ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा अटलांटिक महासागर के ऊपर अनेक विमानों को उड़ाने के षड़यन्त्र को विफल करने के दो दिन बाद ब्रिटेन के नरमपंथी मुसलमानों ने प्रधानमन्त्री टोनी ब्लेयर के नाम एक खुला आक्रामक पत्र प्रकाशित किया. इसमें सुझाव दिया गया कि श्रीमान ब्लेयर आतंकवाद से बेहतर तरीके से लड़ सकते हैं यदि वे स्वीकार कर लें कि ब्रिटिश सरकार की नीतियों विशेषकर ईराक की असफलता ने कट्टरपंथियों को और सशक्त किया है. पत्र लिखने वालों ने माँग की कि हम सभी को सुरक्षित रखने के लिये प्रधानमन्त्री अपनी विदेश नीति में परिवर्तन करें. एक प्रमुख हस्ताक्षरकर्ता लेबर पार्टी के सांसद सादिक खान ने इसमें और जोड़ा कि ब्लेयर द्वारा इजरायल की आलोचना से परहेज से ऐसे लोगों की संख्या बढ़ी है जिन्हें आतंकवादी अपने यहाँ भर्ती कर सकते हैं.
दूसरे शब्दों में, इस्लामवादी, ढाँचे के भीतर काम करते हुये विफल हुये षड़यन्त्र का उपयोग अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति में करते हुये मध्य पूर्व के सम्बन्ध में नीतियों को बदलने के ब्रिटिश सरकार पर दबाव डालने का प्रयास कर रहे हैं. कानून सम्मत इस्लामवादी प्राय: मृत्यु का आलिंगन कर चुके हजारों लोगों की घटना का उपयोग बेशर्मी से अपने एजेण्डे को आगे बढ़ाने के लिये कर रहे हैं.
सड़कों पर मुस्लिम असन्तोष के भय की सूचना के बाद भी ब्लेयर सरकार ने बड़ी तत्परता से इस पत्र को अस्वीकार कर दिया. विदेश सचिव मार्गरेट बेकल्ट ने इसे ‘सम्भावित भयंकर भूल बताया’. विदेश विभाग के मन्त्री किम होवेल्स ने इसे बेवकूफीपूर्ण बताया. गृहसचिव जान रीड ने इस सोच को गम्भीर भूल बताया कि इस देश की विदेश नीति का सम्पूर्ण या आंशिक निर्धारण आतंकवादी गतिविधियों के खतरे के आधार पर किया जाना चाहिये. यातायात सचिव डगलस एलेक्जेण्डर ने इस पत्र को खतरनाक और मूर्खतापूर्ण बताकर रद्द कर दिया.
इस बात से बेपरवाह नरमपंथी मुसलमानों ने घरेलू मोर्चे पर और भी कड़ा रूख अपनाया. 14 अगस्त को सरकार के उपप्रधानमन्त्री सहित उच्च स्तरीय प्रतिनिधियों के साथ बैठक में इन्होंने दो और मांगें कर डालीं- इस्लामी पर्व के जोड़े को आधिकारिक अवकाश घोषित किया जाये और पारिवारिक जीवन तथा विवाह के इस्लामी कानून को ब्रिटेन में लागू किया जाये. इस बैठक में उपस्थित रहे एक मुसलमान ने बाद में सरकार को चेतावनी दी कि हवाई यात्रियों की रूपरेखा के किसी भी प्रयास से मुस्लिम युवकों के कट्टरपंथी होने की सम्भावना बढ़ जायेगी.
