं. इसके साथ ही मुस्लिम विश्व में ईसाई जनसंख्या तेजी से घट रही है. दो अत्यन्त छोटे परन्तु झकझोर देने वाले प्रसंगों में लगभग दो सहस्राब्दियों में पहली बार नजरेथ और बेथलेहम ईसाई बाहुल्य क्षेत्र नहीं रह गये हैं.
उत्पीड़न और गिरावट की यह वास्तविकता पश्चिम में मुसलमानों की तीव्र वृद्धि के एकदम विपरीत है. अधिकांशत: आप्रवासी और उनकी सन्तति की यह संख्या यद्यपि 2 करोड़ से कम है परन्तु उन्होंने स्वयं को मुखर अल्पसंख्यक के रूप में स्थापित कर लिया है जो व्यापक अधिकार और संरक्षण के साथ-साथ नये विधिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक विशेषाधिकार भी प्राप्त करते जा रहे हैं.
इस बढ़ते हुये असन्तुलन ने पहली बार चर्च का ध्यान आकृष्ट किया है कि उसने मुसलमानों के साथ रहने वाले ईसाइयों की समस्या के लिये इजरायल की कार्रवाई को दोष न देकर कट्टरपंथी इस्लाम की ओर अंगुली उठायी है.
इसकी पूर्व ध्वनि पोप जॉन पॉल द्वितीय के समय में पहले ही सुनी जा सकती थी . वेटिकन में विदेश मन्त्री के समकक्ष कार्डिनल जीन लुइस तावरान ने 2003 में उल्लेख किया था कि बहुत से मुस्लिम बहुल देशों में गैर मुसलमान द्वितीय श्रेणी के नागरिक हैं. उन्होंने सम्बन्धों में सही प्रतिफल( बदले में वैसा ही व्यवहार मुसलमान करें जैसा ईसाई उनके साथ करते हैं) की बात करते हुये कहा, “ जिस प्रकार मुसलमान विश्व में कहीं भी प्रार्थना स्थल बना सकते हैं वैसा ही अधिकार अन्य धर्म के अनुयायियों को भी होना चाहिये ”.
सम्बन्धों में उचित प्रतिफल की यह कैथोलिक माँग बढ़ी है विशेष रूप से अप्रैल 2005 में पोप बेनेडिक्ट 16 के बाद जिनके लिये इस्लाम सर्वाधिक चिन्ता का कारण है. फरवरी में पोप ने परस्पर धर्मों के सम्मान पर जोर देते हुये कहा था, “ दूसरे धर्मों की निष्ठा और चलन को भी सम्मान देना चाहिये ताकि धर्मों के स्वतन्त्र चयन का उन्मुक्त पालन सुनिश्चित किया जा सके ”. मई में उन्होंने एक बार पुन: उचित प्रतिफल की आवश्यकता पर जोर दिया, ईसाइयों को आप्रवासियों से प्रेम करना चाहिये और मुसलमानों को उनके मध्य रहने वाले ईसाइयों के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिये.
निचली श्रेणी के धर्मगुरू स्वाभाविक रूप से अधिक खुलकर बोल रहे हैं. मध्य पूर्व के ईसाइयों पर विशेष ध्यान देने वाले फ्रांसीसी संगठन ओयेवर डि ओरिएन्ट के महानिदेशक मोंसिगनोर फिलिप ब्रिजार्ड ने जोर देकर कहा “ इस्लाम का कट्टरपंथी होना ईसाइयों के पलायन का प्रमुख कारण है”. रोम के लैटर्न विश्वविद्यालय के रेक्टर विशप रिनो फिसिलेचा ने चर्च को मशविरा दिया है कि वह कूटनीतिक चुप्पी के बजाय अन्तरराष्ट्रीय संगठनों पर दबाव डाले कि मुस्लिम बहुल देशों के राज्य और समाज अपनी जिम्मेदारी समझें.
डेनमार्क का कार्टून संकट एक ऐसा उदाहरण है जो कैथोलिक मोहभंग को प्रकट करता है. चर्च के नेताओं ने आरम्भ में मोहम्मद के कार्टून के प्रकाशन का विरोध किया, परन्तु जब मुसलमानों ने प्रतिक्रिया में तुर्की और नाईजीरिया में ईसाई पुजारियों की हत्या की तो चर्च ने वेटिकन राज्य सचिव एन्जेलो सोडानो के माध्यम से मुसलमानों को चेतावनी दी, “यदि आप हमारे लोगों से कहेंगे कि उन्हें आक्रमण का अधिकार नहीं है तो हमें अन्य लोगों से भी कहना पड़ेगा कि उन्हें हमें नष्ट करने का अधिकार नहीं है ”. वेटिकन के विदेश मन्त्री आर्कविशप गिवोवानी लाजोलो ने इसमें जोड़ा कि हमें मुस्लिम देशों में कूटनीतिक सम्पर्कों और सांस्कृतिक सम्पर्कों में सम्बन्धों में उचित प्रतिफल की माँग पर जोर देते रहना चाहिये.
ईसाई प्रदेशों में मुसलमानों द्वारा उपभोग किये जा रहे अधिकारों के समकक्ष अधिकार मुस्लिम देशों में ईसाइयों को भी प्राप्त हों मुसलमानों के प्रति वेटिकन की कूटनीति की कुंजी बन गई है.
इस सन्तुलित गम्भीर पहुँच से आपसी समझ विकसित करने में सहायता मिलेगी जिसके व्यापक परिणाम चर्च से बाहर भी होंगे. यह देखते हुये कि सामान्य नेता अन्तर्धार्मिक मसलों में कितना नेतृत्व करते हैं. पश्चिमी देशों को भी उपयुक्त प्रतिफल को बढ़ावा देना चाहिये निश्चय ही परिणाम अत्यन्त ही रोचक होगा.