“मुझे कुछ भी ऐसा दिखाओ जो मोहम्मद ने नया दिया हो, आपको वहाँ जो कुछ भी मिलेगा वह बुराई और अमानवीयता है जैसे उनका तलवार के बल पर धर्म फैलाने का आदेश.”
पूर्वी रोमन साम्राज्य के शासक मैनुअल 2 पालियोलोगस ने छह शताब्दी पूर्व एक ईरानी विद्वान के साथ बातचीत में ये विचार व्यक्त किये थे. इससे तीन बातें प्रतिबिम्बित हुईं-
पोप बेनेडिक्ट16 ने गत सप्ताह अपने अकादमिक भाषण में जर्मनी में Faith, Reason and the University: Memories and Reflections में इस उद्धरण को ज्यों का त्यों उद्धृत किया और न तो इसका समर्थन किया और न ही इसका खण्डन. इससे प्रबोधन काल से तर्क के सम्बन्ध में पश्चिमी अवधारणा की समीक्षा को स्पष्ट किया गया. परन्तु क्या उनका अन्य उद्देश्य भी था.
अबोट नटकर वोफ ने पोप के उद्धरण को समझने का प्रयास किया, “ ईरानी राष्ट्रपति अहमदीनेजाद को बिना नाम लिये सीधा उत्तर था”. वेटिकन के आन्तरिक सूत्रों ने लन्दन के सण्डे टाइम्स को बताया कि, “ ईरान के राष्ट्रपति द्वारा पोप को लिखे जाने वाले सम्भावित आक्रामक पत्र से पहले ही आक्रामक होकर पोप ने फारसी विद्वान को सम्मिलित कर बहस आरम्भ कर दी.”
पहला प्रतिबिम्ब- बेनेडिक्ट ने अस्पष्ट टिप्पणियों, संक्षिप्त वक्तव्यों और अब तक समझ में न आने वाले उद्धरण तो अनेक बार प्रस्तुत किये हैं परन्तु इस महत्वपूर्ण विषय इस्लाम पर आवश्यक बड़ा वक्तव्य अभी तक नहीं दिया है. हम आशा कर सकते हैं कि ऐसा वक्तव्य शीघ्र ही आयेगा.
पोप का मन्तव्य जो भी रहा हो इस वक्तव्य से मुस्लिम विश्व में आक्रोश स्वाभाविक था. धार्मिक और राजनीतिक अधिकारियों ने इस भाषण की व्यापक तौर पर निन्दा की और कुछ मात्रा में हिंसा को भी आमन्त्रित किया.
ब्रिटेन में वेस्टमिंन्स्टर कैथेड्रल के बाहर एक रैली को सम्बोधित करते हुये अल धुरावा के अन्जुम चौधरी ने पोप को मृत्युदण्ड देने की अपील की.
ईराक में मुजाहिदीन सेना ने रोम में कुत्तों के घर में क्रास नष्ट करने की धमकी दी, इसके अतिरिक्त अन्य गुटों ने खून बहाने की धमकी भी दी.
कुवैत में एक महत्वपूर्ण वेबसाइट ने कैथोलिक ईसाइयों के विरूद्ध हिंसक प्रतिरोध का आह्वान किया.
सोमालिया में धार्मिक नेता अबूबकर हसन मालिन ने मुसलमानों से आग्रह किया कि वे पोप को खोजकर उसी स्थान पर मार गिरायें
भारत में एक अग्रणी इमाम सैयद अहमद बुखारी ने मुसलमानों से कहा कि वे इस प्रकार प्रतिक्रिया करें कि पोप क्षमा याचना के लिये विवश हो जायें
अल-कायदा के शीर्ष व्यक्ति ने घोषणा की कि पोप का उत्पीड़न और अधर्म अब भीषण आक्रमण से ही थमेगा.