आखिर ये चेतावनियाँ क्यों और इसी समय क्यों ? डेली मेल के अनुसार 14 अगस्त के मुस्लिम प्रतिनिधिमण्डल के नेता सैयद अजीजपाशा ने अपने गुट की मांगों की तार्किकता स्पष्ट की, “ यदि आप हमें धार्मिक अधिकार देंगे तो हम नवयुवकों को समझा पाने की स्थिति में होंगें कि अन्य नागरिकों के साथ उनके साथ भी समान व्यवहार हो रहा है”. और भी बुरा पक्ष यह रहा कि पाशा ने सरकार के नेताओं को धमकाते हुये कहा, “हम सहयोग के इच्छुक हैं परन्तु साझेदारी होनी चाहिये . उन्हें हमारी समस्यायें समझनी चाहिये और तभी हम उनकी समस्यायें समझेंगे ”
प्रेस में इन माँगों पर तीव्र प्रतिक्रिया हुई. गार्जियन के पोली टायनबी ने इस खुले पत्र को सरकार को धमकी के समकक्ष बताया. डेली मिरर के सुइ कैरोल ने पाशा के पत्र को ब्लैकमेल की संज्ञा दी.
यह पहला अवसर नहीं है जब ब्रिटेन के नरमपंथी मुस्लिम नेताओं ने इस्लामी हिंसा को राजीतिक प्रभाव में बदलने का प्रयास किया हो. ऐसा ही जुलाई 2005 के अपेक्षाकृत कम आक्रामक विस्फोटों के बाद हुआ था जब 52 निर्दोष लोगों की मृत्यु पर सवार होकर उन्होंने ईराक से ब्रिटिश सेनाओं के हटाये जाने की मांग की थी.
इस दबाव का असर दो प्रकार से हुआ था- पहला, गृहमन्त्रालय ने नरमपंथी मुसलमानों द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट ‘ साथ मिलकर कट्टरपंथ को रोकना’ को जारी किया जो कि आधिकारिक रूप से तुष्टीकरण का प्रयास था. पालिसी एक्सचेन्ज के डीन गाडसन ने संक्षेप में इस दस्तावेज के बारे में कहा कि इसने नरमपंथियों को राज्य से अधिक शक्ति और धन की मांग करने का आश्चर्यजनक और अनपेक्षित अवसर प्रदान कर दिया.
दूसरा- एक नवीनतम सर्वेक्षण के अनुसार 72 प्रतिशत ब्रिटिश प्रजा इस्लामवादियों के इस दृष्टिकोण से सहमत है कि ईराक और अफगानिस्तान में कार्रवाई का समर्थन करने से ब्रिटेन आतंकवादियों के निशाने पर आ गया है, जबकि 10 प्रतिशत की नगण्य संख्या ही मानती है कि इन नीतियों के कारण देश सुरक्षित हुआ है. जनता प्रधानमन्त्री का नहीं इस्लामवादियों का ठोस तरीके से समर्थन करती है.
मैंने सदैव कहा है कि आतंकवाद सामान्य तौर पर पश्चिम में मुसलमानों के विरूद्ध शत्रुता बढ़ाकर और इस्लामी संगठनों को अनचाहे जाँच के दायरे में लाकर कट्टरपंथ के सम्बन्ध में किसी सुधार में व्यवधान उत्पन्न करता है.
मैं स्वीकार करता हूँ कि ब्रिटेन का उदाहरण सिद्ध करता है कि 7 जुलाई के आतंकवाद ने जिहाद के विरूद्ध आक्रोश के स्थान पर स्वयं को दोषी मानने की प्रवृत्ति का पोषण किया है और इससे पता चलता है कि हिंसा कानून सम्मत इस्लामवादियों को भी सशक्त करती है.
यहाँ और एक बात ध्यान देने योग्य है- मेरा मानना है कि ऐतिहासिक ईसाई पहचान की निरन्तरता या मुस्लिम उत्तरी अफ्रीका के अधीन रहने के यूरोप के भविष्य का प्रश्न अब भी जीवन्त है. पश्चिम की श्रृंखला में सबसे कमजोर कड़ी के रूप में ब्रिटिश जनता के व्यवहार से लगता है कि अपनी लन्दिस्तान की नियति का प्रतिरोध करने को लेकर वे दिग्भ्रमित हैं.