वेटिकन ने इसकी प्रतिक्रिया में पोप के आस-पास एक असाधारण और अभूतपूर्व सुरक्षा व्यवस्था स्थापित की. परन्तु अन्य स्थानों पर इस उत्तेजना से हिंसा हुई और ऐसा अन्य स्थानों पर भी सम्भव है. गाजा और पश्चिमी तट पर चार चर्चों पर आक्रमण हुये और ईराक में बसरा में भी ऐसा हुआ. इससे प्ररित होकर रेड स्टेट ब्लाग ने व्यंग्यपूर्ण शीर्षक में लिखा, “ पोप के बयान में अन्तर्निहित था कि इस्लाम हिंसक धर्म है. मुसलमानों ने चर्च पर बम फेंके . सोमालिया में एक इटली नन की हत्या और ईराक में दो असीरियनों की हत्या भी इसी में शामिल है.”
दूसरा प्रतिबिम्ब- मुस्लिम आक्रोश, हिंसा और हत्या की इस दिनचर्या में नई विशेषता के दर्शन होते हैं. इससे पूर्व 1989 में सलमान रशदी के उपन्यास द सेटेनिक वर्सेज की प्रतिक्रया में, 1997 में अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय में मोहम्मद के चित्र को न उतारने पर, 2002 में जेरी फालवेल द्वारा मोहम्मद को आतंकवादी कहने पर, 2005 में कुरान के शौचालय में डाले जाने के झूठे समाचार पर और फरवरी 2006 में डेनमार्क के कार्टून की घटना पर मुस्लिम विश्व ने विश्व के अनेक स्थानों पर हिंसा की.
वेटिकन के नेताओं ने पोप के उद्धरण को शान्त करने का प्रयास किया और साथ ही जिहाद की निन्दा की. पोप के प्रवक्ता फ्रेडरिको लोम्बार्डी ने कहा कि बेनेडिक्ट का आशय इस्लाम को हिंसक के रूप में व्याख्यायित करने का नहीं था. इस्लाम के अन्दर विभिन्न प्रकार की स्थितियाँ हैं और अनेक ऐसी स्थितियाँ भी हैं जो हिंसक नहीं हैं. राज्य सचिव कार्डिनल टारसीसियो बरटोन ने संकेत दिया कि पोप इस बात के लिये गम्भीर रूप से खेद प्रकट करते हैं कि उनके वाक्य के कुछ अंश से आस्थावान मुसलमानों की भावनायें आहत हुई हैं.
उसके बाद एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुये पोप बेनेडिक्ट ने स्वयं आधी माफी माँगते हुये मामले की गर्माहट अनुभव कर रहे लोगों का पक्ष लिया. उन्होंने कहा, “ कुछ देशों में मेरे सम्बोधन के कुछ वाक्याँशों को लेकर हुई प्रतिक्रिया के लिये मुझे गहरा खेद है.” वेटिकन के अंग्रेजी अनुवाद ने आधिकारिक रूप से कहा, “ मुस्लिम भावनाओं को आहत करने वाला वास्तव में एक मध्यकालीन पाठ था . जो मेरे व्यक्तिगत विचार को अभिव्यक्त नहीं करता”. इटली के मूल पाठ में बेनेडिक्ट ने केवल sono rammaricato कहा जिसका अनुवाद है मैं दुखी हूँ.
तीसरा प्रतिबिम्ब- इस मुस्लिम प्रतिक्रिया का एक उद्देश्य है ईसाइयों द्वारा इस्लाम की आलोचना को प्रतिबन्धित करते हुये पश्चिम पर शरियत के नियमों को थोपना. क्या पश्चिमवासियों को इस्लामी कानून के इस मुख्य विचार को स्वीकार कर लेना चाहिये जिसके बाद और भी इसका अनुकरण करेंगे. इस्लाम के सम्बन्ध में स्वतन्त्र अभिव्यक्ति इस्लामी व्यवस्था के थोपे जाने के विरूद्ध एक महत्वपूर्ण बचाव है.